भारत की संस्कृति और इतिहास रहस्यों से भर हुआ है। भारत के हर कोने मे कोई न कोई रहस्य मिल ही जायेगा। ऐसा ही रहस्य भारत के पवित्र शहर काशी में भी है। भगवान शिव और उनकी प्रिय नगरी काशी दोनों ही निराली है। जो कहीं नहीं होता वह काशी में होता है। उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी (काशी) मे गंगा नदी के बेहद करीब बना है रत्नेश्वर महादेव मंदिर।
वाराणसी (काशी) का रत्नेश्वर महादेव मंदिर एक अनोखा मंदिर है। यह रत्नेश्वर मंदिर नौ डिग्री तक तिरछा झुका हुआ है, एक ऐसा शिव मंदिर है जहाँ आम मंदिरों की तरह भगवान शिव की पूजा अर्चना नहीं होती, ना ही कोई भक्त भगवान को पुष्प अर्पण करता है और ना ही जल से उनका अभिषेक करता है। इस महादेव मंदिर में ना तो बोल बम के नारे गूंजते हैं और ना ही घंटा की धवनि सुनाई देती है।
अब आप सोच रहे होंगे की ऐसा कैसे संभव है, की जो शहर मंदिरों के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है वहाँ महादेव के मंदिर में दर्शन और पूजन करने वाला कोई भक्त नहीं होता है। तो चलिए आज आपके इस प्रश्न का उतर देते है और रत्नेश्वर महादेव मंदिर के रहस्य को जानने का प्रयत्न करते है।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य
कहाँ है यह मंदिर?
रत्नेश्वर मदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) शहर मे मणिकर्णिका घाट के समीप दत्तात्रेय घाट पर स्थापित है। महाश्मशान के पास बसा यह मंदिर करीब पांच (500) सौ बरस पुराना है। रत्नेश्वर मंदिर अपने नींव से 9 डिग्री झुका है और इसकी ऊंचाई 13 मीटर है।
मंदिर की वास्तुकला
इस मंदिर की वास्तुकला बेहद अलौकिक है। यह सुरुचिपूर्ण ढंग से एक नागरा शिखर और चरण मंडप के साथ शास्त्रीय शैली में निर्मित है। परन्तु इस भव्य मंदिर की वास्तुकला को निहारने का ज्यादा समय नहीं मिलता क्योंकि यह अधिकांश समय जलमग्न रहता है।

दरअसल जिस स्थान पर मंदिर बना है वह स्थान बहुत ही असामान्य है। वाराणसी (काशी) मे मुख्यता मंदिर गंगा नदी के तट पर निर्मित है परन्तु यह अन्य मंदिरो के विपरीत, मणिकर्णिका घाट के निचले स्तर पर बनाया गया है। यही कारण है की इस मंदिर का गर्भगृह, गर्मियों के कुछ महीनों को छोड़ कर, वर्ष के अधिकांश समय पानी के नीचे रहता है। मानसून के समय मे जलस्तर इतना बड़ जाता है की गंगा नदी का जल, 40 फीट से ऊंचे इस मंदिर के शिखर तक पहुंच जाता है। मानसून के दौरान, इस मंदिर में कोई पूजा अर्चना नहीं की जाती। बाढ़ के बाद मंदिर के अंदर कीचड़ जमा हो जाता है।
इसके अलावा मंदिर की एक और खासियत भी है। यह रत्नेश्वर मंदिर, अपनी नींव से 9 डिग्री झुका हुआ है और यह कैसे झुका इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है। परन्तु इतने वर्षों के दौरान मंदिर के अधिक समय के लिए जलमग्न होने के बावजूद और मंदिर टेढ़ा होने के बाद भी ये आज तक कैसे खड़ा है, इसका रहस्य कोई नहीं जानता है।
रत्नेश्वर मंदिर किसने बनाया / रत्नेश्वर मंदिर का इतिहास (कथाएँ)
कोई भी ठीक से नहीं जानता की, मंदिर को किसने बनवाया और इतना झुका हुआ क्यों बनाया है। भारत में अनेकों इमारतों और स्मारकों की तरह, रत्नेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक और ऐतिहासिक बातें है। मंदिर का झुकना किसी संरचनात्मक समस्या का परिणाम हो सकता है, या क्योंकि यह गाद पर बनाया गया था इसलिए झुका हुआ है, या एक अभिशाप के कारण।
इस मंदिर के निर्माण के बारे में कई कथाएं कही जाती हैं जिन मे से कुछ मुख्य निम्न है ।
