ईद (EID) दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाया जाने वाला एक पवित्र त्योहार है। ईद (EID) का मतलब होता है खुशी मनाना। इसे लोग EID-UL-FITR भी कहते हैं। मुस्लिमों का सबसे बड़ा त्योहार ईद (EID) इस साल मई के अंत में, दुनिया भर के मुसलमान द्वारा मनाया जाएगा। इस दिन मस्ज़िद में जाकर नमाज़ अदा की जाती है। साथ ही एक-दूसरे से गले मिल कर ईद (EID) की मुबारकबाद दी जाती है।
सीधे जाएं –
ईद क्यों मनाई जाती है? | Eid kyun manai jati hai ?
पहली EID-UL-FITR पैगंबर मुहम्मद ने सन 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था। पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बदर के युद्द में विजय प्राप्त की थी। उनके विजय होने की खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि रमजान महीने के दौरान पैगम्बर मोहम्मद (Prophet Mohammed) को पवित्र कुरान के बारे में पहली बार इलहाम (Revelation) हुआ था। इसलिए रमजान के महीने के दौरान, मुसलमान उनका सम्मान करने के लिए, सूर्ये उदय से लेकर सूर्ये अस्त तक रोज़ा रखते है। EID-UL-FITR को रमजान महीने के अंत और उपवास के अंत का जशन माना जाता है। लंबे समय तक उपवास केवल भोजन के बारे में नहीं है – इसमें दवाएं लेने से परहेज़ करना, किसी भी तरल पदार्थ (पानी सहित) को ना पीना, धूम्रपान ना करना और अन्योन्य संसर्ग ना करना शामिल है।
ईद कब मनाई जाती है? | Eid kab manai jati hai ?
EID-UL-FITR का पर्व रमजान का चांद डूबने और EID का चांद नजर आने पर मनाया जाता है। रमजान इस्लामी कैलेंडर के अनुसार साल का नौवां महीना है। इस पूरे महीने में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां महीना शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात EID की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार साल भर रहता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार EID-UL-FITR का ऐलान होता है। पर ईद-अल-फितर तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि आसमान में, चंद्रमा (New Moon) दिखाई नहीं देता (हालांकि परंपरागत रूप से, और आज भी कई मुस्लिमों के लिए, यह तब तक शुरू नहीं होता है जब तक कि पहले अर्धचंद्र की सिल्वर लाइन (barest sliver of a waxing crescent moon) को नहीं देखा जाता। तकनीकी रूप से, इसका मतलब यह है कि दुनिया भर में, EID-UL-FITR, विभिन्न स्थान के आधार पर अलग-अलग समय और यहां तक कि अलग-अलग दिनों में शुरू होता है। इसे और अधिक सरल बनाने के लिए, कुछ मुसलमान EID तब मनाते हैं जब अमावस्या उनके अपने स्थान के बजाय मक्का पर दिखाई देती है।
ईद (मीठी ईद) कैसे मनाई जाती है? | Eid kaise manai jati hai ?
30 दिन के रोजे खत्म होने के बाद EID के दिन कई तरह के पकवान बनाये जाते हैं। सुबह की नमाज अदा करने से पहले, मुसलमान सुबह उठते है और “ग़ुस्ल” नामक एक रिचुअल का पालन करते है और अपने शरीर को साफ़ करते है। फिर नए कपड़े पहन कर तैयार होते है। कुछ लोग पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, जबकि अन्य नए तरीके के कपड़े चुनते हैं। औरते ईद के दिन हाथों पर सुन्दर मेहंदी लगाती है। तैयार होने के बाद, मुसलमान मस्जिदों या बाहरी स्थानों पर जाकर ईद(EID) की नमाज़ अदा करते हैं। ईद की बधाई देते हुए ” ईद मुबारक,” बोलते है, ये एक दूसरे के प्यार और आपसी भाईचारे को दर्शाता है।
साथ ही ,EID के दिन लोग एक-दूसरे को अपने घर पर दावत का न्यौता देते हैं। इस दिन घरों में खास तौर पर किमामी सेवइयां, शीर और दूध वाली सेवइयां बनाई जाती हैं। बच्चों को ईदी या तोहफे दिए जाते हैं। पैसे, सामान, घरेलू सामान या फूल इन सब उपहारों को “ईदी” कहा जाता है। माना जाता है ईद (EID) के दिन जो भी मेहमान घर आता है उसे बिना ईदी के घर से नहीं भेजा जाता।
ईद का क्या महत्व है? | Eid ka kya mehetav hai?
