तुलसीदास – महान महाकाव्य, रामचरितमानस के लेखक का जीवन सार

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भारत की आध्यात्मिक संस्कृति बहुत ही विशाल तथा विस्तृत है। भारत में अनेको महान कवियों, लेखकों, संगीतकारों तथा महान संतो ने जन्म लिया है, इन्ही में एक है गोस्वामी तुलसीदास जी। तुलसीदास एक हिंदू कवि-संत थे जिनकी गिनती भारतीय और विश्व साहित्य के महानतम कवियों में की जाती है और उन्होंने कई लोकप्रिय पुस्तकों की रचना की। वे मुख्यता महाकाव्य रामचरितमानस के लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उनके जीवन से जुडी कई अनोखी बातें है, जो गोस्वामी तुलसीदास को सर्वश्रेष्ठ बनती है।

आइए तुलसीदास जी की जयंती के अवसर पर उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको बताते है :- 

  • तुलसीदास का जन्म श्रावण (जुलाई या अगस्त) महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि में हुआ था। उनका जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे पर है (जिसे चित्रकूट के नाम से भी जाना जाता है)। तुलसीदास के जन्म वर्ष के बारे में जीवनीकारों के विभिन्न मत हैं। उनमें से कई विक्रमी संवत के अनुसार कहते हैं कि उन्होंने 1554 में जन्म लिया था और अन्य कहते हैं कि यह 1532 था और कई कहते है की 1589 में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने अपना जीवन लगभग 126 वर्ष तक जीया।
  •  उनके पिता का नाम आत्माराम शुक्ला दुबे और उनकी माता का नाम हुलसी था। एक कथा के अनुसार तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक रहे। जब उनका जन्म हुआ तो वह काफी हुष्ट-पुष्ट थे जिस कारण वे पांच साल के लड़के की तरह दिखते थे।
  •  कहा जाता है, जन्म के समय में तुलसीदास के मुख में 32 दाँत थे। अपने जन्म के समय बालक तुलसीदास रोए नहीं बल्कि उनके मुख से राम नाम निकला था। इसलिए बालअवस्था में उनका नाम रामबोल पड़ गया था। यह उन्होंने  खुद अपनी रचना विनयपत्रिका में बताया हैं। तुलसीदास ने अपने जन्म के बाद अपने माता-पिता के त्याग के बारे में अपनी रचनाओं, कवितावली और विनयपत्रिका में बताया हैं। इन्ही रचनाओं से पता चलता है की उनके जन्म के बाद चौथी रात ही उनके पिता का निधन हो गया।
  • माता पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां हुलसी की महिला नौकरानी “चुनिया”, तुलसीदास को अपने शहर हरिपुर में ले गई और उनकी देखभाल की। महज साढ़े पांच साल तक उसकी देखभाल करने के बाद उसकी मौत हो गई। उस घटना के बाद, सब ने रामबोला को अकेले छोड़ दिया। जब वह मात्र 7 वर्ष के थे, तब रामबोला को रामानंद मठ के तपस्वी नरहरिदास ने अपनाया, जिन्होंने उन्हें तुलसीदास नाम दिया। नरहरिदास ने कई बार युवा तुलसीदास को ‘रामायण’ सुनाई और लंबे समय तक रामायण सुन कर तुलसीदास भगवान राम के अनन्य भक्त बन गए। इसका उल्लेख तुलसीदास ने रामचरितमानस में किया है।
  • इसके बाद तुलसीदास वाराणसी चले गए जहाँ उन्हें अपने गुरु शेषसनातन जी से वाराणसी के पंचगंगा घाट पर  संस्कृत व्याकरण, चार वेदों, छह वेदांगों, हिंदू साहित्य और दर्शन का अध्ययन और ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त हुआ। 15-16 वर्षों तक उनकी पढ़ाई जारी रही, जिसके बाद वह अपने गुरु की अनुमति से अपने जन्मस्थान, राजापुर लौट आए। वहाँ आकर उन्होंने देखा कि उनका परिवार सब नष्ट हो चुका है और वहीं रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे।
  • कुछ स्रोतों के अनुसार तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ था। वह अपनी पत्नी के लिए पूरी तरह समर्पित थे और उसके बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे। एक बार जब उनकी पत्नी अपने मायके गईं तो पीछे-पीछे वे भी वहां पहुंच गए। पत्नी ने जब यह देखा तो उन्होंने तुलसदास को फटकार लगाई, “लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ”  कहा कि जितना प्रेम आप मुझसे करते है उससे आधा भी यदि भगवान में होता तो तुम्हारा कल्याण हो जाता। पत्नी के उपदेश से तुलसी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग दिया और भक्ति के सागर में डूब गए।
  •  गृहस्थ आश्रम त्याग करने के बाद उन्होंने भारत भर में संतों से मुलाकात की और शिक्षा प्राप्त की। इनके गुरु बाबा नरहरिदास थे, जिन्होंने इन्हें दीक्षा दी। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम, और हिमालय का दौरा किया था, हालांकि उन्होंने अपना अधिकांश जीवन काशी,अयोध्या और चित्रकूट में बिताया था।
  • तुलसीदास ने अपने कई कार्यों में संकेत दिया है की उनको हनुमान, भगवान राम-लक्ष्मण और शिव-पार्वतीजी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए थे। अपनी यात्रा के दौरान तुलसीदास को काशी में एक संत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी के दर्शन करने के बाद, उन्हें हनुमान जी ने आशीर्वाद दिया और कहा उन्हें भगवान राम के दर्शन भी होंगे। इसके बाद उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए लेकिन वह भगवान को पहचान नहीं सके।Goswami_Tulsidas_Facts
  • इसके बाद मौनी अमावस्या के दिन दोबारा भगवान श्रीराम तुलसीदास को दर्शन देने आये, उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-“बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन देंगे?” हनुमान जी ने सोचा, कहीं तुलसीदास इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण कर दोहे में बोलकर इशारा किया।

