उदयपुर शहर का आकर्षण सिटी पैलेस (City Palace), जग मंदिर (Jag Mandir), फतेह सागर लेक (Fathe Sagar Lake) के बारे मे तो सब जानते है, यह सब स्थान उदयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल है। जहाँ देश विदेश से अनेको सैलानी घूमने आते है और यहाँ की आकर्षक तथा खूबसूरत वास्तुकला का आनंद लेते है। परन्तु इन सबके साथ एक और ऐसी खूबसूरत जगह है जो उदयपुर के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसकी खूबसूरती देखने दूर दूर से लोग यहाँ आते है। उदयपुर में फतेह सागर झील के किनारे स्तिथ है एक गार्डन, सहेलियों की बाड़ी।
आइये जानते है सहेलियों की बाड़ी से जुड़े इतिहास को, साथ ही यह कहाँ है? कैसे दिखता है? क्यों सहेलियों की बाड़ी को एक राजा का तोफा कहा जाता है ? और क्यों यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है?
सहेलियों की बाड़ी का इतिहास
इस खूबसूरत गार्डन का एक विशेष ऐतिहासिक महत्व है। सहेलियों की बाड़ी 18 वीं शताब्दी की एक स्मारक है। इस बाड़ी का निर्माण उदयपुर के महाराजा संग्राम सिंह (Maharana Sangram Singh) ने, 18 वीं शताब्दी में लगभग 1710 और 1734 ईसवी के बीच, अपनी रानी और उनकी 48 दासियों के लिए करवाया था। यह दासियाँ विवाह के पश्चात राजकुमारी के साथ दहेज के एक हिस्से के रूप में आई थी। इसलिए इसे सहेलियों की बाड़ी (Garden of the Maidens) का नाम दिया गया।
महाराजा संग्राम सिंह ने स्वयं ही इस सहेलियों की बाड़ी को डिजाइन किया और महारानी को भेंट के रूप में दिया। अपने परिवार की रानियों व उनकी सहेलियों के मनोरंजन के उद्देश्य से इस बाग़ का निर्माण किया गया था। वह उन्हें राजनीतिक जटिलताओं से दूर कुछ सुखद क्षण प्रदान करना चाहते थे। महाराजा यहाँ अपनी रानी के साथ सुखदायक पल भी बिताते थे।
महाराजा संग्राम सिंह के बाद भी कई महाराणाओ ने इसके विकास में रूचि ली थी। कुछ समय बाद में महाराणा भूपाल सिंह (Maharana Bhopal Singh) ने इंग्लैंड से कुछ फव्वारों का आयात किया, जिसे उन्होंने पूल में बारिश के फव्वारे का एक मंडप बनाया। इन फव्वारों से निकलने वाले जल को देख कर ऐसे लगता है जैसे वास्तव में बारिश हो रही हो। महाराणा भूपाल सिंह ने बागानों के लिए बारिश के फव्वारे बनाकर बागों की खूबसूरती में इजाफा किया। महाराणा फतेह सिंह के शासनकाल के दौरान, फतेह सागर झील में बाढ़ आई और सहेलियों की बाड़ी का कुछ हिस्सा बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन राजा ने इसे फिर से बनवाया।
सहेलियों की बाड़ी की बनावट
सहेलियों की बाड़ी एक ऐसी जगह है, जो अपने इतिहास और वास्तुकला के कारण पूरे राजस्थान और मुख्यता उदयपुर में धूमने आने वाले पर्यटकों को आपनी ओर आकर्षित करती है। यह उदयपुर का सबसे खूबसूरत उद्यान है। उद्यान अपने हरे भरे लॉन, संगमरमर की वास्तुकला और फव्वारों के लिए प्रसिद्ध है। सहेलियों की बाड़ी की वास्तुकला भारतीय और अंग्रेजी दोनों शैलियों का एक आदर्श मिश्रण है।
सहेलियों की बाड़ी, उदयपुर की सबसे सुंदर और प्रसिद्ध झील, फतेह सागर झील के किनारे स्थित है। जो राजस्थान की शुष्क भूमि में एक हरियाली की सौगात है। कई प्रकार के हरे भरे पेड़ पौधे इस स्मारक को घेरे हुए हैं। अगर आप इस बगीचे की सैर करने आते हैं तो इस बाग़ का हर कोना आपका मन मोह लेगा। आप यहाँ किसी भी चीज़ को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।
