गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev) के 10 प्रमुख उपदेश

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भारत को विविध लोगों, संस्कृतियों और धर्मों का देश माना जाता है। हर धर्म हमें अच्छाई और मानवता का पाठ सिखाता है। सिख धर्म इन्ही धर्मो मे से एक ऐसा धर्म है। सिख धर्म के दस सिख गुरुओं में से, गुरु नानक देव जी पहले सिख गुरु हैं और सिख धर्म के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। दुनिया भर के सिख अपने दस गुरुओं के जन्मदिन को गुरपुरब के रूप में मनाते हैं। श्री गुरु नानक देव जी के जन्मदिन को  गुरु नानक जयंती के रूप मे मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती, को ‘गुरु नानक का प्रकाश उत्सव’ और ‘गुरु नानक गुरुपुरब’ और प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन पहले सिख गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्म के महत्व को चिह्नित करता है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, गुरु नानक जयंती कार्तिक महीने की पूर्णिमा पर आती है।

 गुरु नानक देव जी वो पहले सिख गुरु थे, जिन्होंने सिख धर्म की नींव रखी। उन्होंने शांति और प्रेम का संदेश फैलाने के लिए बहुत लम्बी यात्रा की। .उनका जीवन आदर्श जीवन था, उनका जीवन ज्ञान का भंडार था। उन्होंने हमे उत्तम जीवन जीने के अनेकों उपदेश दिए और उनके ये उपदेश आज के समय में भी मान्य हैं। उनकी शिक्षाओं को पवित्र सिख ग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब जी) में लिखा गया है – गुरुमुखी में छंद का एक विशाल संग्रह। यहां हम आपके लिए गुरु नानक देव जी के कुछ उपदेश लेकर आए हैं जो आपके जीवन को देखने का तरीका ही बदल देंगे …

गुरु नानक देव जी ने हमें तीन मुख्य शिक्षाएँ दी हैं जिन्हे सिख धर्म के तीन स्तंभ भी कहा जाता है

  • किरात करो (ईमानदार कमाई करो): बिना किसी धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार के ईमानदारी से मेहनत करके जीवन यापन करना। श्रम की भावना सिख धर्म का केंद्र है।
  • नाम जापो (भगवान का नाम जापो): नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके बताए हैं- संगत में रहकर जप किया जाए (संगत यानी पवित्र संतों की मंडली) या एकांत में जप किया जाए। मानव व्यक्तित्व की पांच कमजोरियों को नियंत्रित करने के लिए भगवान के नाम का ध्यान अवश्य करो।
  • वंड चाको (दूसरों के साथ बांटना): हमेशा अपना सब कुछ दूसरों के साथ साझा करना, उन लोगों की मदद करना जो जरूरतमंद हैं। सिख इसी आधार पर अपनी आय का दसवां हिस्सा साझा करते हैं, जिसे दसवंध कहते हैं। इसी से ‘लंगर’ चलता है।
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image via-Khuranarajat19, Guru Ji, CC BY-SA 4.0

गुरु नानक देव जी के अन्य 10 प्रमुख उपदेश, जिन्हें हम उनके जीवन से सीख सकते हैं

1 समानता (Equality)

यह सबसे महत्वपूर्ण उपदेश है जो गुरु नानक देव जी के जीवन से सीखा जा सकता है जो आज के असहिष्णु और अशांत समाज में होना ही चाहिए। गुरु नानक देव जी ने सभी मनुष्यों को एक समान रूप में देखा, वह धर्म, नस्ल, जाति, रंग, या वित्तीय स्थिति के आधार पर मनुष्यों को अलग करने के खिलाफ थे। उन्होंने यह विचार अपने एक छंद में भी लिखा था-

“मानस की जात सभै एकै पाहिचानबो”