EID-UL-FITR एक रूहानी महीने में कड़ी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला ईनाम है। EID मोहब्बत का मजबूत धागा है, यह त्योहार इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना है। एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी कृतज्ञता से लगाया जा सकता है।
पैगंबर मुहम्मद के मुताबिक,पवित्र कुरान ने कहा है की रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह इस दिन अपने बंदों को बख्सीश और ईनाम देता है। इसलिए इस दिन को ईद (EID) कहते है। मुसलमान ईद के दिन खुदा का शुक्रिया अदा करते है कि खुदा ने उनको महीने भर रोजा रखने की ताकत दी। EID पर एक खास रकम जिसे “ज़कात अल-फ़ित्र” कहते हैं, जो गरीबों और जरूरतमंदों को दान में देने के लिए निकली जाती है। जकात यानी दान को हर मुसलमान का फर्ज कहा गया है। परंपरागत रूप से इसे रमजान के अंत में और लोगों को EID की नमाज पर जाने से पहले दिया जाता है। सम्पूर्ण विश्व में ईद (EID) पूरे धूमधाम से मानाई जाती है।
इस्लाम धर्म में क्यों दो ईद मनाई जाती है? | Islam mai kyun manai jati hai do Eid?
इस्लाम धर्म में दो EID मनाई जाती है। पहली मीठी EID जिसे रमज़ान महीने की आखिरी रात के बाद मनाया जाता है। दूसरी, रमज़ान महीने के 70 दिन बाद मनाई जाती है, इसे बकरीद कहते हैं। बकरा ईद को कुर्रबानी की ईद माना जाता है। पहली मीठी ईद (EID) जिसे (EID-UL-FITR) कहा जाता है और दूसरी बकरी ईद (EID) को (EID-AL-ADHA) कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि ईश्वर ने पैगंबर इब्राहिम को चुनौती दी, कि वे ईश्वर में अपनी आस्था साबित करें और उसकी सबसे प्यारी कोई वस्तु त्याग करे। पैगंबर इब्राहिम ने भगवान के आदेश के प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिए अपने 13 वर्षीय बेटे इस्माइल को देने का फैसला किया। हालांकि, इस भाव को देखते हुए, भगवान ने अपने दूत को भेजकर इस काम को होने से रोक दिया। तब उन्होंने अपने बेटे के स्थान पर एक भेड़ की बलि दी। उसी दिन से इसे बकरीद, कुर्बानी की ईद या EID-AL-ADHA कहा जाता है, लोग एक जानवर की बलि देकर इस त्योहार को मनाते हैं, जिसे बाद में तीन भागों में विभाजित किया जाता है। फिर इन तीन भागों को वितरित किया जाता है – एक हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है, गरीबों और जरूरतमंदों को दूसरा हिस्सा और तीसरा हिस्सा अपने लिए रखते है।
ईद (EID) का तयोहार दुनिया भर के लाखो मुसलमानों द्वारा मनाये जाने वाला सबसे बड़ा तयोहार है। ईद का त्योहार भाईचारे को बढ़ावा देने वाला और बरकत के लिए दुआएं मांगने वाला है। इस दिन लोग गले मिल कर अपनी खुशियाँ बाँटते है, दुनिया चाहे जितना बदल जाए, कितनी ही तरक्की कर ले लेकिन ईद (EID) जैसा त्योहार हम सभी को आपस में जोड़े रखता है। साथ ही हमे यह अहसास कराता है कि पूरी मानव जाति एक है और इंसानियत ही उसका मजहब है। सबको साथ मिलकर रहना चाइए।