दीपावली को दीवाली या प्रकाशोत्सव के रूप में भी जाना जाता है। यह प्रत्येक वर्ष अक्टूबर या नवंबर में मनाया जाता है। दीपावली का त्यौहार सबसे लोकप्रिय भारतीय त्योहार है जो संस्कृतियों और धर्मों से एक दम परे है। मिट्टी के दीपक और लालटेन, रंगीन लाइट्स, रचनात्मक लोगों के लिए रंगोली, परंपरिक तरीके से लक्ष्मी पूजा, लंबी कार्ड पार्टियाँ और नई पीढ़ी के लिए सजने सवरने का मौका, दिवाली के त्योहार में सभी के लिए कुछ न कुछ होता है।
रोशनी का यह उत्सव शायद ही कभी एक दिन का त्यौहार रहा है, वास्तव में यह लगभग पूरे सप्ताह तक चलता रहता है। मुख्यता यह 5 दिनों तक चलने वाले उत्सव है और उसके बाद के कुछ दिन यहाँ-वहाँ के होते हैं। भव्यता, चमक और खुशी के इस त्यौहार की विशेषता ही इसकी पांच विविध दर्शनों का सामंजस्य है, प्रत्येक दिन एक विशेष विचार और आदर्श के साथ मनाया जाता है। इस प्रकार, लोग अपने इन पांच दिनों के उत्सव को पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाते हैं और अपने जीवन के लिए सुख समृद्धि की कामना करते है।
दीपावली के पांच दिनों के प्रत्येक दिन का एक विशेष महत्व है जो इस प्रकार है।
पहला दिन – धनतेरस
दीपावली के पहले दिन को धनतेरस (धन्वंतरि त्रयोदश या धनत्रयोदशी) कहा जाता है। यह वास्तव में, कृष्ण पक्ष (हिंदू कैलेंडर के अनुसार) की त्रयोदशी (तेरहवां) का चंद्र दिवस है, जो कार्तिक महीने का काला अन्धकार भरा पखवाड़ा (Dark fortnight )है। धनतेरस एक विशेष दिन है क्योंकि इस दिन भगवान धन्वंतरी (जिन्हे हिंदू चिकित्सा के देवता और भगवान विष्णु के अवतार कहा जाता है) मानव जाति के उद्धार के लिए, आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान के साथ समुद्र से प्रकट हुए थे। केरल और तमिलनाडु में धन्वंतरी और आयुर्वेद को समर्पित कई मंदिर हैं।
इस दिन विशेष रूप से सोने और चांदी कीमती गहने, बहिखाता, नए कपड़ों और बर्तनों की खरीदारी की जाती है। इस दिन सूर्यास्त के समय, हिंदू स्नान करते हैं और मृत्यु के देवता यमराज को प्रसाद चढ़ाते है (पूजा के समय दी जाने वाली मिठाई) साथ ही एक दीया जलाते हैं और असामयिक मृत्यु से सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं। यह प्रसाद तुलसी के पौधे या किसी भी अन्य पवित्र वृक्ष के पास रखा जाता है, जो भी आँगन में मौजूद हो। साथ ही बुद्धि के देवता गणेश जी, धन के देवता कुबेर जी तथा धन व समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। यह दिन दीवाली के उत्सव की शानदार शुरुआत का प्रतीक है।
दूसरा दिन – नरक चतुर्दशी / छोटी दिवाली
दीपावली उत्सव के दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी (काली चौदस या रूप चौदस) कहा जाता है। हालांकि भारत के कुछ हिस्सों में, यह दिन दीवाली से पहले, बस छोटी दीवाली ही माना जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी को छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने दुनिया को भय से मुक्त करने के लिए राक्षस नरकासुर का वध किया था और उसकी कैद से लगभग 16 हजार महिलाओं को मुक्त कराया था। प्रभु की विजय की खुशी के कारण सब लोगो ने दीपक जलाकर उत्सव मनाया जाता है और यह परम्परा आज भी प्रचलित है। इस दिन सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने घरों के दरवाजों पर चौदह दीये जलाते हैं तथा पूजा-पाठ करते हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि नरक चौदस के दिन, तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए उसके बाद स्नान करना चाहिए जिसे सब थकान उतर जाये ताकि दिवाली का तयोहार उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जा सके।
तीसरा दिन – दीवाली / दीपावली
नरक चतुर्दशी के बाद अगले दिन यानी तीसरे दिन अमावस्या को मुख्य त्योहार दीपावली का होता है।यह वह दिन है जब मां लक्ष्मी की पूजा भगवान गणेश के साथ की जाती है। परिवार के सभी सदस्य साथ बैठ कर, दिव्य देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, धन और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए माँ से प्रार्थना करते है, कुछ घरो मे पंडित द्वारा भी पूजा करवाई जाती है। बुराई पर अच्छाई की विजय और अंधेरे पर प्रकाश के प्रतिक के रूप मे लोग अपने घरों में दीया और मोमबत्तियाँ जलाते हैं, चारों तरफ रोशनी ही रौशनी होती है। अमावस्या की काली रात दियो की रौशनी से जगमगा उठती है। महालक्ष्मी की पूजा के बाद लोग मंदिरों, गुरुद्वारों व चर्चों मे जाकर मोमबत्तियाँ जलाते है और सब को मिठाइयाँ बांटते है। दीपावली का त्योहार सबके जीवन मे प्रकाश भर देता है।