अर्थात “सभी मानव जाति को एक के रूप में पहचानो” ।

गुरु नानक देव जी ने कभी भी उनकी जाति, धर्म, नस्ल, रंग या वित्तीय स्थिति के आधार पर मनुष्यों के बीच अंतर नहीं किया। उन्होंने अपने भोजन से लेकर, सामान तक सब कुछ लोगों के साथ आसानी से साझा किया और कोई भी जरूरतमंद इंसान कभी भी गुरु नानक जी के घर से खाली हाथ नहीं गया। यदि हम केवल इस सरल उपदेश का पालन करते हैं, तो दुनिया एक बहुत बेहतर जगह होगी, न केवल हमारे लिए बल्कि आने वाली हमारी पीढ़ियों के लिए।।

2 ईमानदारी (Honesty)

गुरु नानक देव जी ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्ति को अपना जीवन पूरी ईमानदारी के साथ जीना चाहिए। यह प्रभु की उपासना की तरह है। उन्होंने ईमानदारी से रहने पर भी जोर दिया। उनके वचन थे की भ्रष्टाचार और बेईमानी से अर्जित की गई रोटी कभी भी किसी के जीवन में संतुष्टि और पूर्ति नहीं ला सकती है, ईमानदारी के साथ अर्जित की गई रोटी ही एक व्यक्ति के जीवन में संतुष्टि लाती है। गुरु नानक जी ने हमें भ्रष्टाचार-मुक्त जीवन जेने का उपदेश दिया। इस महत्वपूर्ण विचार का आज की दुनिया में पालन किया जाना चाहिए।

3 सेवा / निःस्वार्थ सेवा (Selfless Service)

आज कल बिना किसी लाभ के कोई भी मुफ्त में काम करने को तैयार नहीं होता। सब अपने मतलब से किसी का काम करते है। ऐसे मे गुरु नानक जी का सेवा का सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। सेवा का अर्थ है – निस्वार्थ सेवा, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ या लालच के दूसरे की सेवा करना। नानक जी ने सिखाया है कि सेवा के बदले में लाभ कमाने की अपेक्षा के बिना, निस्वार्थ सेवा करने से, न केवल अपार आत्म-संतुष्टि प्राप्त होगी, बल्कि ये हमें परमपिता परमेश्वर के और करीब भी लाएगी। यह आंतरिक शांति प्राप्त करने का एक उत्तम साधन भी है। सेवा का सबसे अच्छा उदाहरण है ‘लंगर‘। यहाँ लोग सच्चे मन से निस्वार्थ सेवा करते है। गुरु नानक देव जी ने मानव जाति की बेहतरी के उद्देश्य से सबकी सेवा की।

4 बाँटना (Sharing)

यदि कोई गुरु नानक देव जी के उपर्युक्त उपदेशों का पालन करता है, तो अपना सब कुछ साझा करने का विचार अपने आप उसके मन मे आ जाता है। नानक देव जी ने हमेशा यही सिखाया और इसे अपने जीवन में भी अपनाया, कि प्रभुता सम्पन व्यक्ति को जो कुछ भी उनके पास है वे अपने से कम भाग्यशाली भाइयों के साथ साझा करना चाहिए।

गुरु नानक जी के पिता ने उन्हें व्यवसाय सिखाने का फैसला किया। वह चाहते थे कि नानक एक अच्छा जीवन व्यतीत करे, शादी करे और किसी आम व्यक्ति की तरह अपने परिवार का पालन करे। एक दिन उनके पिता ने उन्हें 20 रुपये दिए और उन्हें व्यापार में अपनी किस्मत आजमाने के लिए भेज दिया। वह चाहते थे कि वह कुछ मुनाफे का सौदा करे। इसके बजाय, गुरु नानक ने, वो 20 रुपये गरीबों को भोजन कराने के लिए खर्च किए। उनके अनुसार, यही सबसे अच्छा सौदा था जो वह उन 20 रुपये के साथ कर सकते थे। इसे ‘सच्चा सौदा’ या ‘सच्चे व्यवसाय’ के रूप में जाना जाता था।

5 दया और प्रेम (Kindness)

