क्या कभी ऐसा हुआ है जब अपने एक सुन्दर मनमोहक दृश्य की कल्पना करी हो और वह डरावनी हकीकत बन गया हो। जरा सोचिए आप सुन्दर प्राकृतिक झील पर घूमने जा रहे हो और वहां पहुंच कर आपको चारों तरफ सिर्फ हड्डियाँ ही मिले तो। जी हां, यह सत्य है। हमरे देश मे एक ऐसी झील है जहाँ पानी मे हड्डियाँ तैरती है। भारत के राज्य, उत्तराखंड की मशहूर झील है रूपकुंड झील (Roopkund Lake)। इसे कंकाल झील (Skeleton Lake) या मिस्ट्री लेक भी कहते है।
आइये आपको कंकाल झील के रहस्यमय सफर पर ले चलते है।
कहाँ है रूपकुंड झील (Roopkund Lake)?

उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले, मे समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर, की ऊंचाई पर रूपकुंड झील है। यह एक ग्लेशियल झील (Glacial Lake) है। एक सौ तीस फीट चौड़ी यह झील वर्ष के अधिकांश समय, बर्फीली घाटी में एक अकेला ठंडा जमा हुआ तालाब होती है। लेकिन गर्म दिनों में, बर्फ पिघलते ही, यह सैकड़ों खोपड़ीयां और हड्डियां तैरने लगती है यह एक भयानक दृश्य बन जाता है। जो कि कंकाल झील के रूप में जाना जाता है। यह एक वीरान जगह है और इसमें 500 से अधिक मानव कंकाल हैं। अब यह प्रयटकों का एक मनपसंद पॉइंट बन गया है। जो उत्तराखंड आता है वह एक बार कंकाल झील जरूर देखना चाहता है।
वर्षों से, विभिन्न सिद्धांत यह बताने के लिए सामने आए हैं कि यह कंकाल किस से संबंधित हो सकते हैं, साथ ही कब और कैसे यह इस झील मे पहुंच गए। और कब यह रूपकुंड झील से “कंकाल झील” बन गयी। परन्तु कंकाल झील का रहस्य वैसे ही बना हुआ है
रूपकुंड (Roopkund Lake) की खोज
भारतीय हिमालय में बसी हुई, उत्तराखंड की एक हिमाच्छादित झील (Glacial lake) हमेशा रहस्य में डूबी हुई थी, जब तक 1942 में एक ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड (British Forest Guard) ने भारत के रूपकुंड में एक खतरनाक खोज की थी। जब वन रक्षक इस स्थान पर पंहुचा तो सैकड़ों मानव कंकालों को उसने आसपास बिखरा पाया। समुद्री सतह से करीब 16,000 फ़ीट ऊपर, छोटी घाटी के निचे, एक जमा हुआ सरोवर जो कंकालो और हड्डियों से भरा हुआ था, गर्मी के कारण बर्फ पिघल रही थी और अधिक हड्डियाँ निकलती आ रही थी जो पानी मे तैर रही थी। जिसे देखकर ऐसा कहा जा सकता था की रूपकुंड झील (Roopkund lake) में निश्चित ही कुछ भयानक घटना हुई होगी।
रूपकुंड झील Roopkund Lake (कंकाल झील) के रहस्य से जुड़ी कहानियाँ

शुरुआती धारणा यह थी कि ये जापानी सैनिकों के अवशेष हो सकते हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हिमालय के मार्ग से भारत में घुसते हुए मर गए थे। ब्रिटिश सरकार ने, जापानी आक्रमण से घबराकर, अपने जांचकर्ताओं की एक टीम को यह निश्चित करने के लिए यहाँ भेजा कि क्या यह सच है। हालाँकि, परीक्षण के दौरान उन्होंने महसूस किया कि ये हड्डियाँ जापानी सैनिकों की नहीं थीं, क्योंकि कंकाल बहुत पुराने थे, ताज़ा नही थे।
कुछ विशेषज्ञ और साइंटिस्ट मानते हैं कि इन सभी लोगों की मौत चारों तरफ ऊंचे पहाड़ होने की वजह से किसी बीमारी से नहीं बल्कि ओलावृष्टि और हिमस्खलन की वजह से हुई थी। शोध से पता चलता है कि मानव कंकालों के सिर में चोट लगी थी। यह चोट संभावित रूप से क्रिकेट के साइज की गेंद के आकार वाले ओलो (बर्फ) के गोलों से लगी थी।
एक और सिद्धांत के अनुसार यहाँ एक भयंकर बीमारी या महामारी ने इन लोगो को मार डाला। महामारी के समय उनके पास प्रयाप्त उपचार व्यवस्था नहीं थी जिस कारण ये अपना बचाव नहीं कर पाए, और सबकी मृत्यु एक साथ हो गयी।
रूपकुंड झील (Roopkund Lake) का वैज्ञानिकअध्ययन
विद्वानों और वैज्ञानिकों का इस बारे में अगल-अगल मत है। मानव कंकाल मिलने का कारण खोजना सभी वैज्ञानिकों खोजकर्ताओं के लिए चिंता का विषय बने हुए है। मानवविज्ञानी कई दशकों से रूपकुंड झील के बारे में जानते हैं, लेकिन इसके कंकालों से जुड़े रहस्य के बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त हुई है। रॉकस्लाइड्स, पिघलती बर्फ और यहां तक कि मानव हलचल ने अवशेषों को स्थानांतरित कर दिया, जिससे यह समझना मुश्किल हो गया कि कब और कैसे इतने सारे लोग कहाँ से आये, वे कौन थे।
