Jagannath Rath Yatra: भारत की जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े 21 दिलचस्प तथ्य

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क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ रथ यात्रा इतनी अद्वितीय तथा दिलचस्प क्यों हैं? ऐसा क्या है जो लाखो भक्तो को यहाँ खींच लाता है? ऐसी कौन सी ताकत है जिस पर लोगो को अटूट विश्वास है? ऐसे ही अनेको सवालों के जवाब आज हम आपको देंगे। पुरी के जगन्नाथ मंदिर और जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के ऐसे असंख्य अद्भुत और आश्चर्यचकित तथ्य है जो अविश्वसनीय लगते है परतु सत्य है। भगवान जगन्नाथ की ऐसी लीलाएँ है जिन्हे आज तक वैज्ञानिक भी समझ नहीं पाए है।

चलिए आपकी इस जिज्ञासा को शांत करते है और आपको जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव से जुड़े कुछ अद्भुत अविश्वसनीय तथा रोचक तथ्य बताते है।

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1. रथ यात्रा के दौरान किस देवता की पूजा होती है?  उड़ीसा में, पुरी के भगवान जगन्नाथ के सम्मान में हर साल भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। जिसे जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव कहते है। जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव सबसे बड़े भारतीय त्योहारों में से एक है। इस उत्सव में, भारतीय सांस्कृति की झलक और भक्तो का उत्साह विशेष आकर्षण होता है। इस मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यहाँ भगवान् कृष्ण की पूजा जीवनसाथी के साथ नहीं, बल्कि उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी छोटी बहन सुभद्रा के साथ की जाती है, और साथ ही सुदर्शन चक्र भी होता है।

2. सबको आने की अनुमति नहीं: उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर भारत के कुछ रूढ़िवादी हिंदू मंदिरों में से एक है, जहां केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों को ही मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति है। अन्य धार्मिक संप्रदायों के लोग प्रभु की एक झलक भी नहीं देख सकते क्योंकि उनकी पहुंच केवल मंदिर परिसर के दरवाजे तक ही होती हैं, फिर चाहे वे कितने ही बड़े भक्त क्यों न हों। परन्तु कुछ विशेष दिनों पर, जैसे की जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव के दौरान, पुरी के जगन्नाथ मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खुले होते है, चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का हो। इस दिन विभिन्न भारतीय समुदायों के लोग भगवान की पूजा कर सकते हैं और भगवान् का आशीर्वाद ले सकते हैं।

3. भगवान जगन्नाथ की वार्षिक छुट्टी: भगवान जगन्नाथ इस समय अपनी वार्षिक छुट्टी पर जाते हैं, भगवान् पुरी मंदिर से भव्य रथों पर यात्रा करते हुए गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के यहाँ जाते हैं। यही कारण कि जगन्नाथ रथ यात्रा को गुंडिचा यात्रा भी कहा जाता है। रथ यात्रा से एक दिन पहले भगवान जगन्नाथ के विश्राम के लिए, गुंडिचा माता मंदिर साफ किया जाता है। मंदिर की सफाई के इस अनुष्ठान को गुण्डिचा माजन के नाम से जाना जाता है, तथा मंदिर की सफाई के लिए जल इन्द्रद्युम्न सरोवर से लाया जाता है।

4. चार धामों के सामान पवित्र: आदि गुरु शंकराचार्य के निर्देशानुसार एक हिंदू को अपने जीवन काल में चार धाम की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। इन चार धाम के दर्शन करके व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होता है और आत्मा की शुद्धि होती है। माना जाता है जो व्यक्ति जगन्नाथ रथ यात्रा में सम्मलित होता है, उसका एक धाम पूरा हो जाता है।

5. रथ यात्रा एक 10 दिवसीय महोत्सव: भगवान् जगन्नाथ का रथ त्योहार एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि वास्तव में यह 10 दिन का उत्सव है। पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा 10 दिनों तक (रथ यात्रा के दिन से लेकर नीलाद्री विजया तक जब देवताओं को मंदिर में वापस ले जाया जाता है) चलती है। भक्तों की सबसे बड़ी भीड़ उस दिन देखी जाती है, जब रथ खींचा जाता है। वास्तविक जगन्नाथ रथ यात्रा का दिन एक ऐसा एकमात्र अवसर होता है जब हर कोई देवताओं तक पहुंच सकता है।

