बृहदेश्वर मंदिर – Facts about Bruhadeeswarar Mandir

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भारत को मंदिरों और तीर्थस्थानों का देश कहा जाता है। यहां लगभग हर कोने में कोई न कोई मंदिर देखने को मिल जाता है। भारत में सदियों से भव्य मंदिर बनाए जा रहे है, पहले राजा, महाराजा अपनी आस्था व्यक्त करने के लिए विशाल से विशाल मंदिर बनवाते थे, जो आज भारतीय इतिहास का एक अभिन्न अंग बन गए है। आज हम आपको ऐसे एक ऐतिहासिक तथा अद्भुत बृहदेश्वर मंदिर के बारे में बताने वाले है जो अनगिनत रहस्यों से भरा हुआ है।

तमिलनाडु के तंजौर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर है, जो अपनी वास्तु और शिल्पकला के लिए दुनियाभर में मशहूर है। परन्तु इसकी शिल्पकला से ज्यादा इसकी अद्भुत और रहस्यमयी संरचना लोगों को अपनी और आकर्षित करती है। तो चलिए जानते है कहाँ है बृहदेश्वर मंदिर? और कब, किसने बनवाया यह मंदिर? साथ ही जानेंगे बृहदेश्वर मंदिर के कुछ रोचक तथ्य।

बृहदेश्वर मंदिर कहाँ है? / Bruhadeshwar Mandir Kahan hai? 

बृहदेश्वर मंदिर, भारत के तमिलनाडु राज्य में तंजावुर शहर में कावेरी नदी के दक्षिण की ओर स्थित है। 1000 वर्ष पुराने इस मंदिर को UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) घोषित किया गया है। तमिल भाषा में इसे बृहदेश्वर के नाम से संबोदित किया जाता है तथा अन्य भाषा में इसे राज-राजेश्वर, राज-राजेश्वरम के नाम से जाना जाता हैं। तमिलनाडु के तंजौर में स्थित होने के कारण इसे तंजौर के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

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Bruhadeshwar mandir in hindi

बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया ?  

भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण, चोल शासक महाराजा राजराज चोल प्रथम, ने 1003-1010 ईसवी के बीच करवाया था। उनके नाम पर ही इसे ‘राजराजेश्वर मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। साथ ही इसे पेरुवुदैयार कोविल मंदिर (Peruvudaiyār Kōvil temple) पेरिया कोविल (Periya Kovil) या राजराजेश्वरम के नाम से भी जाना जाता है। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था परंतु तंजौर पर हमला करने वाले नायक और मराठा शासकों ने इस राजराजेश्वर मंदिर को बृहदेश्वर नाम दे दिया था।

यह मंदिर UNESCO “वर्ल्ड हेरिटेज साईट के “द ग्रेट लिविंग चोला टेम्पल” के 3 मंदिरों में से एक है। बाकी के 2 मंदिर गंगईकोंडा चोलपुरम और ऐरावटेश्वर मंदिर हैं। कहा जाता हैं कि जब महाराज श्रीलंका की यात्रा पर निकले हुए थे, तब उन्हें इस मंदिर के निर्माण करवाने के लिए एक सपना आया था, जिसके पश्चात महाराजा राजराज चोल ने इसका निर्माण शुरू करवाया। मंदिर मे प्राप्त लेखों से यह प्रमाण मिलता है कि राजराज चोल ने अपने जीवन के 19वें साल (सन् 1004) में इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया और सम्राट के 25वें साल (सन् 1010) के 275वें दिन इस मंदिर का निर्माण समाप्त हुआ। मंदिर के तीसरे प्रवेश द्वार पर शिलालेख हैं उसमे पुरानी तमिल लिपियों में चोल राजाओं और वास्तुकला के काम का व्याखान किया गया हैं। इन लिपियाँ के अनुसार मंदिर के मुख्य वास्तुकार कुंजारा मल्लन राजा राजा पेरुन्थाचन (Kunjara Mallan Raja Raja Perunthachan) थे, जिनके वंशज आज भी वास्तुशास्त्र और शिल्पकार का कार्य करते हैं।

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बृहदेश्वर मंदिर की वास्तुकला

वैसे तो भारत के सभी मंदिरों की वास्तुकला अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक बृहदेश्वर मंदिर, वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। क्योंकि इस मंदिर की वास्तुकला न केवल विज्ञान और ज्यामिति के नियमों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, बल्कि इसकी संरचना के साथ कई रहस्य भी जुड़े हुए है। मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुशैली के आधार पर हुआ है।

