दुनिया भर से लाखों लोग भारत की खूबसूरती देखने आते है। भारत का अपना एक अलग इतिहास है जो विश्वभर में काफी मशहूर है। भारत का हर राज्य संस्कृति, परंपराओ, हस्तशिल्पों और वास्तुकलाओं का धनी है। हमारे देश के हर कोने मे कुछ न कुछ ऐसा अद्भुत मिल जायगा जिसे देख कर आपको अपने देश पर नाज हो पर ऐसी कई चीज़े हैं जिनके बारे में शायद ही लोगों को पता होगा। भारत की विश्व घरोहर स्थल की सूचि मे शामिल गुलाबी शहर जयपुर (जो पिंक सिटी के नाम से मशहूर) “Pink City Jaipur” के बारे मे तो आप बहुत कुछ जानते होंगें। हवा महल (Hawa Mahal), एम्बर फोर्ट (Amber Fort) और जयपुर सिटी पैलेस (City Palace) जैसी कुछ जगह तो यहाँ के फेमस पॉइंट है, पर इस खूबसूरत शहर की एक ऐसी अनोखी चीज़ है जिसके बारे मे शायद ही आपको पता होगा।
क्या आप जानते हैं, जयपुर के सिटी पैलेस (City Palace) में मौजूद है दुनिया के दो सबसे बड़े चांदी के कलश (Silver Pot)। इन कलश का नाम गंगाजली कलश हैं। सिटी पैलेस (City Palace) में रखे इन चांदी के दो भारी-भरकम पात्रों को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। चांदी के यह कलश अपने साइज और खूबसूरती के चलते गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book of Records) में भी शामिल है।
अब यह कलश इस महल मे कहाँ से आए, किसने बनवाए, कब बनवाए ?? यह सभी सवाल आपके मन मे आ रहे होंगे। इन कलशों की सुंदरता के पीछे का इतिहास भी बहुत ही अद्भुत है। जिसे जान कर आप चकित हो जाएंगे। इन कलश के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आगे पढ़िए।
आइए आपको बताते है दुनिया के सबसे बड़े चांदी कलश (गंगाजली कलश) (Biggest Silver Pot) की कहानी।

कैसा है कलश का आकर
इस कलश का आकर ही इसकी पहचान है। दुनिया के इस सबसे बड़े चांदी के कलश की ऊंचाई है 5 फ़ीट 3 इंच और गोलाई 14 फ़ीट 10 इंच है। जबकि इस चांदी के चमकते कलश का वज़न है 345 किलोग्राम। इस कलश मे 4000 लीटर के करीब पानी रखा जा सकते हैं।
किसने बनवाया कलश
जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह द्वितीय (Maharaja Sawai Madho Singh II) जी की इच्छा का पालन करने के लिए साल 1894 में इस कलश का निर्माण किया गया था। उनके आदेशानुसार शाही खज़ाने से तकरीबन 14000 चांदी के सिक्कों को निकला गया, फिर उन्हें आग में तपाकर ये कलश बनाया गया था। इन चांदी के सिक्कों को पिघलाकर एक बड़ी सी शीट बनाई गयी और फिर उस शीट को लकड़ी के एक कलश आकर के सांचे के साथ पीट-पीटकर कलश का आकार दे दिया गया। इस कलश को बनने में लगभग दो साल लगे थे।
क्यों बनवाया गया कलश।
जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह द्वितीय (Maharaja Sawai Madho Singh II) जी बड़े धर्मपरायण थे और जहां भी जाते थे गंगा जल साथ ले जाते थे। वर्ष 1902 में रानी विक्टोरिया (Queen Victoria) की मृत्यु के बाद एडवर्ड सप्तम (Edward VII) के राजतिलक समारोह में शामिल होने के लिए कई महत्वपूर्ण भारतीय रईसों और महाराजाओं को आमंत्रित किया गया, माधो सिंह भी उन में से एक थे।
अन्य महाराजाओं के साथ, सिंह को साम्राज्य के प्रति वफादार माना जाता था, जो उनके निमंत्रण के पीछे का कारण था।
राज्याभिषेक में शामिल होने की मजबूरी ने माधो सिंह जी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं। एक ओर, यदि वह उपस्थित नहीं होते, तो यह शिष्टाचार का उल्लंघन होता, जिसमें गंभीर रूप से नुकसान हो सकता है। दूसरी ओर अगर निमंत्रण स्वीकार करते है तो समुद्र को पार करना का मतलब होता काला पानी। हिंदू शास्त्रों के अनुसार समुद्र पर करना अपनी आत्मा को दूषित करना था।
इस दुविधा का समाधान करने के लिए, माधो सिंह जी ने अपने सलाहकारों की एक परिषद को बुलाया और उनसे पूछा कि आगे क्या करना है। अपनी आत्मा को प्रदूषित होने से बचाने के लिए उन्होंने पवित्र गंगा से हजारों लीटर पानी अपने साथ इंग्लैंड ले जाने का फैसला किया और इसी फैसले को पुरान करने के लिए दो विशालकाय चांदी के कलश बनाए गए, जिसमे कई हजारों लीटर पानी भरा जा सकता था। यह पानी उनकी सभी जरूरतों के लिए था, मुख्यता पूजा-पाठ के वक्त इस जल का प्रयोग किया जाना था। वे अपने साथ राधा गोविंद जी को लेकर गए ताकि उनकी पूजा-पाठ कर सकें।
महाराजा ने इंग्लैंड जाने के लिए ट्रैवल एजेंसी थॉमस कुक (Thomas Cook) से, ओलंपिया (Olympia) नामक पानी के जहाज को 1.5 लाख रुपए मे किराए पर लिया और डेक के सबसे नीचे के एक कमरे को धर्मस्थल में बदल दिया। उनके साथ पूरे कर्मचारी और सेवा दल के लोग गए थे। उन्होंने चालक दल को सख्त आदेश दिए कि जहाज पर किसी भी प्रकार का मांसाहार का सेवन न किया जाए। माधो सिंह जी विदेशियों से कोई भी काम को करवाने से बचने के लिए लोहार, बढ़ई और अन्य सभी शिल्पकारों को भी साथ ले गए थे।
कब दुनिया के सामने आया।
चांदी का ये गंगाजली कलश, साल 1902 में दुनिया के सामने आया, जब ये कलश रॉयल ट्रिप पर इंग्लैंड जाने के लिए निकला था। यह ओलंपिया जहाज से बंबई के बंदरगाह से रवाना हुआ था। सबसे ख़ास बात यह है कि इस पवित्र कलश को जहाज मे ले जाने से पहले, जहाज की बाकायदा गंगाजल से धो कर पूजा की गई थी और उसके बाद ही कलश और अन्य पवित्र सामग्री को पहियों और पुलियों की एक जटिल प्रणाली के माध्यम से जहाज मे चढ़ाया गया था। जहाज के माध्यम से इन कलश का सफर, जयपुर से बॉम्बे होते हुए लंदन तक 5,000 मील से अधिक का था।
अब दुनिया की सबसे बड़ी चांदी की वस्तुएं के रूप मे यह कलश, जयपुर के सिटी पैलेस के दीवान-ए-खास में प्रदर्शित किए गए है। यह कला का बेहतरीन नमूना, इंडियन कल्चर और आर्ट का जीता जागता उदाहरण है और यह शानदार कलश सच में अद्भुत भी हैं और दिलचस्प भी।