भगवान गणेश / गणेश चतुर्थी से जुड़ी 10 अद्भुत बातें

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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा

Vakra-Tunndda Maha-Kaaya Suurya-Kotti Samaprabha
Nirvighnam Kuru Me Deva Sarva-Kaaryessu Sarvadaa

अर्थात:­- घुमावदार सूंड वाले, विशाल काया वाले, करोड़ सूर्य के समान महान तेजस्वी।

मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥

ज्ञान और सौभाग्य का प्रतीक, भगवान गणेश सबसे अधिक पूजे जाने वाले हिंदू भगवान हैं। सभी विघनों को हरने वाले, भगवान गणेश की तस्वीरों और मूर्तियों को लगभग हर हिंदू घरों में एक प्रमुख स्थान मिलता है। कोई भी उत्सव या कार्य की नई शुरुआत भगवान गणेश को पूजा अर्पित करने से होती है।

गणेश चतुर्थी अर्थात भगवान गणेश का जन्मदिन हर साल हिंदू कलेंडर के अनुसार भाद्रपद के महीने के दौरान शुक्ल चतुर्थी को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्दशी पर गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ समाप्त होता है। भगवान गणेश की विभिन्न मुद्रा (pose), रंगों और आकारों में अनगिनत मूर्तियों को बनाने मे काफी समय लगता है इसलिए कलाकारों के लिए यह गणेश उत्सव महीनों पहले ही शुरू हो जाता है। भक्त अपने भगवान का स्वागत करने के लिए घरों मे सजावट के साथ मिठाइयाँ भी बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर उतरते हैं और जो कोई भी इस दौरान उनकी पूजा सच्चे मन से करता है उसे सफलता मिलना निश्चित है।

आइये भगवान गणेश और गणेश चतुर्थी से जुड़ी 10 अद्भुत बातों पर नज़र डालते है।    

1.  पहला गणेश चतुर्थी उत्सव छत्रपति शिवाजी महाराज के युग मे मनाया गया था। उत्सव पेशवाओं द्वारा मनाया जाता रहा। हालांकि, पेशवाओं के पतन के बाद, उत्सव को 1893 के दौरान, क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक द्वारा पुनर्जीवित किया गया था। स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने जनता से एकजुट होने और एकजुट होकर गणेश चतुर्थी मनाने के लिए आग्रह किया। उनका मुख्य उद्देश्य ऐसे समय में लोगों को एकजुट करना और उनमें देशभक्ति की भावना को जगाना था, जब ब्रिटिश सामाजिक समारोहों को हतोत्साहित करते थे, पर अफसोस की बात यह है कि जब भारत को आखिरकार आजादी मिली, तो लोकमान्य तिलक वहां नहीं थे।

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2.  परंपरागत रूप से मूर्तियों को मिट्टी से बनाया जाता था और त्योहार खत्म होते ही अंततः उन्हें पानी में डूबा दिया जाता। इस तरह त्योहार मनाने के लिए हर साल गणेश जी को फिर से तराशा जाता था। हालांकि विसर्जन की रस्म जारी है, बस दुख की बात यह है कि आजकल मूर्ति बनाने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी), उपयोग किया जाता है उसमे कैडमियम (Cadmium) जैसे केमिकल होते है, जो जल प्रदूषण को बढ़ाते है।

3.  गणेश चतुर्थी के दौरान चार मुख्य अनुष्ठान होते हैं – प्राणप्रतिष्ठा – देवता को मूर्ति या मूर्ति में प्रवाहित करने की प्रक्रिया, षोडशोपचार – गणेश जी को पूजा अर्पित करने के 16 रूप, उत्तरापूजा – जिसके बाद मूर्ति को स्थान से हिलाया जा सकता है, गणपति विसर्जन – नदी में मूर्ति का विसर्जन। पंचोपचार या षोडशोपचार गणेश चतुर्थी के दौरान किये जाने वाले चार मुख्य अनुष्ठानों में से एक है। षोडशोपचार का अर्थ है भगवान गणेश को पूजा के रूप मे सम्मान अर्पित करने के 16 तरीके। इन 16 चरणों में अवाहना, प्रतिष्ठापर्ण, आसन समरपना, अघ्र्य समरपण, अचमन, मधुरूपक, सनाण, वास्तु समापान, यज्ञोपवीत, गन्ध, पुष्पा, धूपा, दीपा, नैवेद्य और मंत्रपुष्पांजलि शामिल हैं।

