रामेश्वरम मंदिर–एक अद्भुत मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य।

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रामेश्वरम मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है, जिसे रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। रामेश्वरम मंदिर भारत के राज्य तमिलनाडु के समुद्र तट पर स्थित है | यह भगवान शिव का एक मंदिर है, भगवान शिव के 12 स्थापित ज्योतिर्लिंग में से एक इस मंदिर में मौजूद है। यह तीर्थ स्थल हिन्दुओं के चार धामों में से एक है, भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वर की है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है रामेश्वरम का रामनाथस्वामी मंदिर रामायण के जितना ही पुराना है। यह भारत का एक बहुत ही सुंदर तथा पवित्र तीर्थ स्थल है जहां प्रति वर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं।

रामेश्वरम मंदिर की स्थापना और इतिहास के बारे में कई कथाएं प्रचलित है। आइए रामेश्वरम मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य आपको बताते है।

 

रामेश्वरम मंदिर कहाँ है / Rameswaram Mandir Kahan Hai?

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image via- KARTY JazZ, The view of Pamban Island from Pamban Bridge, Rameswaram, CC BY-SA 4.0

रामेश्वरम, भारतीय राज्ये तमिलनाडु के दक्षिण में रामनाथपुरम जिले का एक क्षेत्र है। यह भारत की मुख्य भूमि से अलग पम्बन द्वीप पर स्थित है और यह पम्बन द्वीप श्रीलंका के मन्नार द्वीप, से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। इस पम्बन द्वीप को रामेश्वरम द्वीप के रूप में भी जाना जाता है। रामेश्वरम द्वीप 61.8 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और शंख के आकार का है। यह पम्बन ब्रिज (Pamban Bridge) द्वारा भारत की सीमा से जुड़ा हुआ है। रामनाथ स्वामी मंदिर रामेश्वरम के प्रमुख क्षेत्र में स्थित है।

बंगाल की खाड़ी एवं अरब के सागर के संगम स्थल पर स्थित इस पवित्र धाम की स्थापना से भगवान राम की कथा जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वह जगह है जहां से भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता को राक्षस रावण से छुड़ाने के लिए, समुद्र पर राम सेतु का निर्माण किया था। जिसे सेतु करई कहा जाता है, एक फ़्लोटिंग स्टोन ब्रिज (Floting Stone Bridge) है।

रामेश्वरम मंदिर का इतिहास – Rameswaram Temple History in Hindi

रामेश्वरम मंदिर, जो सदियों पहले निर्मित हुआ था, यह अपने वर्तमान विशाल स्वरूप में धीरे धीरे विकसित हुआ है। मंदिर के इतिहास से जुड़े कुछ प्रसिद्द तथ्यों के मुताबिक, मंदिर के विकास में हिन्दू शासकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके योगदान के कारण ही रामेश्वरम मंदिर का विकास हो पाया था। कहा जाता है की 15वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक मंदिर का निर्माण हुआ है। कुछ तथ्यों के मुताबिक 15वीं सदी में राजा उडैयान सेतुपति एवं नागूर निवासी वैश्य द्वारा मंदिर के गोपुरम का निर्माण करवाया गया । फिर सोलहवी सदी में मंदिर के दक्षिण के दूसरे हिस्से की दीवार का निर्माण एवं नंदी मंडप बनवाया गया। मंदिर का आंतरिक गर्भगृह श्रीलंका के सम्राट पराक्रम बहू द्वारा बनाया गया  था।

वर्तमान समय के मंदिर के आकार को 17 वी शताब्दी में बनवाया गया था। जानकारों के अनुसार राजा किजहावन सेठुपति या रघुनाथ किलावन ने इस मंदिर के निर्माण कार्य कीआज्ञा दी, और चार धामों में से एक रामेश्वरम मंदिर का निर्माण करवाया गया। मंदिर के निर्माण  में सेठुपति साम्राज्य के जफ्फना राजा का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। मंदिर के गर्भगृह को जफ्फना साम्राज्य (Jaffna kingdom) की जेयावीरा किन्कैअरियन (JeyaveeraCinkaiariyan) और उनकी उत्तराधिकारी गुणवीरा किन्कैअरियन (GunaveeraCinkaiariyan) ने पुनर्निर्मित करवाया था।

इसके बाद जेयावीरा किन्कैअरियन की उत्तराधिकारी गुणवीरा किन्कैअरियन रामेश्वरम के ट्रस्टी थी और मंदिर के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कला के साथ-साथ आपको रामनाथस्वामी मंदिर में कई प्रकार की अलग-अलग शिल्पकारी भी देखने को मिलेगी क्योंकि समय-समय पर इस मंदिर की संरचना कई राजाओं ने की थी।