जब आप मुख्य प्रवेश द्वार से अंदर जाते हैं, तो मार्ग के दोनों किनारों पर बहुत ही सुंदर छोटे फव्वारे दिखाई देते हैं। यदि यह फव्वारे आधुनिक काल में बनाए गए होते, तो हमें उनके संचालन प्रक्रिया से आश्चर्य नहीं होता। लेकिन यहाँ एक अद्भुत बात है की यह उस समय मे बनाए गए और संचालित किए गए जब बिजली भी नहीं थी, तो सोचिये यह कैसे संभव हुआ होगा।
परन्तु, वास्तव में यह बहुत सरल हैं। ये उधान फ़तेहसागर झील के पास में तथा अपेक्षाकृत नीची भूमि पर बनाया गया है तथा फ़तेह सागर झील से उधान तक भूमिगत पानी की पाइप लाइन का एक विशाल नेटवर्क बनाया गया और जिसके कारण उस काल में बिना बिजली तथा मोटर के बहुत ही जबरदस्त तरीके से फव्वारे चला करते थे। ये फव्वारे पूर्ण रूप से दबाव तकनीक पर संचालित होते हैं। दबाव को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर वाल्व लगे हुए है। आज के मोटर से चलने वाले फव्वारों की अपेक्षा यह ज्यादा तेजी से चला करते थे।

सहेलियों की बाड़ी का विशाल स्नान क्षेत्र
जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, एक सुंदर नक्काशीदार प्रवेश द्वार आपको एक विशाल निजी स्नान क्षेत्र की ओर ले जाता है। यह एक स्विमिंग पूल की तरह की संरचना थी, यह स्पष्ट रूप से महिलाओं द्वारा स्नान करने और पानी में आराम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
इस जल कुंड के मध्य में मुख्य फव्वारा लगा हुआ है जो सफ़ेद मार्बल से छतरीनुमा आकर का बना हुआ है, जिसमे ऊपर एक पक्षी की आकृति है जिसके चोंच से पानी की बौछार जैसी पतली फुहारें निकलती हैं। ऐसे लगता है मनो यह पक्षी बारिश मे नृत्य कर रहा हो। इस सुंदर फव्वारे पर आकर्षक नक्काशी करी हुई है। मुख्य फव्वारे के चारो तरफ, चार काले मार्बल की छतरीया बनी हुई है जिनकी छतों पर भी पक्षियों की आकार के पानी के फव्वारे हैं जिन पर भी अद्भुत नक्काशी की गई है। ये सभी चीजें सहेलियों की बाड़ी को देखने के लिए एक दिलचस्प जगह बनाती हैं।
पूल (जलकुंड) के ठीक पीछे कमरों की एक पंक्ति है। जिसका उपयोग तब चेंजिंग रूम के रूप में किया जाता होगा, पर यह सिर्फ चेंजिंग रूम नहीं है। इन कमरों की छतो पर पाइपलाइनें बिछी हुई है, जिसे छतो पर बनी सुन्दर नक्काशीदार दरारों से पानी नीचे जलकुंड मे गिरता है। अब आप सोचिये एक जल से भरा कुंड बीच मे सुन्दर फुव्वारा और छतो से गिरता पानी, क्या मनमोहक दृश्य होगा। ऐसे लगता है जैसे सावन की बारिश और इस भारी बारिश के बीच में एक सुंदर तालाब में आनंद के पल।
सहेलियों की बाड़ी के फव्वारे के नाम
उद्यान की प्राकृतिक सुंदरता के लिए यहाँ अनेकों फव्वारे लगे हुए है। बाड़ी में ऋतू अनुसार फव्वारे और वृक्षारोपण किया गया था ताकि उधान में पुरे साल भर सावन ऋतु का आनंद लिया जा सके। हर एक फव्वारा दूसरे फव्वारे से अलग है, हर एक का अपना एक अलग डिजाइन है और अपना एक विशेष शावर भी है।
- सबसे पहले स्वागत फव्वारा है जो यहाँ आने वाले लोगों का स्वागत करता है।
- फिर बिन – बादल बरसात (बादलों के बिना बारिश) फव्वारा। यह बरसात की तरह चलता है। इसमें से जो पानी गिरता है उसकी आवाज बिलकुल ऐसी लगती है जैसे बारिश हो रही हो।