6. विभिन्न पहिया के साथ रथ: जगन्नाथ मंदिर के सभी तीन देवता – जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र – इस रथ यात्रा के दौरान तीन अलग-अलग रथों में यात्रा करते हैं। यही कारण है कि इसे रथों का त्योहार भी कहा जाता है। रथों को क्रमशः नंदीघोष (Nandighosha), तलध्वज (Taladhwaja) और देवदलना (Devadalana) कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष (Nandighosha) 18 पहियों पर चलता है। यह रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है, जो लाल और पीले रंग के कपड़े से ढंका होता है  जबकि भगवान बलराम के रथ तल्ध्वाजा (Taladhwaja) में 16 पहिए होते है। जिसकी ऊंचाई 45 फीट होती है, जो यह लाल और हरे कपड़े से ढका रहता है। सुभद्रा के रथ देवदलना या पद्मध्वजा (Devadalana) में 14 पहिए हैं। जो 44.6 फीट ऊंचा होता है और लाल और काले रंग के कपड़े से ढका रहता है।

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image via- Dorajagannath8, ରଥ ତିଆରି (64), CC BY-SA 4.0

7. रथों के पीछे का रहस्य: जगन्नाथ रथ यात्रा के समय हर साल, तीनों देवताओं के लिए नए रथों का निर्माण किया जाता है। जिसमे रथ की वास्तुकला समान होती है। प्रत्येक रथ में चार लकड़ी के घोड़े जुड़े होते हैं। यह भी कहा जाता है कि जिस पेड़ से रथ बनाए जाते हैं, उसमें कुछ विशेष लक्षण और विशेषताएं होती हैं। भगवान जगन्नाथ और अन्य दोनों देवताओं के रथों के शीर्ष एक हिंदू मंदिर की संरचना से मिलते जुलते होते हैं। रथ को सैकड़ों भक्तों और तीर्थयात्रियों द्वारा रस्सियों के साथ खींचा जाता है, जो भक्ति और उत्साह का एक प्रेरणादायक दृश्य होता है। रथों के लिए कैनोपीज़ लगभग 1200 मीटर कपड़े से बने होते हैं।

8. राजा भी सेवक : वैसे तो भारत की राजशाही व्यवस्था पिछले काफी समय से समाप्त हो गई है। लगभग सभी राज्यों मैं भारतीय सविंधान के अनुसार ही शासन होता है। परन्तु फिर भी जगन्नाथ पूरी में यह माना जाता है कि पुरी के राजा द्वारा सोने से बनी झाड़ू के साथ पुरी के रस्ते पर झाड़ू लगाने के बाद ही भगवान जगन्नाथ औपचारिक यात्रा के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं। इसलिए लाखों लोग एक राजा को सोने की झाड़ू से रास्ते पर सफाई करते भी देखने आते है।

9. भगवान की दृढ़ता: यह माना जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा के शुरू में जब भक्त, भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचते हैं, तो वह हिलने से मना कर देता है। इसके बाद भी सैकड़ों लोग पीछे से धक्का देते रहते हैं और सामने से खींचते रहते हैं, परन्तु रथ चलने से मना करता है। अंतत उत्सव के जोश और लोगो के प्रयासों के कुछ घंटों के बाद रथ चलना शुरू हो जाता है।

10. रथ यात्रा दिवस से पहले मंदिर बंद: जगन्नाथ रथ यात्रा से एक सप्ताह पहले, जगन्नाथ मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उस समय भगवान जगन्नाथ तेज बुखार के कारण आराम करते हैं और इसीलिए इस संक्षिप्त अवधि के लिए गर्भगृह जनता के लिए नहीं खुलता। एक सप्ताह तक आराम करने के बाद यात्रा शुरू होती है।