शिवलिंग की स्थापना / ज्योतिर्लिंग की स्थापना -Shivling Ki Sthapana

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भारत में निर्मित सभी हिन्दू मंदिरों की तुलना में रामेश्वरम मंदिर का महत्व सबसे अधिक है। कहा जाता है की रामायण युग में भगवान श्रीराम द्वारा शिवजी की पूजा अर्चना कर, रामानाथस्वामी ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया था।

पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्रीराम महापापी राक्षस रावण का विनाश कर वापस आ रहे थे, तो उन्होंने ने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया था। जब ऋषियों को पता चला की प्रभु श्रीराम आये है, तो वे सब दर्शन करने आए, तब उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगने की बात कही गई। जिसके पश्चाताप के लिए ऋषियों ने, श्रीराम को भगवान शिव की पूजा करने के लिए कहा, जिसे वह ब्रह्महत्या अर्थात रावण के वध के पाप से मुक्ति पा सकते हैं। लेकिन, द्वीप में कोई शिव मंदिर नहीं था, इसलिए भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया। अतः श्रीराम ने शिवलिंग स्थापना के लिए एक शुभ समय निर्धारित किया और इसके लिए भगवान ने परमवीर हनुमान को कैलाश पर्वत (Mount Kailash) पर एक लिंग लाने के लिए भेजा परंतु वह लिंग लेकर समय पर वापस ना लौट सके इसीलिए माता सीता ने खुद रेत का एक लिंग बनाया जिसे ‘रामलिंगम’ कहा गया। अतः भगवान श्रीराम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ शिवलिंग की स्थापना की। जब पवन पुत्र हनुमान वापस लौटे तो पूजा समाप्त हो चुका थी, उन्हें यह देखकर बहुत दुख लगा। उनके दुख को देखकर भगवान श्रीराम ने उस लिंग को भी रामलिंगम के साथ में स्थापित किया और उसका नाम रखा ‘वैश्वलिंगम’। साथ ही यह आशीर्वाद दिया की सबसे पहले ‘वैश्वलिंगम’ की पूजा होगी बाद में ‘रामलिंग’ की। इस वैश्वलिंगम को कासीलिंगम और हनुमालिंगम के नाम से भी जाना जाता है। रामनाथस्वामी को अर्पित करने से पहले विश्वनाथ से प्रार्थना की जाती है।

हालाँकि, उपरोक्त वाकये महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण मे नहीं है और न ही रामायण के तमिल संस्करण में कांबर द्वारा लिखित है। हाँ, पर हो सकता है बाद के कुछ संस्करणों में कुछ मिले, जो तुलसीदास और अन्य लोगों द्वारा लिखे गए हैं।

महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण के अनुसार इस शिवलिंग का निर्माण उस समय हुआ था, जब श्रीराम लंका के राजा रावण से युद्ध करने की तैयारी कर रहे थे। तब भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए श्रीराम ने इस शिवलिंग का निर्माण कर पूजा अर्चन की और उस पर जल चढ़ाया था। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें विजय श्री का आशीर्वाद दिया था। साथ ही श्रीराम ने शिव जी से प्रार्थना करी की वह इस सृष्टि के कल्याण के लिए सदैव ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ विराजमान रहे। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और तब से रामेश्वरम में यह रामानाथस्वामी ज्योतिर्लिंग स्थापित है और इसकी पूजा अर्चन होती है।

रामेश्वरम मंदिर की आर्कषक बनावट – Rameshwaram Temple Architecture 

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rajaraman sundaram, Thousand pillar corridor,Rameshwaram temple,tamilnadu – panoramio, CC BY 3.0

हिन्दू धर्म के प्रमुख पवित्र तीर्थ धामों में से एक रामेश्वम मंदिर अपनी भव्यता एवं आर्कषक बनावट के लिए भी जाना जाता है। यह भारतीय निर्माण कला का बेहद आर्कषक और खूबसूरत नमूना है। मंदिर का क्षेत्र लगभग 15 एकड का है जिसमें आपको कई प्रकार की भव्य वस्तुकलाएँ देखने को मिल जाएंगे। मंदिर के चारो ओर पत्थर की मजबूत दीवारें हैं। रामेश्वरम मंदिर की लंबाई 1000 फुट , चौड़ाई 650 फुट है एवं125 फुट ऊँचा है। मंदिर का प्रवेश द्धार 40 मीटर ऊंचा है। रेत के द्वीप पर बने इस अद्भुत मंदिर में महान वास्तुकला का बहुत प्रभावशाली काम किया गया है।