गुरु नानक देव जी अन्य मुख्य उपदेश जो आज समाज के लिए बहुत महतवपूर्ण है की प्रेम और दया से कठोर से कठोर आत्माओं को भी बदला जा सकता है। घृणा, भय और क्रोध ही आगे क्रोध को ओर बढ़ाते हैं

एक बार अपनी यात्रा के दौरान, गुरु नानक जी का सामना कौड़ा नाम के नरभक्षी से हुआ। कौड़ा का दिमाग फिरा हुआ था और उसके दिमाग मे शांति नहीं थी। गुरु नानक जी को देखते ही कौड़ा उत्साहित हो गया और गुस्से से भर गया। गुरु नानक नरभक्षी से डरते नहीं थे और वो बेहद शांत रहते थे। उन्होंने अपनी दया और करुणा से भरी आँखों से नरभक्षी को देखा। कौड़ा को कुछ बोलना भी नहीं आता था परन्तु उस समय गुरु नानक की दया ने उसे बदल दिया। वह टूट गया और असहाय महसूस कर रहा था। उसने अपने कार्यों के लिए क्षमा मांगी और गुरु नानक से वादा किया कि वह एक ईमानदार जीवन जियेगा और भगवान के नाम का जाप करेगा।

गुरु नानक जी के इस तथ्य से यह उदाहरण मिलता है कि प्रेम और दया के कार्यों से किसी का भी हृदय परिवर्तित किया जा सकता है।

6 पाँच बुराइयों से लड़ना (Fight the Five Evils)

गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि जीवन का सच्चा अर्थ तब प्राप्त होता है जब कोई व्यक्ति उस परमपिता परमेश्वर मे विलय हो जाता है। लेकिन जीवन में ऐसे कई कठिनाइयाँ तथा बुराइयाँ होती है जो हमें ऐसा करने से रोकती हैं। गुरु नानक जी ने सच्चे रस्ते से भटका कर माया की ओर ले जाने वाली पाँच बुराइयाँ बताई है। यह पांच बुराइयाँ है -अहंकार (Ego), क्रोध (Anger), लालच (Greed), मोह ( Attachment) और वासना (Lust)। जब कोई इन पाँच बुराइयों से मुक्त हो जाता है, तो वह व्यक्ति परमपिता के करीब हो जाता है।

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सबसे महत्वपूर्ण सबक जो हमारे महान गुरु नानक देव जी हमारे लिए छोड़ गए है, वे है महिलाओं का सम्मान करना। वर्तमान समय में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे है। हालांकि हम आधुनिक समाज में रहते हैं, परन्तु जब भी महिलाओं की बात आती है, तो हम लगभग उसी असभ्य समय में वापस चले जाते है जहाँ महिलाओ का केवल अपमान किया जाता था। नानक देव जी ने अपने एक छंद के माध्यम से एक बहुत ही सुंदर विचार दिया हैं,

“सो क्यों मन्दा आखिए जित जम्मे राजन”

“जिसने दुनिया के राजसी राजाओं को जन्म दिया है उसका अपमान क्यों करते हो”।

यदि गुरु नानक जी के इस वचन पालन किया जाए है, तो महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे। हमें केवल देवताओं की पूजा करने के साथ इन सिद्धांतों का पालन भी करना करना चाहिए जो उन्होंने हमे सिखाए हैं।

8 अंधविश्वास से लड़ो (Fight superstitions)

गुरु नानक जी ने अंधविश्वासों की कड़ी निंदा की। उन्होंने बताया कि किसी भी तरह का अंध विश्वास जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधक होता है। इस तरह की मान्यताएँ लोगो को विभाजित करती है और एक दूसरे के लिए नफरत पैदा करते है। उन्होंने लोगों से हर चीज के पीछे तर्क को खोजने का आग्रह किया।