- जब आप स्नान क्षेत्र से बाहर निकलते हैं तो आप बगीचे के एक और दिलचस्प हिस्से पर पहुँचते हैं। इस भाग मे एक बहुत ही सुन्दर फव्वारा लगा है जिसको “सावन भादो” कहा जाता है। सावन भादो फव्वारा मानसून (सावन) के महीनों में बारिश का प्रतीक है। दरअसल, हिंदू कैलेंडर में सावन और भादो यह दो महीने के नाम हैं और इन महीनों में अधिकतम वर्षा होती है। यह फव्वारे गर्मी के मौसम में भी वर्षा होने का अहसास करवाते है। पहले यहाँ शाही महिलाओं के लिए झूले लगाए हुए थे। जरा सोचिए रिमझिम फुहारों के बीच इस मनमोहक वातावरण के बीच घूमने का एहसास कितना प्यारा होगा।
- सावन भादो फुव्वारे को पार करते हुए, आप विशाल तथा सुन्दर जल कुंड के पास पहुंचते हैं, जो चारों ओर बगीचे से घिरा हुआ है। यह स्नान क्षेत्र के साथ बने कमरों के पीछे है। इसे कमल तलाई “लोटस पॉन्ड” (Lotus Pond) कहा जाता है क्योंकि कुंड में असंख्य कमल लगे हुए है। तालाब के मध्य मे एक बड़ा सा फुव्वारा है तथा इसके चारो तरफ सफ़ेद संगमरमर के चार हाथी की मूर्तियाँ लगी हुई है, जिनकी सूंड में से पानी निकलता है। हाथी की सूंड से पानी निकल कर कमल के फूलों पर गिरता है, फूलों पर गिरी पानी की बूँदें सूर्य की रोशनी मे चमकते मोतियों के सामान नज़र आती हैं। निश्चित रूप से, यह सहेलियों की बाड़ी के अंदर सबसे प्रमुख संरचनाओं में से एक है।
image via Schwiki, Elephant shaped fountain-Sahelion Ki Bari, Udaipur, CC BY-SA 3.0
- उसके आगे रास लीला नामक फव्वारा लगा हुआ है यह फव्वारा महाराणा का पसंदीदा था। जब वह रोमांटिक मूड में होते थे, तो यहीं अपनी रानी के साथ समय बिताते थे। इस फव्वारे के चारो तरफ लोकनृत्य कलाकार नृत्य किया करते थे तथा सामने भवन के झरोखे से रानिया उन्हें देखा करती थी।
सहेलियों की बाड़ी के सभी फव्वारों की खासियत ये है की इन पत्थर के फव्वारों मे हाथ से सुन्दर नकाशी करी हुई है और पानी के पाइप की फिटिंग भी है वह भी उस जमाने में जब किसी भी तरह की कोई आधुनिक मशीने नहीं थी। यह एक अद्भुत बात है।
प्राकृतिक सुंदरता के अलावा सहेलियों की बाड़ी में एक संग्रहालय भी है। जो पर्यटको को प्राचीन युग की वस्तुओं और वास्तुशिल्प को देखने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। रानियों के महल को ही संग्रहालय मे परवर्तित किया गया।
कुल मिलाकर, सहेलियों की बाड़ी उदयपुर शहर में घूमने के लिए एक खूबसूरत गार्डन है, जो बहुत सारे महलों, मंदिरों और झीलों से घिरा हुआ है। यहाँ की साज-सज्जा और आसपास के सुंदर वातावरण को देखकर हर पर्यटक उस वक्त की महिलाओं के राजसी ठाट-बाट का अनुमान लगा सकता है।
इस बगीचे मे बिताया गया हर पल यक़ीनन हमेशा याद रहेगा। शायद ही कोई ऐसा पर्यटक जो अपनी उदयपुर की यात्रा के दौरान सहेलियों की बाड़ी को याद नहीं रखेगा।
इसके साथ ही यह बगीचा हमे एक सन्देश भी देता है की अगर आप चाहें तो आप कुछ भी कर सकते है। कोई भी कार्य असंभव नहीं है बस इसे पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाइए। जिस प्रकार एक व्यक्ति अपनी इच्छा पूर्ण करने के लिए सूखे रेगिस्तान की धरती पर एक हरा भर बगीचा बना सकता है तो जीवन मे कुछ भी संभव है बस इच्छाशक्ति होनी चाइए।