माँ चंद्रघंटा -नवरात्री के तीसरे दिन होती है इनकी पूजा

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नवरात्रि का तीसरा दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित है। असुरों के विनाश हेतु माँ दुर्गा, देवी चंद्रघंटा के रूप में प्रकट हुई। यह माँ दुर्गा का तृतीय रूप है। उनके नाम चंद्रघंटा का अर्थ है: ‘चंद्र’ – चंद्रमा, ‘घन्टा’ – घंटी की तरह लटका हुआ। देवी दुर्गा के इस रूप ने भयंकर असुरों का नाश करके देवताओं की रक्षा करी थी। देवी का यह रूप उपासकों को साहस और वीरता प्रदान करता है। नवरात्र के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा करके मनवांछित फल मिलता है।

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image via-DEVENDERPATHAK, Chandraghanta, CC BY-SA 4.0

माँ चंद्रघंटा का स्वरुप

देवी के इस अवतार को उनके माथे पर एक अर्धचंद्राकार चंद्रमा के साथ चित्रित किया गया है, जो घंटी के आकर जैसा दिखता है। इसलिए इसका नाम चंद्रघंटा रखा गया है। यह माना जाता है कि उनके माथे पर सुशोभित घंटी की ध्वनि सभी प्रकार की बुराइयों का नाश करती है। इस देवी का विकराल सुनहरा शरीर और 10 भुजाएँ है और यह शेर पर सवारी करती हैं। उनके 4 बाएँ हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार, और कमंडल हैं, पांचवीं भुजा वरदा मुद्रा में बनी हुई है। उनके 4 दाहिने हाथ में कमल, बाण, धनुष, और जप माला है, पाँचवाँ हाथ अभय मुद्रा में रहता है। इनके कंठ में सफेद पुष्प की माला और रत्नजड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। इस रूप में, वह एक युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार है। उनका क्रोधित रूप केवल तभी देखा जा सकता है जब उन्हें उकसाया जाए अन्यथा, वह काफी शांत है। माँ का यह रूप बुराई का नाश करने के साथ साथ, दुनिया को शांति का आशीर्वाद भी देता है। उनके भक्त उनकी पूजा करके, बाधा मुक्त जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। देवी चंद्रघंटा भक्तों को अभय देने वाली तथा परम कल्याणकारी हैं।  

उत्पत्ति की कथा

कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने शरीर को यज्ञ अग्नि में जला दिया था, तब उसके पश्चात उन्होंने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुनर्जन्म लिया। पार्वती भगवान शिव से शादी करना चाहती थी जिसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की। उनकी शादी के दिन, भगवान शिव अपने सभी अघोरियों और भूतों के साथ देवी पार्वती को अपने साथ ले जाने के लिए पहुंचे तो शिव के इस रूप को देखकर, उनके माता-पिता और सभी अतिथि भयभीत हो गए और पार्वती की माँ मैना देवी डर के कारण मुर्छित ही हो गयी। इन सब को देखते हुए, पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया और भगवान शिव के पास पहुंच गईं। उन्होंने बहुत विनम्र तरीके से, भगवान शिव से एक आकर्षक राजकुमार के रूप में फिर से प्रकट होने का अनुरोध किया और शिव सहमत हो गए। इस बीच, पार्वती ने इस सदमे से अपने परिवार को निकला और सभी अप्रिय यादों को मिटा दिया। फिर भगवान शिव एक राजकुमार के रूप में आए और देवी पार्वती से उनका विवाह हुआ। तब से, देवी पार्वती को शांति और क्षमा की देवी के रूप में उनके चंद्रघंटा अवतार में पूजा जाता है।

देवी चंद्रघंटा की उत्पति की एक और कथा प्रचलित है। भगवान शिव से विवाह करने के बाद देवी महागौरी ने आधे चंद्र के साथ अपने माथे को सजाना शुरू कर दिया और जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के नाम से जाना जाने लगा। देवी चंद्रघंटा, माँ पार्वती का विवाहित रूप है।

पूजा विधान

सभी देवी, देवताओं और ग्रहों की पूजा करके, फिर कलश स्थापना के साथ देवी चंद्रघंटा का आवाह्न करे। फिर दीया, अगरबत्ती जलाएं और फूल चढ़ाए। माँ से विनम्र प्रार्थना करे, की हमे सुख शांति प्रदान करे और बाधामुक्त जीवन का आशीर्वाद दे। फिर निम्मं मंत्रों और श्लोकों का जाप करें। माँ चंद्रघंटा का ध्यान मणिपुर चक्र मे किया जाता है। 

मंत्र

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः

बीज मंत्र

ऐं श्रीं शक्तयै नम:।

उपासना / प्रार्थना मंत्र

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति:

या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

Dhyana Mantra / ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥

मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

Stotra / स्तोत्र

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।

अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।

धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।

सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

Kavacha Mantra / कवच मंत्र

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥

बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।

स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥

कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।

न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥

Aarti / आरती

जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥

चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥

मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥

सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥

हर बुधवार को तुझे ध्याये। श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए। शीश झुका कहे मन की बाता॥

पूर्ण आस करो जगत दाता। कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥

कर्नाटिका में मान तुम्हारा। नाम तेरा रटू महारानी॥

भक्त की रक्षा करो भवानी।

भोग

देवी चंद्रघंटा शांति और क्षमा की देवी हैं। वह अपने भोग के रूप में कुछ सफेद पसंद करती है। इसलिए उनके भोग मे सफेद रंग की वस्तु अवश्य होनी चाहिए। आप प्रसाद के लिए दूध से बनी खीर या कोई मिठाई तैयार कर सकते हैं या उसे प्रसन्न करने के लिए केवल दूध भी भेंट कर सकते हैं। साथ ही आप फल, नारियल, पान और सुपारी भी रख सकते हैं। भोग अर्पित करते समय देवी का आशीर्वाद लें और प्राथना करे की, हे माँ हमारी पूजा स्वीकार करे।

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