रामनाथस्वामी मंदिर बड़ा विस्मयकारी हैं जो एक ही बार में मन मोह लेता है। इस महत्वपूर्ण तीर्थस्थल पर हर मूर्ति पौराणिक कथाओं में डूबी हुई है। इसके अलावा, रामेश्वरम मंदिर अपने विश्व के सबसे लंबे गलियारों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ तीन विशाल गलियारे हैं। पहला गलियारा सबसे पुराना है और 12 वीं शताब्दी का है, लेकिन इसे समय समय पर पुनर्निर्मित किया गया हैं। दूसरे गलियारे में 108 शिवलिंग और साथ ही गणपति की मूर्ति है। तीसरा गलियारा 1212 स्तंभों वाला सबसे बड़ा आकर्षण है, जिसमें 3.6 मीटर ऊंचे ग्रेनाइट के खंभे हैं, जो पूरी तरह से नक्काशीदार हैं और इनको ऐसे अनुपात में लगाया गया है, जिसे ऐसा लगता है की यह आपके साथ चल रहे हैं।

अतः यह स्वाभाविक ही है की इसे दुनिया का सबसे लंबा स्तंभवाला गलियारा कहा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि ये नक्काशीदार ग्रेनाइट के खंभे यहाँ स्थानीय तौर पर उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए यह माना जाता है कि इन्हें तमिलनाडु के किसी अन्य हिस्से से लाया गया था। इन स्तंभों पर की गई नक्काशी काफी अद्भुत है और चमकीले रंगों में  चित्रित की गई है, नियमित रखरखाव के कारण यह आज भी आकर्षक लगता है। यह दृश्य आपके मन मस्तिष पर एक ऐसी छाप छोड़ता है जो हमेशा आपके साथ रहता है, और इस जगह से जाने के बाद भी याद रहता है।

इसके अतिरिक्त भी मन्दिर में बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर शिवप्रतिमाएँ हैं। नन्दी जी की भी एक विशाल और बहुत आकर्षक मूर्ति लगायी गई। भारतीय वास्तुकला की यह उत्कृष्ट कृति भारत के सबसे बड़े मंदिर की सजावट को ओर बड़ा देती है।

रामेश्वरम मंदिर की खास बातें

मणि दरिसनम / Mani Darisanam

रामेश्वरम मंदिर में, एक आध्यात्मिक तथा अद्भुत मणि है। कहा जाता है यह मणि “शेषनाग” का “मणि” है। शेषनाग, जिस पर भगवान विष्णु विराजमान रहते है। इस मणि के दर्शन रोज़ सुबह होते है, जिसका समय 4 बजे  से 5 बजे तक है, जिसे “मणिदरिसनम” कहते है। यह मणि “स्पतिकम” (एक कीमती पत्थर) “पवित्रशिवलिंग” के रूप में बना है।

अग्नितीर्थम /Agnitirtham

इस मंदिर में लगभग 22 कुएँ हैं कहा जाता है की रामेश्वरमं मंदिर में दर्शन करने से पहले इन 22 कुंडो से स्नान करना होता है जिसे तीर्थ सन्नानम कहते है, जिसका आरम्भ अग्नितीर्थम में स्नान करके होता है। सभी मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर समुद्र में स्नान करते हैं जिसे अग्नितीर्थम कहते है। उसके बाद मंदिर में प्रवेश करते हैं। एक अग्नितीर्थम वह स्थान है जहाँ लोगों का मानना ​​है कि इस स्थान पर स्नान करने से लोगों के सभी दुख कष्ट दूर होते हैं और पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस पानी में कई औषधीय गुण भी हैं इस पानी में नहाने के बाद सभी रोग दूर हो जाते हैं। मन्दिर के बाहर भी बहुत से कुएँ बने हुए हैं, किन्तु उन सभी का जल खारा है। मन्दिर परिसर के भीतर के कुँओं से सम्बंधित एक ऐसी विशेषता है कि ये कुएं भगवान श्रीराम ने अपने अमोघ बाणों के द्वारा तैयार किये थे। इसलिए इन कुओं का जल मीठा है।

पम्बन ब्रिज / Pamban Bridge

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image via- Sriram Natrajhen, Pamban Rail Bridge, Rameshwaram, CC BY-SA 3.0

पम्बन ब्रिज एक कैंटिलीवर ब्रिज (cantilever bridge) है, जो रामेश्वरम द्वीप को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ता है। यह सड़क पुल और रेलवे पुल दोनों का काम करता है, हालांकि मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल रेलवे पुल की तरह होता है। यह भारत का पहला समुद्री पुल था। परन्तु अब मुंबई में बने सी लिंक ब्रिज (Sea Link Bridge) के बाद यह भारत का दूसरा सबसे लंबा समुद्री पुल है। यह डबल-लीफ बेसक्यूल ब्रिज (double-leaf bascule bridge) है, जिसे जहाजों को पुल के नीचे से गुजरने के लिए खड़ा किया जा सकता है।