गुरु नानक देव जी जब 9 वर्ष के थे, तब उनके पिता ने एक समारोह आयोजित किया जिसमें उन्हें जनेऊ पहनना था। उन्होंने इसे पहनने से इनकार कर दिया, और इसके महत्व पर कई सवाल उठाया। जनेऊ एक उच्च जाति का चिन्ह था और यदि कोई जनेऊ पहनने से इनकार करता तो उसे शूद्र माना जाता था। नानक जी ने जनेऊ के बारे में पंडित से कई सवाल किया और उन्होंने यह भी कहा की महिलाओं ने जनेऊ क्यों नहीं पहना। गुरु नानक के बार-बार पूछे गए सवालों ने पंडित को नाराज कर दिया।

तब गुरु नानक ने समझाया कि जनेऊ केवल लोगों को विभिन्न जातियों में विभाजित करने का एक माध्यम है इसके अलावा इसका कोई उपयोग नहीं की। यह किसी आध्यात्मिक जीवन मे भी कोई मदद नहीं करता है। गुरु नानक ने हर कर्मकांड के पीछे उचित तर्क की तलाश की और अंधविश्वास से लड़ाई की।

9 ईश्वर सर्वव्यापी है (God is omnipresent)

गुरु नानक जी इस तथ्य पर विश्वास करते थे कि भगवान सर्वव्यापी हैं और केवल मंदिरों और मस्जिदों में निवास नहीं करते हैं। हर मानव के हृदय मे परमात्मा निवास करते है। 15 वीं शताब्दी के दौरान, जाति व्यवस्था बेहद प्रचलित थी और निचली जातियों के लोगों को मंदिरों और मस्जिदों मे जाने की मनाई थी। धार्मिक स्थानों पर सख्त नियमों का पालन किया जाता था और सभी तीर्थयात्रियों को भी निश्चित नियमों का पालन करना पड़ता था।

एक बार गुरु नानक देव जी मक्का की यात्रा पर निकले, मक्का पहुंचने से पहले नानक देव जी थककर आरामगाह में रुक गए। वे मक्का की ओर चरण करके लेट गए। यह देखकर हाजियों की सेवा में लगा जियोन नाम का शख्स नाराज हो गया और बोला-आप मक्का मदीना की तरफ चरण करके क्यों लेटे हैं? नानक जी बोले- ‘अगर तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा, तो खुद ही मेरे चरण उधर कर दो, जिधर खुदा न हो।‘ नानक जी ने जियोन को समझाया- हर दिशा में खुदा है। तुम मे भी खुदा है और मेरे मे भी।अल्लाह पूर्व मे और पश्चिम मे भी है, जहाँ भी तुम मुड़ते हो खुदा वही उपस्थिति है। नानक जी ने सिखाया कि ईश्वर की सर्वव्यापकता कुरान में भी बताई गई है। सच्चा साधक वही है जो अच्छे काम करता हुआ खुदा को हमेशा याद रखता है। 

10 संगीत भगवान से जुड़ने का माध्यम

गुरु नानक देव जी हमेशा अपने दो साथियों बाला और मर्दाना के साथ यात्रा की। बाला और मर्दाना बहुत अच्छे संगीतकार थे। वे गुरु नानक के साथ सुबह जल्दी उठते थे और भगवान के ध्यान करते थे और मधुर भजन गाते थे, जिसे ‘कीर्तन’ कहा जाता था। इसलिए उनकी अधिकांश शिक्षाएँ भजन और छंद के रूप में हैं। उनका मानना ​​था कि संगीत एक ऐसा मार्ग है जो भगवान के साथ आध्यात्मिक संबंध बनाने में सहायता करता है। तब से, सिख धर्म में कीर्तन की परंपरा का अत्यधिक महत्व है।

गुरु नानक देव जी के उपदेश हर धर्म जाति के लिए एक सामान है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसकी पूजा करता हैं या किसके नियमों का पालन करता हैं, पर अगर ये उपदेश हमारे जीवन का हिस्सा नहीं हैं, तो हमारा जीवन व्यर्थ है। अगर हमारे बच्चे इन विचारों के साथ बड़े हो जाते हैं, तो निश्चिंत ही उनका भविष्य उज्जवल और सुरक्षित है।

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