चौथा दिन – गोवर्धन पूजा
दीपावली के अगले दिन यानि चौथे दिन के भारत भर में विभिन्न अर्थ हैं। उत्तर भारत मे कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। द्वापर युग में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा करके उनको छप्पन भोग अर्पित किए जाते थे लेकिन श्रीकृष्ण के समझाने पर ब्रजवासियों ने उस प्रथा को बंद करदिया, जिसके बाद वर्षा के देवता इंद्र और भगवान् कृष्ण मे युद्ध हुआ, इंद्र के हरने के पश्चात ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी और गोवर्धन रूप में भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने लगे। इस दिन घर और मंदिरों में विविध प्रकार की खाद्य सामग्रियों से भगवान को भोग लगाया जाता है। इस दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है।
ग्रामीण क्षेत्र में भी अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन नए अनाज की शुरुआत भगवान को भोग लगाकर की जाती है। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं का पूजन किया जाता है और गौमाता को मिठाई भी खिलाई जाती हैं।
साथ ही इस दिन को विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब लोग अपने उपकरणों, हथियारों और मशीनरी की पूजा करते हैं। इस दिन अधिकांश या सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहते हैं।
लेकिन दक्षिण भारत (महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु) में, दानव राजा बलि पर भगवान विष्णु की जीत को बाली प्रतिपदा या बाली पद्यम या मार्गपाली पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन परिवार के सभी लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं और साथ में भोजन करते हैं। इसे पड़वा भी कहते हैं।
भारत के पश्चिमी राज्यों जैसे गुजरात में इस दिन को बहुत ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है, उनके कैलेंडर के अनुसार यह नव वर्ष की शुरुआत होती है। इसे बस्तु वरस कहा जाता है।
पांचवा दिन -भाई दूज
गोवर्धन पूजा के अगले दिन यानि पांचवे दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज का त्योहार होता है। इसे भाई बीज या भाई टिका / तिलक और भाई फोटा (बंगाल में) कहा जाता है। जिस तरह रक्षा बंधन का दिन भाइयों को समर्पित होता है उसी तरह यह दिन बहनों के लिए समर्पित है। भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक लगाकर, उसकी आरती करती है और उनके लिए एक लंबी, खुशहाल, स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं। फिर भाई बहन एक साथ बैठ कर भोजन करते हैं, ताकि दोनों के बीच के बंधन मे प्रेम और सम्मान बड़े।
भाई दूज के त्योहार के साथ यमराज की कथा जुड़ी हुई है, इसीलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। वैदिक युग में, यम (मृत्यु के देवता यमराज) ने अपनी बहन यमुना से इस दिन मुलाकात की थी। उसने अपनी बहन को एक वरदान दिया कि जो भी इस दिन उससे मिलने आएगा, वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा, वे मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करेंगे। तब से यह चलन है, भाई इस दिन अपनी बहनों से मिलने के लिए जाते हैं, बहने भाई का खूब सम्मान करती है और उनकी पूजा करती है। भाई दूज पर जो भाई-बहन यमुनाजी में स्नान करते हैं, उनको यमराजजी यमलोक की यातना से मुक्त कर देते हैं।
यह पांचवा दिन के दीपावली समारोह के अंत का प्रतीक होता है। परंतु इसके बाद भी एक और उत्सव मनाया जाता है देव दिवाली।
देव दिवाली
कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है। इसे देव दीपावली भी कहते हैं जो कार्तिक मास का अंतिम त्योहार होता है।। दरअसल, कार्तिक मास में तीन दिवाली आती है। कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी को छोटी दिवाली जिसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इसके बाद अमावस्या को बड़ी दिवाली मनाते हैं एवं पूर्णिमा को देव दिवाली मनाते हैं। देव दिवाली देवता मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के दिन सभी देवता गंगा नदी के घाट पर आकर दीप जलाते हैं। इसीलिए इस दिन गंगा स्नान करके दीपदान करने का विशेष महत्व है। इस दिन दीपदान करने से लंबी आयु और निरोगी जीवन प्राप्त होता है। इस दिन सभी अपने घरो मे दीपक जलाते है और देवताओं से सुख समृद्धि का आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना करते है।
शुभ दीपावली।