रामसेतु / सेतु करई / Ram Setu

सेतु करई रामेश्वरम के द्वीप से 22 किमी पहले एक जगह है, जहाँ से कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम से एक फ़्लोटिंग स्टोन ब्रिज (Floating Stone Bridge), रामसेतु का निर्माण किया था, जिस पर चल कर राम जी की सेना ने समुद्र पार किया था। यह पुल आगे चल कर रामेश्वरम में तलेसीमन्नार (Talaimannar ) तक रामेश्वरम में वर्णित धनुष्कोडी तक जारी रहा। जैसा कि महान महाकाव्य रामायण में लिखा गया है।

धनुषकोडि / Dhanushakodi

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image via- Armstrongvimal, Dhanushkodi beach, CC BY-SA 3.0

रामेश्वरम द्वीप के सबसे दक्षिणी छोर को धनुषकोडि के नाम से जाना जाता है, जहां कोठंडारामस्वामी मंदिर ( Kothandaramaswamy temple) स्थित है। यह जगह अक्सर चक्रवातों और तूफानों के कारण बर्बाद हो जाती है, लेकिन मंदिर का एक भी पत्थर कभी विस्थापित नहीं हुआ। यह वो जगह है जहां रावण के भाई विभीषण ने भगवान राम के सामने आत्मसमर्पण किया था। इसलिए धनुषकोडी में सेतुथ्रीथम पर पहुंचने के लिए, आपको तीन किमी पैदल चलना पड़ता है। सेतु में एक ही डुबकी बहुत पवित्र मानी जाती है।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ। ए.पी.जे. अब्दुलकलाम, धनुषकोडी गांव से ही आते है, जिसे मछली पकड़ने वाले गांव के नाम से जाना जाता हैं।

जटायुतीर्थम

जटायु नमक गिद्ध एक दिव्य पक्षी था। भगवान श्रीराम का अतिप्रिय था। जब रावण देवी सीता को ले जा रहा था तब जटायु ने देवी को बचने का बहुत प्रयत्न किया। रावण से युद्ध के समय रावण ने जटायु के पंख काट दिए थे और वह धरती पर आ गिरे। भगवान राम के जीवन को बचाने के लिए उन्होंने अपनी जान गंवा दी और इसलिए इनके बलिदान की हमेशा सराहना की जाती है और  इन्हें आज भी एक देवता के रूप में पूजा जाता है। जटायुतीर्थम, जटायु की याद में बनाया गया पवित्र मंदिर है, जहाँ इन्हें मिट्टी में दफनाया गया उसी स्थान पर जटायु मंदिर बनाया गया है।

सुंदर समुद्र तट / Beautiful Beach

रामेश्वरम का समुद्र तट अपने सुंदर समुद्र के लिए प्रसिद्ध है, और यहाँ की विशेषता यह है की इसमें कोई लहर नहीं है। समुद्र की लहरें अधिकतम 3 सेमी तक ही बढ़ती हैं और दृश्य बहुत बड़ी नदी की तरह दिखता है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने समुद्र देव से लंका का मार्ग प्रशस्त करने की प्रार्थना की थी। समुद्र देवता ने एक वरदान देते हुए कहा कि वह समुद्र की लहरों को कम कर देंगे। जिसे पत्थर के सेतु बनाने में सहायता मिलेगी। तब से यहाँ की लहरें शांत ही रहती है।

रामेश्वरम मंदिर कोई साधारण मंदिर नहीं है, यह धर्म और आस्था का सैलाब है। कहा जाता है कि इस मंदिर में गंगा जल से प्रभू की पूजा करने से सभी इच्छाएँ पूरी होती है। हर साल लाखों लोग रामेश्वरम में प्रभु की उपासना करने के लिए जाते हैं। ऐसे में अगर आपका भी विचार किसी आध्‍यात्मिक यात्रा का है तो आपको भी एक बार ‘रामेश्वरम मंदिर’ के दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए। ‘रामानाथस्वामी ज्योतिर्लिंग’ का दर्शन करके प्रभु का आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए।

 

रत्नेश्वर मंदिर – काशी के रत्नेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य

रामेश्वरम् – एक ऐसा मंदिर जहाँ दर्शन से पहले 22 तीर्थो के जल से स्नान करना पड़ता है।

कैलाश मंदिर, एलोरा: Kailash Temple, Ellora Ka Itihaas


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