परन्तु यह स्पष्ट था कि हड्डियां वास्तव में काफी पुरानी थीं। झील मे पाई गई, मांस, बाल, और हड्डियाँ, शुष्क, ठंडी हवा और बर्फ के द्वारा खुद ही संरक्षित हो गया था, साथ ही झील मे चमड़े के चप्पल व बटुआ, लड़की और मिटटी के बर्तन, शंख, अन्य आभूषण पाये गए, लेकिन कोई भी ठीक से निर्धारित नहीं कर सकता था कि वे कब से हैं। इससे ज्यादा उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस छोटी सी घाटी में 500 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। दशकों तक, कोई भी कंकाल झील के रहस्य पर प्रकाश नहीं डाल सका।
सन 2004 में हुए अध्ययन के बाद ऐसा लगा की इस घाटी का रहस्य आखिर उजागर हो ही जायेंगा। लेकिन इसका जवाब इतना विचित्र था की जिसके बारे में कोई सोच भी नही सकता था।
भारत, अमेरिका और जर्मनी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए डीएनए DNA विश्लेषण और रेडियो कार्बन डेटिंग परीक्षण से पता चलता है कि यह मानव कंकाल 12वीं से 15 वीं सदी के बीच के है। इतने सारे लोगों के मरने की घटना 850 ई० में हुई होगी। डीएनए विश्लेषण से प्राप्त हुई नयी जानकारी ने, रूपकुंड झील में हड्डियों के बारे में नए सवाल उठाए हैं। एक अध्ययन में 38 अवशेषों की डीएनए जांच की, शोधकर्ताओं ने इन 38 कंकालों को अलग-अलग समूहों से जोड़ा, जिनमें दक्षिण एशियाई पूर्वजों (South Asian Ancestry) के 23 पुरुष और महिलाएं शामिल हैं, 14 पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र (Eastern Mediterranean Region) से जुड़े और दक्षिण-पूर्व एशियाई-संबंधित डीएनए (Southeast Asian) वाले एक व्यक्ति हैं।
अतः डीएनए साक्ष्य इंगित करते हैं कि लोगों के अलग-अलग समूह थे, एक परिवार या निकट संबंधी व्यक्तियों का समूह, और एक दूसरा छोटा, स्थानीय लोगों का छोटा समूह, संभवतः गाइड के रूप में काम पर रखा गया। छल्ले, भाले, चमड़े के जूते, और बांस की सीढ़ियाँ मिलीं, जिससे विशेषज्ञों का मानना था कि घाटी में स्थानीय लोगों की मदद से कुछ तीर्थयात्रियों भी रुके थे।
इस विश्लेषण से यह भी पता चला की सभी शवों की मौत एक ही तरह से हुई थी, सिर पर चोट लगने से। सभी खोपड़ियों में छोटी गहरी दरारें है वो हथियारों की नहीं, बल्कि कुछ गोल आकर की वस्तु के परिणामस्वरूप बनी थी। शव के भी केवल सिर और कंधे पर ही जख्म थे, जैसे कि सीधे ऊपर से कुछ आ गए हों। परन्तु यह अध्ययन यह भी बताता है की यहाँ सामूहिक तौर सबकी एक साथ मृत्यु नहीं हुई थी, यहाँ मिलने वाले कंकाल अलग अलग समय के है।
हिमालय की महिलाओं के बीच एक प्रसिद, पारंपरिक लोक गीत है। गीत में एक देवी का वर्णन किया गया है जो बाहर से आये लोगों पर गुस्सा करती है जिन्होंने उसके पहाड़ी सौंदर्य को नुकसान पहुँचाया है और उस देवी ने उन पर “लोहे की तरह कठोर” ओलो की बारिश की, जो मौत की बारिश बन गयी। वैज्ञानिकों द्वारा किये गए अनुसंधान और विचार विमर्श के बाद, 2004 के रिसर्च से भी निष्कर्ष पर आया की अचानक हुई भयंकर ओलावृष्टि से सभी लोगों की मौत हो गई। क्योंकि घाटी में फसे लोगो के पास कहीं भी, छिपने या पनाह लेने के कोई स्थान नहीं था और “लोहे की तरह सख्त” क्रिकेट बॉल के आकार के ओलावृष्टि हजारों लोगों पर अचानक से आ गिरे, जिसके परिणामस्वरूप यात्रियों की विचित्र प्रकार से मृत्यु हो गई। 1200 साल तक उनकी कोई खोज नहीं हुई और सभी शव वही पड़े रहे और जम गए, बर्फीले वातावरण के कारण कई लाशें भली भांति संरक्षित थी। सदियों बाद उस क्षेत्र में भूस्खलन के साथ, कुछ लाशें बह कर झील मे चली गयी।
इस अध्ययन मे जिस बात का पता नहीं चल सका वो यह है की, यह समूह आखिर कहाँ से आया था और जा कहां रहा था। इस क्षेत्र मे व्यापार मार्ग के तो कोई सबूत नहीं मिले है न ही की किसी साम्राज्य के कोई सबूत है। पर हाँ, यह रूपकुंड, नंदा देवी पंथ की महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा के मार्ग पर स्थित है जहां नंदा देवी राज जाट उत्सव लगभग प्रति 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता था। तो हो सकता है यह सब तीर्थयात्री ही हो जो इस प्राकृतिक आपदा मे फस गए।
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