रानी अहिल्या बाई की कहानी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सबसे प्रचलित कथा रानी अहिल्या बाई होलकर के समय की है। जिस समय रानी अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों आदि का निर्माण करा रही थीं उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के समीप एक शिव मंदिर का निर्माण कराने की इच्छा जताई, जिसके निर्माण के लिए उसने अहिल्या बाई से कुछ रुपये भी उधार लिए और इसे निर्मित करवाया।
जब इस मंदिर का निर्माण हुआ तो, इस मंदिर को देख अहिल्या बाई अत्यंत प्रसन्न हुईं, लेकिन उन्होंने अपनी दासी रत्ना बाई से कहा कि वह अपना नाम इस मंदिर से न जोड़े अर्थात वह इस मंदिर के निर्माण मे अपना नाम न दें, लेकिन दासी को यह बात अच्छी नहीं लगी और बाद में उसने अपने नाम पर ही इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रख दिया। इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और दासी को श्राप दिया कि इस मंदिर में कोई भी दर्शन पूजन नहीं कर सकेगा।

माँ के ऋण की कहानी
रत्नेश्वर मंदिर से जुड़ी एक और कहानी भी है। कथा के अनुसार 16वीं शताब्दी के आस पास कई शासक, राजा, रानियाँ काशी रहने आते थे। अपनी काशी यात्रा के दौरान अनेकों मंदिर तथा हवेलियों का निर्माण करवाया करते थे। उस समय राजा का एक सेवक अपने साथ अपनी माँ को भी काशी लेकर आया था। राजा के सेवक ने गंगा घाट पर कई शिल्पकारों को बुलाकर, अपनी माँ के नाम से महादेव का मंदिर बनवाना शुरू किया और मंदिर निर्माण के बाद उसने मंदिर का नाम अपनी माँ के नाम पर रख दिया। सेवक की माँ का नाम रत्ना था इलसिए मंदिर का नाम रत्नेश्वर मंदिर रख दिया।
परन्तु मंदिर निर्माण के बाद, उसे देख कर उसमे अहंकार की भावना आ गई। मंदिर के निर्माण हो जाने के पश्चात वो अपनी माँ को मंदिर दिखने ले गया और अहंकार मे आकर उसने बोल दिया, की ले माँ आज मैंने तेरे दूध का कर्ज उतार दिया। यह सुन्न कर माँ ने महादेव को बाहर pसे ही प्रणाम किया और वापस जाने लगी तो बेटे ने कहा मंदिर के अंदर चल कर दर्शन कर लो। तब माँ ने जवाब दिया की बेटा पीछे मुड़ कर तो देख ले तेरा मंदिर खंडित है, जैसे ही उसने पीछे देखा वह मंदिर एक तरफ मिट्ठी मे धस गया और मंदिर का आकर एक तरफ झुक हुआ हो गया था।
किसी माँ के क़र्ज़ को कभी नहीं चुकाया जा सकता, इसलिए उसकी माँ के अभिशाप के कारण मंदिर एक तरफ झुक गया। यही कारण है कि इस मंदिर का एक अन्य नाम “मातृ ऋण” भी है।
रत्नेश्वर मंदिर की पीसा के लीनिंग टॉवर (The Leaning Tower of Pisa) से तुलना
- रत्नेश्वर मंदिर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर मे स्थित है और पीसा का लीनिंग टॉवर इटली के पिसा शहर में स्थित है।
- रत्नेश्वर मंदिर लगभग 9 डिग्री पर झुक है जबकि पीसा का लीनिंग टॉवर 5.5 डिग्री झुक हुआ है जो रत्नेश्वर मंदिर से कम है।
- रत्नेश्वर मंदिर की ऊँचाई 13मीटर है जबकि पीसा 57 मीटर ऊंचा है।
- काशी के अन्य मंदिरो की तरह यह शानदार मंदिर अधिक लोकप्रिय स्थान नहीं है, जबकि पीसा का लीनिंग टॉवर विश्व भर मे प्रसिद्ध है।
- वास्तुकला के अनुसार लीनिंग टावर ऑफ पीसा तथा रत्नेश्वर मंदिर दोनों को ही अद्भुत माना जाता हैं। जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों का बहुत ध्यान आकर्षित करता है।
यह दुर्लभ मंदिर आज भी लोगों के लिए आश्चर्य बना हुआ है। मंदिर टेढ़ा होने के बावजूद भी ये आज कैसे खड़ा है, इसका रहस्य कोई नहीं जानता है। यह अपने आप में एक अजूबा है। परन्तु इस अनोखे तथा अद्भुत मदिर को, उसकी मौलिकता को नष्ट किए बिना अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए और इसका विकास किया जाना चाइए। हम आशा करते है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद
Her her mahadev 🙏🙏