स्वतंत्र भारत के पहले उप राष्ट्र्पति तथा दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. S Radhakrishnan) का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने मे इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के उपलक्ष में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है और इस दिन शिक्षकों को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है।
आइये जानते है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक तथा महत्वपूर्ण बातें –
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म 5 सितम्बर 1888 को, ब्रिटिश भारत की मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरुत्तानी गॉव मे हुआ था ( जो बाद में 1960 तक आंध्र प्रदेश में और 1960 के बाद से अब तक तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले में है )। उनके माता का नाम सीताम्मा (Sitamma) तथा पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी (Sarvepalli Veeraswami) था। ये तमिलनाडु के छोटे से गॉव में एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। 16 वर्ष की उम्र में ही इनकी शादी कर दी गयी थी, उनकी पत्नी का नाम शिवकामु (Sivakamu) था और वह पांच बेटियों और एक बेटे (Sarvepalli Gopal) के पिता थे।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिता नहीं चाहते थे, कि उनका बेटा अंग्रेजी सीखे, इसके बजाय वह चाहते थे कि वह एक पुजारी बने। परन्तु, उनकी प्रतिभा इतनी उत्कृष्ट थी कि उनके पिता उन्हें रोक नहीं पाए उन्हें तिरुपति के स्कूल मे भेजा गया और फिर वेल्लोर (Vellore) में वूरहेस कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन बाद में वे मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज चले गए। अपने अकादमिक जीवन के दौरान, उन्हें अनेकों छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। 1906 में उन्होंने दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री (Master’s degree in Philosophy) पूरी की और प्रोफेसर बन गए।
- उन्हें 1931 में नाइट बैचलर (Knight Bachelor) नियुक्त किया गया था, और इनको ब्रिटिश सरकार द्वारा सर की उपाधि दी गयी। तब से स्वतंत्रता प्राप्ति तक उन्हें सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के रूप में संबोधित किया गया था। परन्तु आजादी के बाद उन्होंने ‘सर’ शीर्षक का उपयोग करने से इनकार कर दिया और अपने शैक्षणिक शीर्षक ‘डॉक्टर’ को अपनाया और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) के नाम से जाना जाने लगे।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1952 में, स्वतंत्र भारत के पहले उप राष्ट्रपति बने और 1962 में, वे भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद भी डॉ. राधाकृष्णन ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उन्हें यूनेस्को UNESCO की कार्यसमिति का अध्यक्ष बनाया गया, सन्1949 से-सन् 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा था।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पहले भारतीय थे, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (University of Oxford) में प्रोफेसर की कुर्सी पर बैठे। वह 1936-1952 तक पूर्वी धर्म और नैतिकता (Eastern Religion and Ethics) के स्पेलिंग प्रोफेसर (Spalding Professor) थे। 1930 में शिकागो विश्वविद्यालय (University of Chicago) में उन्हें तुलनात्मक धर्म (Comparative Religion) में हास्केल व्याख्याता (Haskell lecturer) नियुक्त किया गया था।
- इस महान दार्शनिक और लेखक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने 1954 मे देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न (Bharat Ratan) प्रदान किया था। जिसके द्वारा मानव जाति के लिए किये गए उनके सराहनीय कार्यो को मान्यता प्रदान की गई।
- 1954 में, उन्होंने जर्मन “ऑर्डर पी ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस”(Order pour le Merite for Arts and Science) और 1961 में “जर्मन बुक ट्रेड” (German Book Trade) का शांति पुरस्कार प्राप्त किया। इंग्लैंड सरकार द्वारा 1963 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन को “ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट” (Order of Merit) का सम्मान दिया गया।
