सैंटा क्लॉज (Santa Claus) का जो स्वरुप आज दुनिया के सामने है वह हमेशा से ऐसे नहीं थे। सैंटा क्लॉज (Santa Claus) न गोल मटोल जॉली व्यक्ति थे न उनकी लंबी सफेद दाढ़ी मूंछ थी और न ही वह हमेशा एक बड़ा लाल सूट पहना करते थे। उत्तरी ध्रुव में रहने और क्रिसमस पर बच्चों को खुशियाँ बाँटने से बहुत पहले सैंटा क्लॉज़ (Santa Claus) स्वयं एक प्यारे से बच्चे थे।
सैंटा क्लॉज़ (Santa Claus) की कहानी कई सैकड़ों साल पुरानी है। आज से करीब डेढ़ हज़ार साल पहले जन्मे सेंट निकोलस को असली सैंटा माना जाता है। सेंट निकोलस की कहानी से सैंटा क्लॉज़ (Santa Claus) की कथा का पता लगाया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि निकोलस का जन्म तीसरी सदी (300 ए.डी.) में जीसस की मौत के 280 साल बाद, पतारा (Patara) में हुआ था, जो आधुनिक समय मे तुर्की (Turkey) के मायरा (Myra) नमक शहर मे है। उनका जन्म एक रईस परिवार मे हुआ था। निकोलस अन्य बच्चों की तरह एक साधारण बच्चा ही था, लेकिन उसके माता-पिता को अपने इकलौते बेटे से बड़ी चीजों की उम्मीद थी। इसलिए उन्होंने अपने बेटे का नाम निकोलस रखा, जिसका अर्थ है “लोगों का नायक”।
छोटी उम्र से ही निकोलस एक दयालु और उदार लड़का था। वह अक्सर अपने गाँव के लोगों की मदद करता था। वह हमेशा अपने भोजन को उन लोगों के साथ साझा करते थे, जिनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं होता था। दूसरो की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
उन्होंने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। बचपन से ही उनकी प्रभु यीशु में बहुत आस्था थी, बहुत कम उम्र में निकोलस चर्च में शामिल हो गए। लोगों की मदद करना उनका परम कर्तव्य था। निकोलस ने अपने गाँव के बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान दिया और बच्चे निकोलस के चंचल और हर्षित तरीके से बहुत प्रभावित थे।
जल्द ही निकोलस पूरे देश में एक दयालु और बुद्धिमान युवक के रूप में प्रसिद्ध हो गए। उन्हें जल्द ही चर्च का एक बिशप (Bishop of the Church) बना दिया गया था। क्योंकि निकोलस अभी भी बहुत छोटा था, इसलिए लोग उसे “बॉय बिशप” (Boy Bishop) कहते थे।
उन्होंने अपनी विरासत में मिली संपत्ति को छोड़ दिया और गरीबों और बीमारों की मदद करने के लिए यात्रा पर निकल पड़े। निकोलस ने लाल टोपी और एक लंबा लाल चोला पहन कर, घोड़े पर सवार होकर हर गाँव की यात्रा की। सभी बच्चे दूर से ही उनकी चमकती लाल पोशाक को देखते ही पहचान जाते और उन्हें सलाम करने के लिए सड़क पर इकट्ठा हो जाते थे। निकोलस जहाँ जाते थे वहां खुशियाँ फैलते थे।
संत निकोलस की दरियादिली की एक बहुत ही मशहूर कहानी है जब उन्होंने एक गरीब की मदद की। बिशप निकोलस (Bishop Nicolas) अपनी यात्रा पर थे, वह एक गाँव मे पहुंचे जहाँ उन्हें एक गरीब बूढ़े आदमी और उसकी तीन जवान बेटियों की दुखद कहानी का पता चला। जिसके पास अपनी तीन बेटियों की शादी के लिए बिलकुल पैसे नहीं थे और मजबूरन वह उन्हें मजदूरी करने भेज रहा था। तब निकोलस को लगा इनकी मदद करनी चाहिए।
उस रात, जब पूरा गाँव सोया हुआ था, तब निकोलस चुपके से उस झोपड़ी तक गया जहाँ वह गरीब परिवार रहता था, वह घर की छत में लगी चिमनी के पास पहुंचे और चिमनी से सोने के सिक्कों की थैलियां फैंकी, चिमनी पर उस व्यक्ति की तीनों बेटियों के मोज़े सुख रहे थे।