इस मंदिर का ज्यादातर भाग कठोर ग्रेनाईट पत्थर (Granite stone) से व बाकी हिस्सा सैंडस्टोन की चट्टानों से बनाया गया है। मंदिर के निर्माण में ‘ग्रेनाइट’ के चौकोर पत्थर के ब्लॉक्स को (आकार में घटते क्रम में) एक-दूसरे के ऊपर इस प्रकार जमाया गया कि वो आपस में फँसे रहें। इसे साधारण भाषा में ‘पजल टेक्निक (Puzzle Technique) कहा जाता है। अर्थात इन पत्थरों को चिपकने के लिए किसी भी प्रकार के पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया गया ये बस एक दूसरे में जुड़े हुए है।

मंदिर के मुख्य भाग (मुख्य मीनार) को श्रीविमान कहा जाता है, जो लगभग 216 फुट (66 मीटर) ऊँचा है। इसका मतलब हुआ कि पत्थर के ब्लॉक 216 फुट तक जमाए गए। बृहदेश्वर मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसे बिना नींव के बनाया गया है। इस मंदिर के शिखर का विशाल गुम्‍बद अष्‍टभुजा आकार वाला है और यह ग्रेनाइट के एक विशाल पत्थर पर रखा हुआ है जिसका वज़न लगभग 80 टन है। मंदिर में श्रीविमान के अलावा अर्धमंडप, मुखमंडप, महामंडप और नंदीमंडप है। मंदिर परिसर में दो गोपुरम भी हैं।

इस मंदिर के आराध्य देव भगवान शिव हैं। मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग स्थापित है। राजराज प्रथम शैव मत के अनुयायी थे। अपनी धार्मिक आस्था के अनुरूप उन्होंने तंजौर के राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके अलावा मंदिर में गणेश, सूर्य, दुर्गा, हरिहर, वीरभद्र कालांतक, नटेश, भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं। दीवारों पर विशाल आकार में चित्रात्‍मक प्रस्‍तुतिकरण है जिन में चोला साम्राज्य की अवधि के उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है। चोला साम्राज्य के दौरान, यह मंदिर सभी धार्मिक समारोहों और त्योहारों का केंद्र था।

मुख्य मंदिर और गोपुरम 11वीं सदी के बने हुए हैं। परन्तु इसके बाद भी मंदिर का कई बार निर्माण और मरम्मत का काम हुआ है। मुगल शासकों के आक्रमण और तोड़-फोड़ से मंदिर को बहुत क्षति हुई। बाद के हिन्दू राजाओं ने पुनः इस मंदिर को ठीक करवाया और कुछ अन्य निर्माण कार्य भी करवाए।

बृहदेश्वर मंदिर से जुड़े अद्भुत तथ्य तथा रहस्य। / Facts about Bruhadeshwar Mandir

1 बृहदेश्वर मंदिर दुनिया का पहला पूर्ण ग्रेनाइट मंदिर है। मंदिर के निर्माण में लगभग 1,30,000 टन ग्रेनाइट चट्टानों का प्रयोग किया गया है। परन्तु मंदिर के आस पास के 50 किमी तक के दायरे में ग्रेनाइट उपलब्ध नहीं है। तो सवाल यह उठता है की इतनी मात्रा में ग्रेनाइट कहा से लाया गया? अब यकीनन ग्रेनाइट कहीं दूर से यहां लाया गया होगा, तो दूसरा सवाल यह हैं की इतनी लम्बी दूरी से इतनी बड़ी मात्रा में और इतने विशाल आकार के पत्थरों को मंदिर निर्माण स्थल तक कैसे लाया गया? और निश्चित रूप से हम उस प्रक्रिया में लगी मेहनत और लागत की कल्पना ही नहीं कर सकते। इन सब सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। यह रहस्य अब तक रहस्य ही है।

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2 इस मंदिर के शिखर पर एक स्वर्णकलश स्थित है और ये स्वर्णकलश जिस पत्थर पर रखा है उसे कुम्बम कहा जाता है। बताया जाता है की इस कुम्बम का वजन करीब 80 टन अर्थात 80,000 किलोग्राम है, जो एक ही पत्थर से बना हुआ है। अब अंदाजा लगाइए कि इतने वजनदार पत्थर को मंदिर के शिखर पर यानि लगभग 200 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा कैसे ले जाया गया होगा? क्योंकि उस समय बड़ी बड़ी मशीने तो नहीं होती थी? प्रचलित कथाओं के अनुसार इसके लिए एक 6 किमी लंबा ‘रैम्प’ बनाया गया था, जिसे हजारों हाथी और घोड़ों की सहायता से खिसकते हुए कुम्बम को श्रीविमान के ऊपर स्थापित किया था।