11. प्रकृति के नियमो के विरुद्ध: कोई भी कपडा या कपड़े का टुकड़ा हवा की गति के अनुसार हवा की दिशा के अनुरूप उड़ता है। लेकिन, जगन्नाथ मंदिर की चोटी पर लगा ध्वज इस सिद्धांत का एक अनूठा अपवाद है। यह विशेष ध्वज हवा की दिशा के विपरीत यानि उल्टी दिशा में उड़ता रहता होता है। इसका का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नही है की ऐसा क्यों होता है। यह जगन्नाथ भगवान का चमत्कार है, जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है। 

12. विशाल 45 मंजिला चढ़ाई: जगन्नाथ मंदिर के गुंबद के ऊपर लगे ध्वज को बदलने के लिए, हर दिन एक पुजारी 45 मंजिला इमारत के बराबर ऊंचाई वाले इस मंदिर की दीवारों पर चढ़ता है। यह कार्य बिना किसी सुरक्षा गियर के नंगे हाथों से किया जाता है। कई वर्षो पहले जब जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ था, तब यह रिवाज शुरू हुआ था और आज कई वर्षो बाद भी इसको निभाया जाता है। यह माना जाता है कि यदि साल के किसी भी एक दिन इस अनुष्ठान को छोड़ दिया जाता है, तो मंदिर अगले 18 साल तक बंद रहेगा।

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image via- SwatiGuptaa, Jagannath temple, puri, CC BY-SA 4.0

13. बिना किसी छाया का मंदिर: जगन्नाथ मंदिर की किसी भी दिशा से दिन के किसी भी समय, किसी भी दिशा में कोई छाया नहीं आती है। है न यह एक अद्भुत तथ्य। आपको क्या लगता है?  क्या यह एक वास्तुकला का एक चमत्कार है या मानवता के लिए भगवान जगन्नाथ का कोई संदेश? 

14. सुदर्शन चक्र की रहसयमई पहेली: सुदर्शन चक्र से जुडी दो पहेलियां हैं जिनका कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं है। सबसे पहला रहस्य इस बात से संबंधित है, की एक टन के बराबर कठोर धातु से बना सुदर्शन चक्र, मंदिर के शिखर पर कैसे पंहुचा है। इस सवाल के पीछे का तर्क यह है की, बिना किसी मशीनी सहायता के, बस मानव बल के द्वारा यह मंदिर के शिखर पर कैसे पंहुचा। ये कैसे हुआ? दूसरा रहस्य इस चक्र से जुडी वास्तु तकनीक से संबंधित है। आप इस चक्र को जिस भी दिशा से देखते हैं, चक्र एक ही रूप का दिखता है। जैसे की यह हर दिशा से समान दिखने के लिए ही डिज़ाइन किया गया था।

15. पवित्र प्रसादम कभी भी निरर्थक नहीं जाता: हिंदू पौराणिक कथाओं में, भोजन बर्बाद करना एक पाप माना जाता है। मंदिर का संचालक दल इसी का अनुसरण करता है। जगन्नाथ मंदिर जाने वाले लोगों की कुल संख्या हर दिन भिन्न होती है कभी बहुत अधिक तो कभी कम होती है। चमत्कारिक रूप से, हर दिन तैयार किया गया प्रसादम कभी भी व्यर्थ नहीं होता है, यहां तक ​​कि एक टुकड़ा भी नहीं। क्या यह एक प्रभावी प्रबंधन है या प्रभु की इच्छा? इस प्रसादम के सुगंध और स्वाद का कोई मुकाबका नहीं।

16. रिवर्स गियर में हवा: पृथ्वी पर किसी भी जगह चले जाओ, दिन के समय समुद्र से हवा आती है और शाम को विपरीत होती है। लेकिन, जगन्नाथ पुरी में, हवा भी प्रभु की इच्छा से चलती है। जी हाँ, यहाँ हवा प्रकतिक नियमों के विपरीत चलती है अर्थात हवा विपरीत दिशा मे चलती है। दिन में, हवा जमीन से समुद्र तक जाती है और शाम को विपरीत होती है।

