हमारे देश के हर एक राज्य के अपने विशेष त्यौहार हैं और यह त्यौहार भारत देश की शान हैं। इन्ही में से एक हैं लोहड़ी। लोहड़ी पंजाब के मुख्य त्यौहारों में से एक हैं जिन्हें पंजाबी बड़े जोरो शोरो से मनाते हैं। यह त्यौहार देश के अलग अलग हिस्सों में अलग- अलग नाम से मनाया जाता हैं जैसे मध्य भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल, गुजरात मे पतंग उत्सव और असम मे माघ बिहू।
लोहड़ी की धूम कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं। इस दिन किसान अपनी नई फसल की खुशियां मनाते हैं और भगवान का धन्यवाद करते हैं। सभी मोहल्ले वाले एक जगह इकट्ठे होकर इसे मनाते हैं,लकड़ियाँ इकट्ठे करके आग जलाई जाती फिर इस पवित्र अग्नि की वे पूजा करते हैं और उसमे गुड़, तिल मूंगफली इत्यादि का भोग लगाते हैं। फिर रेवड़ी मूँगफली का प्रसाद सबको बांटा जाता है। यह त्यौहार अब संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध हो चुका हैं और कई जगहों पर इसके लिए आयोजन किये जाते हैं
लोहड़ी का पावन त्यौहार बस आने ही वाला है और हर साल की तरह इस बार भी लोग इसे बड़ी धूम-धाम से मनाएंगे। लेकिन क्या आप इससे जुड़ी कहानी को जानते हैं। दरअसल इसके पीछे एक नही बल्कि कई कहानियां हैं जिस कारण इस त्यौहार का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता हैं।

आज हम आपको लोहड़ी से जुड़ी तीन कहानियों के बारे में बताएंगे।
1 दुल्ला भट्टी की कहानी (Dulla Bhatti Story)
लोहड़ी के पीछे एक एतिहासिक कथा हैं जिस कहानी का मूल पात्र दुल्ला भट्टी है। इसलिए इसे दुल्ला भट्टी की कहानी के नाम से जाना जाता हैं।
यह कहानी क्रूर मुगल शासक अकबर के समय से जुड़ी हुई हैं। 12वीं शताब्दी के बाद से ही भारत पर कई विदेशी ताकतों ने राज किया, उन्ही मे से था अकबर। मुगलों के काल मे भारतीय (हिंदू बौद्ध, जैन, सिख सभी धर्मो के) लोगो पर अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गए थे। मुख्यतया महिलाओं का सबसे अधिक शोषण होता था।
अकबर के समय में वहां के मुगल अधिकारी पंजाब से बड़े पैमाने पर हिंदू व सिख लड़कियों को अरब देशों में बेच दिया करते थे, जहाँ उनके साथ दुष्कर्म किया जाता था तथा गुलामों के जैसे बर्ताव किया जाता था।
उस समय पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक प्रसिद्ध डाकू था। किंतु वहाँ के लोग उसे डाकू नहीं योद्धा मानते थे, क्योंकि वह मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध लड़ता था व उनसे महिलाओं के मान सम्मान की रक्षा करता था। साथ ही डकैती मे मिली राशि से गरीब लड़कियों की शादी कराया करता था।
कथा के अनुसार उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, (जो अब पाकिस्तान में है) जहाँ सुंदरी और मुनरी नाम की दो बहने अपने माता पिता के साथ रहती थी। कम उम्र मे ही उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया और वह अपने चाचा के साथ रहने लगी उनके बड़े होने पर उनके चाचा ने दोनों बहनो को मुगल राजा के हाथ बेच दिया।
किंतु जब दुल्ला भट्टी को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने ना केवल उन दोनों लड़कियों को मुक्त करवाया बल्कि सुंदरी और मुनरी का पिता बन, उन दोनों की योग्य वर से शादी कराके, उनके आँचल में एक सेर गुड की ढेली बांध कर उन्हें विदा कर दिया।
उसके बाद से दुल्ला भट्टी पंजाब के लोगों में प्रिय होने लगा व वहां का एक तरह से नायक बन गया। तभी से दुल्ला भट्टी की याद में लोहड़ी का पर्व मनाने की प्रथा शुरू हुई और अब पुरे देश में सिख और हिन्दू धर्म के लोग द्वारा हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। उसका नाम आज भी लोहड़ी के गीतों में गाया जाता है और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं।
“सुंदर मुंदरिए हो” ऐसा ही एक प्रसिद्ध गाना है
सुंदर मुंदरिए – हो
तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका -हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
बड़े भोले आये हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया – हो!