3 बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। इसके निर्माण कला की एक ऐसी अनोखी विशेषता है जिसे सुन कर आप हैरान रहे जाएंगे। इस मंदिर की छाया धरती पर नहीं पड़ती। जी हाँ अपने सही सुना। आप कभी भी दोपहर के समय मंदिर जाइए आपको श्रीविमान की छाया नहीं दिखेगी मतलब इसके गुंबद की परछाई जमीन पर नहीं दिखेगी, चाहे आप किसी भी मौसम में मंदिर के दर्शन करने का विचार बनाए। अब सोचेंगे ये कैसे संभव है? दरअसल तथ्य यह है की मंदिर की छाया तो है परन्तु वो केवल सुबह और शाम को दिखती है क्योंकि इसकी आधार संरचना इतनी बड़ी है कि दोपहर के समय मंदिर की छाया मंदिर में ही समा जाती है।

4 वैसे आप ये तो जानते ही है होंगे की, बिना नींव के कोई संरचना नहीं बनती? ना ही कोई मकान बनता है और ना ही किसी प्रकार की अन्य इमारत। लेकिन इस विशालकाय मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि यह बिना नींव के हजारों साल से खड़ा है। जी हाँ, यह 13 मंजिला अद्भुत मंदिर बिना नींव के बनाया गया है। अब यह कैसे बिना नींव के इतने साल से खड़ा है यह एक रहस्य ही है। पर सबसे अच्छी बात यह है कि ये सदियों पुरानी तकनीक समय की कसौटी पर खरी उतरी है और ये अद्भुत मंदिर कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर चुका है।

5 मंदिर के भीतरी गर्भगृह में 3.5 मीटर ऊंचा विशाल महा-लिंग (शिवलिंग) है। कहा जाता है कि जब यह लिंग नर्मदा नदी से लिया गया था, तब यह आकार में बढ़ता गया था, यही कारण है कि लिंग को बृहदेश्वर के नाम से जाना जाता है। मंदिर में 250 से अधिक छोटे लिंग भी हैं।

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image via- Nittavinoda, Nandi Brihadeeswara, CC BY-SA 4.0

6 मंदिर के अंदर गोपुरम के भीतर एक नंदीमंडप है। जिसमें भगवान शिव की सवारी नंदी जी की विशाल प्रतिमा है। इस प्रतिमा की भी खास बात यह है इसे भी एक ही पत्थर से बनाया गया है और जिसका वजन लगभग 20 टन यानि 20,000 किलो है। यह मूर्ति 16 फीट लम्बी, 8.5 फीट चौड़ी और 13 फीट ऊँची है। ये भारत में नंदी की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है।

7 मंदिर में प्राप्त लेखों के अनुसार, बृहदेश्वर मंदिर में प्रतिदिन जलने वाले दीयों के लिए घी की अबाधित पूर्ति के हेतु सम्राट राजराज ने मंदिर को 4000 गायें, 7000 बकरियाँ, 30 भैंसे व 2500 एकड़ जमीन दान की थी। मंदिर व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए 192 कर्मचारी रखे गये थे।

8 वर्ष 2010 में, ब्रदीदेश्वर मंदिर के 1000 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित मिलेनियम उत्सव के दौरान एक हजार रुपये का स्‍मारक सिक्का भारत सरकार ने जारी किया। 35 ग्राम वज़न का यह सिक्का 80 प्रतिशत चाँदी और 20 प्रतिशत तांबे से बना है। साथ ही 5 रुपये का सर्कुलेशन सिक्का भी जारी किया गया था।

9 1 अप्रैल 1954 को, भारतीय रिजर्व बैंक ने एक हजार रुपये (1000) का नोट जारी किया था। जिस पर बृहदेश्वर मंदिर की सांस्कृतिक विरासत और महत्व को दर्शाने वाले मनोरम दृश्य था। ये नोट अब प्रचलन नहीं है परन्तु संग्राहकों के बीच अभी भी लोकप्रिय हैं।

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