एक मोजे में अचानक सोने से भरी थैली घर में गिरी, ऐसा एक बार नहीं बल्कि तीन बार हुआ, आखिरी बार में उस आदमी ने निकोलस को देख लिया। निकोलस ने यह बात किसी को ना बताने के लिए कहा। अगली सुबह, लड़कियों को अपने मोजो में सोने के सिक्कों को देख कर बहुत खुशी हुई। वह भागती हुई अपने पिताजी के पास गयी और बोली “हमें एक जादुई उपहार मिला है।”
लेकिन जल्द ही इन तीनों बहनों की बात का शोर पुरे गांव मे हो गया। दूसरे लोगों ने भी सुबह जागने पर एक गुप्त उपहार पाने की उम्मीद मे मोज़े लटकाना शुरू कर दिया। उस दिन से जब भी किसी को कोई सीक्रेट गिफ्ट मिलता सभी को लगता कि यह संत निकोलस ने दिया है। धीरे-धीरे निकोलस की ये कहानी पूरी दुनिया में छा गई इसके बाद पूरी दुनिया में क्रिसमस के दिन मोजे में गिफ्ट देने का रिवाज आगे बढ़ता चला गया। इसलिए क्रिसमस की रात बच्चे इस उम्मीद के साथ अपने मोजे बाहर लटकाते है।
हालांकि यह बिशप निकोलस (Bishop Nicholas) का सबसे प्रसिद्ध उपहार था, पर यह उनका पहला अच्छा काम नहीं था और निश्चित रूप से यह उनका अंतिम भी नहीं होगा। बिशप निकोलस को लोगों को अश्चार्यचकित करना अच्छा लगता था। वे अपनी पहचान लोगों के सामने नहीं लाना चाहते थे। निकोलस हमेशा अपने उपहार आधी रात को ही देते थे क्योंकि उन्हें उपहार देते हुए नजर आना पसंद नहीं था। वह रात में ही अपने गुप्त उपहार देने लगे और लोगो मे आशा और खुशी बाँटने लगे।
उनके सभी अच्छे कार्यों के लिए, बिशप निकोलस (Bishop Nicholas) को संत (Saint) नाम दिया गया था। अन्य संतों की तरह, सेंट निकोलस (Saint Nicholas) के नाम पर भी एक दिन निश्चित किया गया था। सेंट निकोलस का नाम दिवस यानि निकोलस दिवस (Nicholas Day) 6 दिसंबर है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन 343 ईसा पूर्व में उनकी मृत्यु हुई थी, इसलिए संत निकोलस की पुण्यतिथि 6 दिसंबर को निकोलस दिवस मनाया जाता है।
तब से प्रत्येक वर्ष पूरी दुनिया में इस दिन हर कोई संत निकोलस के अच्छे कार्यों का याद करते है, और कई साल पहले, लोग क्रिसमस के दिन ही सेंट निकोलस के अच्छे कामों का जश्न मनाने लगे। पारंपरिक रूप से यह बड़ी खरीदारी करने या शादी करने के लिए भाग्यशाली दिन माना जाता था।
सेंट निकोलस के दुनिया भर में कई नाम हैं। कुछ जगहों पर उन्हें “सिंट निकोलस” (Sint Nikolass) या “सिंटरक्लास (Sinterklass) बुलाया जाता है।” आज कई लोग उन्हें सैंटा क्लॉज (Santa Claus) के नाम से भी जानते हैं। सैंटा का आज का जो प्रचलित नाम है वह निकोलस के डच नाम सिंटर क्लास से आया है, जो बाद में सैंटा क्लॉज (Santa Claus) बन गया। जीसस और मदर मैरी के बाद संत निकोलस को ही इतना सम्मान मिला। हालांकि संत निकोलस और जीसस के जन्म का सीधा कोई संबंध नहीं है, लेकिन उनके बिना अब क्रिसमस अधूरा सा लगता है।
आज के आधुनिक युग के सांता का अस्तित्व 1930 में आया, हैडन संडब्लोम नामक एक कलाकार कोका-कोला (Coca-Cola) की एड में सैंटा के रूप में काम किया और वह 35 वर्षों तक एड में दिखाई दिया। इसमें सैंटा लाला रंग की पोशाक पहने दिखते है और उनकी लंबी सफेद दाढ़ी है। सैंटा का यह नया अवतार लोगों को बहुत पसंद आया और आखिरकार इसे सैंटा का नया रूप स्वीकार कर लिया गया, जो आज तक लोगों के बीच काफी मशहूर है। इस प्रकार धीरे-धीरे क्रिसमस और सैंटा का साथ गहराता चला गया और सैंटा पूरे विश्व में मशहूर होने के साथ-साथ बच्चों के चहेते बन गए।
लोगों के एक सच्चा नायक, सेंट निकोलस अभी भी क्रिसमस के समय हर साल अपने जादुई उपहार दुनिया को देते है। सैंटा क्लॉज (Santa Claus) जो आशा के उपहार बाँटते है, वे दुनिया के सभी बच्चों जीवन में खुशियाँ लाते हैं।
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