2 भगवान शिव व माता सती की कहानी
लोहड़ी के पर्व से जुड़ी एक और कथा है जो भगवान शिव और माता सती की कथा है। देवी सती महादेव की पहली पत्नी थी, जिन्होंने ने यज्ञ अग्नि मे अपनी आहुति दे दी थी।
देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति, सती के विवाह से प्रसन्न नहीं थे। वह महादेव को पसंद नहीं करते थे और न ही उन्हें अपना दामाद मानते थे। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, परन्तु इस यज्ञ मे उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। माता सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और गुस्से मे अपने पिता के यहाँ पहुंच गई। वहां राजा दक्ष ने महादेव का धोर अपमान किया जिससे माता सती का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने हवन कुंड की अग्नि मे स्वयं की आहुति दे दी।
जब भगवान शिव को यह पता चला तो वे अत्यधिक क्रोधित हो गए, उनका तीसरा नेत्र खुल गया और उन्होंने माता सती के शरीर को अपने कंधे पर रख कर तांडव नृत्य करना आरम्भ कर दिया। जिसे चारो और हाहाकार मच गया।
सभी देवताओं द्वारा अनेक प्रयास किये गए परन्तु इन्हे शांत करवाना बहुत मुश्किल हो गया। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किये जिससे महादेव का मोह टूट और वह शांत हो गए। इसके बाद भगवान शिव सब मोह-माया त्यागकर लंबी साधना में चले गये।
माता सती के द्वारा स्वयं को अग्नि में आहुति देने की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। जिसे आज के समय में लोहड़ी कहा जाता है। उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में हर साल लोहड़ी पर मनाया जाता हैं और यही कारण है इस दिन विवाहित लड़कियों को माँ के घर से उपहार भेजने का रिवाज है। विवाहित बेटी को इस दिन वस्त्र, मिठाई व अन्य तोहफे मायके से भिजवाए जाते हैं।
3 भगवान श्रीकृष्ण व राक्षसी लोहिता की कहानी
लोहड़ी (Lohri) पर्व को लेकर एक और कहानी भी प्रचलित है। इस कहानी के अनुसार द्वापर युग में भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण के रूप में, पिता वासुदेव व माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया था। वह मथुरा के राजा कंस के भांजे थे।
कंस को यह श्राप मिला था कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसकी मौत का कारण बनेगी। इसलिए कंस देवकी की सभी संतानो को मरवाना चाहता था।
श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई प्रयास किए, परन्तु वह हमेशा असफल ही रहा। इसी कारण कंस ने लोहिता नामक एक राक्षसी को भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए गोकुल गाँव भेजा था। राक्षसी लोहिता ने पूरे गोकुल में अपना आतंक फैला रखा था। वह अकसर बच्चो को मारकर खा जाती थी। वे मकरसंक्रांति के दिन श्रीकष्ण के वध के लिए पहुंची। श्रीकष्ण ने लोहिता को खेल-खेल में ही मार डाला। लोहिता के उत्पात से मुक्ति पाकर ब्रजवासियों ने उस दिन आग जलाकर और एक दूसरे को मिष्ठान भेंट कर खुशी मनाई। माना जाता है कि उसी समय से लोहड़ी पर्व की शुरुआत हुई।
तो यह थी लोहड़ी के त्यौहार से जुड़ी 3 मुख्य कहानियां। वैसे कहानियां चाहे जो भी हो, यह त्यौहार हमेशा से ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाए जाता है।
👍👍🙏🙏💐