- (1918-1921) तक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. S. Radhakrishnan) मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय में भी फिलोसॉफी के प्रोफेसर (Professor of Philosophy) के रूप में काम किया। उनके छात्रों ने उन्हें बहुत प्यार और सम्मान देते थे, जब वह मैसूर विश्वविद्यालय छोड़ कर, कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने के लिए जा रहे थे, तो उन्हें उनके छात्र फूलों से सजी गाड़ी में स्टेशन ले गए थे।
- 1931-1936 तक, वे आंध्र विश्वविद्यालय में कुलपति (Vice Chancellor) थे और 1939-1948 तक, वे बनारस विश्वविद्यालय में कुलपति (Vice Chancellor) थे और दिल्ली विश्वविद्यालय में, वह 1953-1962 तक वाइस चांसलर (Vice Chancellor) थे।
- वह हेल्पेज इंडिया (Helpage India) नमक एक गैर-लाभकारी संगठन (Non-profit Organization) के संस्थापकों में से एक थे, जो भारत में बुजुर्गों लोगों के लिए कार्य करते है।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षावादी, दार्शनिक और लेखक थे। राजनीति में आने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन के 40 साल एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किये थे, वे जीवनभर अपने आपको शिक्षक मानते रहे। साथ ही उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। “उनकी इच्छा थी की मेरा जन्मदिन अलग से मनाने के बजाए, यदि मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए, तो यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात होगी।” इसलिए 5 सितंबर को सारे भारत में डॉ. राधाकृष्णन के सम्मान मे शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
- डॉ. राधाकृष्णन के सबसे करीबी दोस्तों में से एक पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार उनसे कहा था, “आपने कई योग्यताओं के साथ अपने देश की सेवा की है। लेकिन सबसे बढ़कर, आप एक महान शिक्षक हैं जिनसे हम सभी ने बहुत कुछ सीखा है और सीखते रहेंगे।” आगे उन्होंने कहा, ”यह भारत का सौभाग्य है की, राष्ट्रपति के रूप में एक महान दार्शनिक, एक महान शिक्षाविद् और एक महान मानवतावादी हमारे पास है।”
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन काल मे अनेक लेख लिखे। उन्होंने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की बहुत प्रशंसा की गई। उन्होंने अपनी एमए की पढ़ाई के दौरान, “द एथिक्स ऑफ द वेदांता एंड इट्स मटेरियल प्रैसिपोज़िशन” विषय पर एक थीसिस तैयार की थी। राधाकृष्णन की थीसिस को 1908 में उनकी पहली पुस्तक “द एथिक्स ऑफ द वेदांता एंड इट्स मटेरियल प्रैसिपोज़िशन“(The Ethics of the Vedanta and Its Material Presupposition) के रूप में प्रकाशित किया गया था।
- महान शिक्षावादी, प्रोफेसर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की स्मृति में, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) ने “राधाकृष्णन शेवनिंग स्कॉलरशिप” (Radhakrishnan Chevening Scholarships) नामक एक छात्रवृत्ति की शुरुआत की है और राधाकृष्णन मेमोरियल अवार्ड (Radhakrishnan Memorial Award) की शुरुआत की है।
- भारत के राष्ट्रपति बनने के बाद भी, डॉ. सर्वपल्ली एक विनम्र व्यक्ति बने रहे। उनसे बारे एक बहुत अच्छी बात थी जो कोई नहीं भूल सकता। जब वह भारत के राष्ट्रपति बने तब उन्हें ₹ 10,000 वेतन मिलता था, जिसमे से वे केवल ₹ 2,500 रखते थे और शेष राशि को हर महीने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर दिया की जाती थी।
- 1975 में, अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले, डॉ. राधाकृष्णन ने “भगवान की एक सार्वभौमिक वास्तविकता जो सभी लोगों के लिए प्यारऔर ज्ञान को गले लगाया” की धारणा को बढ़ावा देने के लिए टेम्पलटन पुरस्कार (Templeton Prize) जीता। हालांकि, उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को पूरी पुरस्कार राशि दान कर दी।
- वह भारत के एकमात्र राष्ट्रपति हैं जो अपने खराब स्वास्थ्य के कारण दिल्ली गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं हो सके थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हुआ था।
ऐसे महान, विनम्र तथा आदर्शवादी व्यक्ति को देश कभी भी भुला नहीं सकता हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा के मूल्य को बढ़ावा देने में लगा दिया। उन्होंने भारतीयों और भारतीय चिंतन को पश्चिमी जगत मे पहचान दिलाई और भारतीयों मे आत्मसम्मान की नई भावना जागृत करी। देश के उज्वल सितारे को कोटि कोटि नमन।
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