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4.  भगवान गणेश के प्रिय्र मोदक का इंतजार भगवान के साथ हम सभी करते है। यह मिठाई चावल के आटे या गेहूँ के आटे से बनती है, जिसे कद्दूकस किया हुआ गुड़, नारियल और सूखे मेवों से भरा जाता है। मोदक की थाली मे मिठाई के इक्कीस पीस रखे जाते है। मोदक की तरह, पूरन पोली को भी भगवान को ‘भोग’ के रूप में अर्पित किया जा सकता है और बाद में इसे प्रसाद के रूप में सबको परोसा जाता है। इन दोनों के अलावा, करणजी (Karanji) भी भगवान गणेश को अर्पित की जाने वाली एक लोकप्रिय मिठाई है।

5.  भगवान गणेश को विघ्न हर्ता (बाधाओं का निवारण), बुद्धी प्रयायका (ज्ञान और बुद्धि के दाता), बुद्धिनाथ (बुद्धि के भगवान ), एकदन्त (एक दांत वाले), गजानन (हाथी के मुख वाले भगवान), गजकर्ण (हाथी की तरह आंखों वाले) आदि कई रूपों में भी जाना जाता है। वास्तव में, भगवान गणेश के लगभग 108 नाम हैं, लेकिन गणेश और गणपति अधिक सामान्य हैं। ऐसा माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दौरान भगवान गणेश के 108 नामों का पाठ करने से भक्तों को सौभाग्य प्राप्त होता है।

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6.  भगवान गणेश के स्वरुप को कभी-कभी केवल एक दांत (One Tusk) के साथ दर्शाया जाता है। भगवान गणेश के इस स्वरुप को एकदन्त के रूप में जाना जाता है। भगवान गणेश के गायब दांत के बारे में कई मिथक कथाएँ हैं। दांत खो जाने की सबसे प्रचलित कहानी यह है कि एक बार चन्द्रमा गणेश के मोठे पेट को देख उनका मजाक उड़ने लगे यह देख गणेश जी नाराज़ हो गए और गुस्से मे अपना एक दन्त तोड़ कर चंद्रमा पर फेंक दिया, इसी कारण गणेश जी एकदन्त के रूप मे भी जाने जाते है। गणेश चतुर्थी पर चाँद को देखना एक बुरा शगुन माना जाता है।

7.  कई लोग भगवान गणेश को अविवाहित मानते हैं, लेकिन ऐसे कई चित्र तथा मूर्तियाँ हैं जहां गणेश को उनकी दो पत्नियों- रिद्धि और सिद्धि के साथ किया प्रस्तुत जाता है। इन दोनों को ब्रह्मा ने गणेश को प्रसन्न करने के लिए बनाया था, क्योंकि भगवान गणेश सभी देवताओं की पत्नी होने, ओर अपनी न होने पर व्याकुल रहते थे। ऋद्धि धन और समृद्धि का और सिद्धि बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी उनकी की पूजा करता है, वह उनकी पत्नियों का आशीर्वाद भी प्राप्त करता है।

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8.  गणपति उत्सव 10 दिनों तक चलने वाला उत्सव है। परन्तु स्थापना के पश्चात लोग 2, 5, 7 या 10 दिनों के लिए मूर्ति घर मे रख सकते है। परिवार और दोस्तों के साथ उत्सव के दिनों के बाद, मूर्ति को अंततःविसर्जन किया जाता है। अंतिम दिन, उत्तरपूजा के पश्चात भगवान गणेश को विदाई दी जाती है। इस भावनात्मक क्षण में, “गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या” कहते हुए भक्त अपने भगवान गणेश को विदाई देते हैं और उनसे अगले वर्ष फिर से लौटने का अनुरोध करते हैं।

9.  गणपति का सबसे लंबा विसर्जन जुलूस मुंबई के लालबागचा राजा का होता है, जो सुबह लगभग 10 बजे शुरू होता है और अगली सुबह लगभग 24 घंटे बाद जाकर पूरा होता हैं। दूसरा सबसे लंबा जुलूस मुंबई के अंधेरिचा राजा का है, जो शाम 5 बजे शुरू होता है और अगले दिन सुबह समाप्त होता है।

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10.  भारत में, गणेश चतुर्थी को महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में सबसे भव्य रूप में मनाया जाता है, पर यह विदेशो मे भी उतना ही प्रसिद्ध है, जितना भारत मे। भारत के बाहर थाईलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, नेपाल जैसे देशों में भी भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हिंदुओं द्वारा यूके, यूएस कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है।

 

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) पर भगवान गणेश की पूजा कैसे करे।


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