17. प्रसादम पकाने की जादुई विधि: जगन्नाथ मंदिर में प्रसादम को पकाने का एक पारंपरिक तरीका है ,जो यहाँ के पुजारियों द्वारा संरक्षित रखा गया है। प्रसादम बनाने के लिए सात बर्तनों का उपयोग किया जाता है जो एक दूसरे के ऊपर चढ़ाए जाते है और लकड़ी के उपयोग से भोजन  पकाया जाता है। इसमें सबसे अविश्वसनीय तथा चमत्कारी बात यह है की, सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद सबसे पहले पक जाता है, और बाकी इसी के समान पकते रहते है। अब यह कैसे संभव है यह तो कोई नहीं जानता, यहां तक कि विज्ञान के पास भी इस चमत्कार की कोई व्याख्या नहीं है।

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18. भगवान् की पसंदीदा मिठाई पोदा पिठा: भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन 9 दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रुकने के बाद अपने स्वयं के निवास स्थान पर वापस जाते समय रास्ते में एक स्थान पर रुक जाते हैं। ओडिशा में एक लोकप्रिय मिठाई पोदा पिठा, जो भगवान् की पसंदीदा है। यह माना जाता है कि रास्ते में भगवान जगन्नाथ अपनी पसंदीदा मिठाई पोदा पिठा लिए बिना वापस नहीं जा सकते। वे वापसी यात्रा के दौरान अपने पसंदीदा पकवान के स्वाद के बिना रह ही नहीं सकते हैं

19. बहुडा यात्रा: देवशयनी एकादशी के मुहूर्त से ठीक पहले जगन्नाथ रथ यात्रा समाप्त हो जाती है, और भगवान जगन्नाथ, गुंडिचा मंदिर से अपने मुख्य निवास जगन्नाथ मंदिर लौट आते हैं। दशमी तिथि पर अपने मुख्य मंदिर लौटने की यात्रा को बहुडा यात्रा (Bahuda Yatra) के नाम से जाना जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ सीधे चार महीने के लिए सो जाते हैं।

20. देवताओं के दर्शन: ओडिशा का जगन्नाथ पुरी मंदिर उन कुछ भारतीय मंदिरों में से एक है, जहाँ देवताओं को उत्सव के दौरान मंदिर से बाहर लाया जाता है हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में कुल्लू के मुख्य देवता, भगवान रघुनाथ को कुल्लू के दशहरा उत्सव के दौरान, कुल्लू के राजा के महल में सुल्तानपुर मंदिर से उत्सव के मैदान में लाया जाता है। इसी प्रकार, देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर की मूर्तियों को मदुरै (Madurai) के बोट फेस्टिवल (Boat Festival) के दौरान, झील के पार एक औपचारिक नाव की सवारी के लिए मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Temple) से बाहर ले जाया जाता है।

21. जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव एकअसामान्य तरीका:  2007 में, उड़ीसा के बरगढ़ जिले में जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव को एक अलग तरीके से मनाया गया। यह एक असामान्य उत्सव था। जिसका पारंपरिक समारोहों से कोई लेना-देना नहीं था। पर्यावरण और जंगलों को बचाने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए रथों पर मूर्तियों के स्थान पर हर्बल पेड़ और पौधे लगाए गए। यह भारत में पहली हरी रथ यात्रा थी,  जिसके बाद वृक्षारोपण किया गया था।

हम आशा करते है यह जानकारी आपके लिए उपयोगी हो।

वर्त्तमान परिस्थितों “कोरोना वायरस” (Corona Virus) के कारण इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा स्थगित कर दी गयी है। परंतु इस दुनिया में ऐसी को वजह नहीं हो सकती, जो एक भक्त को अपने प्रभु की भक्ति करने से रोक सके। इसलिए अपने घर से ही जगत पिता, प्रभु जगन्नाथ की पूजा करिए और सबके लिए आशीर्वाद मांगिए ।

घर रहिये, सवस्थ रहिये, सुरक्षित रहिये ।

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