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।

तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

       तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपनी सुध-बुध ही भूल गये। भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये।

  • तुलसीदास ने वाराणसी में हनुमान को समर्पित संकटमोचन मंदिर की स्थापना भी की थी, जिसके बारे में माना जाता है कि यह मंदिर उस स्थान पर खड़ा है जहाँ पर हनुमान के दर्शन हुए थे और तुलसीदास के अनुसार, यहीं उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हुआ जिसने उन्हें भगवान राम के दर्शन के लिए सक्षम बनाया।
  •  ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी, महर्षि वाल्मीकि का पुर्नजन्म थे। महर्षि वाल्मीकि जो संस्कृत मे रामायण और हनुमान चालीसा के मूल रचयिता थे। हिंदू धर्मग्रंथ भव्‍योत्‍तार पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्‍नी पार्वती को वर्णन किया था कि कलयुग में वाल्‍मीकि कैसे अवतार लेंगे।
  • एक दिन सपने में भगवान शिव ने तुलसीदास को अपनी भाषा में काव्य रचना का आदेश दिया। जैसा योग राम के जन्म के समय था वैसा ही योग उस समय भी था जब तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। 2 वर्ष, 7 महीने और 26 दिन में यह अद्भुत ग्रन्थ सम्पन्न हुआ। रामचरितमानस ’में कवि ने स्वप्न और जागृत अवस्थाओं में शिव और पार्वती के दर्शन होने का भी उल्लेख किया है।
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    image via- Shri Tulsi Peeth Seva Nyas, Ramabhadracharya Works – Ramacaritamanasa Tulsi Pitha Samskarana (2006), CC BY 3.0
  • तुलसीदास की सर्वश्रेष्ठ ज्ञात कृति ‘रामचरितमानस’ है, जिसमें सात भाग या कांड शामिल हैं। यह संस्कृत में वाल्मीकि की रामायण के एक कथानक के रूप में है, जो राम के जीवन पर आधारित है। यह पुस्तक हिंदी की एक अवधी नामक भाषा में लिखी गई थी। जिसे संस्कृत संस्करणों के विपरीत आसानी से समझा जा सकता है, जिसे केवल विद्वान ही समझ सकते थे। ‘रामचरितमानस’ को पुनर्जागरण की उत्कृष्ट कृति माना जाता है।
  • तुलसीदासजी को राम के भक्त हनुमान की प्रशंसा में लिखित भक्तिपूर्ण भजन ‘हनुमान चालीसा’ का रचनाकार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा सहित उन्होंने अपने जीवन काल में 12 प्रमुख ग्रन्थों की रचना की थी। जिसमे कम से कम छह प्रमुख रचनाएँ और छह छोटी रचनाएँ है। उनके अन्य मुख्य कार्यों में रामलला नाहचू, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, दोहावली, वैराग्य संदीपनी और विनय पत्रिका शामिल हैं। तुलसीदास द्वारा लिखित एक अन्य पुस्तक कवितावली भी प्रसिद्ध है।
  • एक विपुल लेखक और कई लोकप्रिय रचनाओं के रचनाकार, तुलसीदास ने, हालांकि, अपने कामों में खुद के जीवन के बारे में कुछ तथ्य दिए हैं। तुलसीदास के जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में उनकी अपनी रचनाओं, कवितावली और विनयपत्रिका से पता चलता है। बाकी उनके बारे में जो कुछ भी जाना जाता है वह मुख्य रूप से उनके समकालीन नाभादास द्वारा रचित ‘भक्तमाल ’और प्रियदास द्वारा रचित ‘भक्तिरस्बोधिनी’ से है। तुलसीदास एक बहुत प्रशंसित कवि थे और उनकी रचनाओं का प्रभाव भारत में कला, संस्कृति और समाज में परिलक्षित होता है।Goswami_Tulsidas_FactsImage via- Ken Wieland, Ahilya Ghat by the Ganges, Varanasi, CC BY-SA 2.0
  • गोस्वामी तुलसीदास के जीवन का अधिकांश समय काशी मे गंगा के विख्यात् घाट असीघाट के समीप ही बिता और काशी मे ही उनका निधन हुआ। सन 1680 में श्रावण कृष्ण सप्तमी शनिवार को तुलसीदास जी ने “राम-राम” कहते हुए अपना शरीर का परित्याग किया। तुलसीदास के निधन के संबंध में निम्न्लिखित दोहा बहुत प्रचलित है-

संवत सोलह सौ असी ,असी गंग के तीर ।

श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर ।

उनकी मृत्यु के बाद उस घाट को तुलसी घाट का नाम दिया गया।

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