भगवान शिव से जुड़ी 11 अद्भुत बातें। Lord Shiva Facts

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भगवान शिव को कई नामो से जाना जाता है, बाबा भोलेनाथ, देवो के देव महादेव, भगवान शिव शंकर, महादेव, कैलाशपति आदि। भगवान शिव के जीवन की कहानी जितनी सरल है उतनी ही अद्भुत तथा रोमांचक भी है। भगवान शिव के बारे मे हमने बहुत कुछ सुना है और बहुत सी कहानियों और ग्रंथो मे पढ़ा भी है। परन्तु शिव जी से जुड़े है ऐसे अनेको अद्भुत रहस्य या तथ्य है जिनके बारे मे ज्यादा लोग नहीं जानते होंगे।

जैसे की भगवान शिव का स्वरुप बाकि देवताओं से अलग क्यों है। वे क्यों अपने शरीर पर भस्म लगते है। ऐसे अनेको प्रश्न है जिसके उतर सब जानना चाहते है। आज हम आपको भगवान शिव से जुड़े ऐसे सभी रहस्यों के बारे में बताएंगे। आशा करते है यह आपको अवश्य पंसद आएंगे।

भगवान शिव से जुड़ी 11 अद्भुत बातें

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1. शिवलिंग निराकार रूप को दर्शाता है ।

भगवान शिव की मुख्य आराधना शिवलिंग के रूप में ही की जाती है । क्या आप जानते है की देवी देवताओ की खंडित मूर्ति की कभी पूजा नही की जाती, उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है, लेकिन शिवलिंग कितना भी टूटा हो, खंडित हो, फिर भी शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए भोलेनाथ का हर शिवलिंग उनके निराकार रूप को दर्शाता है।

2. शिवलिंग की पूजा

शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है। सभी जानते है बेलपत्र के बिना भगववान शिव की पूजा पूर्ण नहीं होती। लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है, कि बिना जल के, बेलपत्र नही चढ़ाया जा सकता। बेलपत्र हमेशा जल के साथ चढ़ाते है। 

3. शिवलिंग की पूजा में शंख निषेद

शिवलिंग की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता और न ही शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल चढ़ाया जाता है। क्योंकि भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया था और शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था।

4. भगवान शिव की जटाओं में गंगा

हिन्दू धर्म में गंगा नदी को सबसे पवित्र माना गया है। गंगा नदी शिवजी की जटाओं से बहती है। परन्तु ऐसा क्यों है? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने का विचार आया तो एक समस्या उत्पन हो गई। माँ गंगा का वेग इतना अधिक था जिसे भरी विनाश हो सकता था। तब सभी देवी देवताओं ने भगवान शिव को मनाया, की वे पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें। इसी कारण से माँ गंगा शिव की जटाओ मे रहती है। शिव जी का गंगा को धारण करना यह दर्शाता है कि शिव ना केवल सँहार करते है अपितु पृथ्वी का कल्याण भी करते है।

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5. मस्तक पर चंद्रमा

भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान चंद्रमा को मिला हुआ है। जिसके बारे मे कहा जाता है महाराजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया, और इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की अराधना की, जिसे भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्रमा के प्राणों की रक्षा की। साथ ही चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर लिया। इसके अलावा सिर पर विराजित अर्धचंद्र भगवान शिव के मन को शांत रखते हैं।  

6. महाकाल के कंठ में सर्प

भगवान शिव की प्रतिमा को गौर से देखे तो उनके गले में हर समय लिपटे रहने वाले सर्प पर ध्यान जाता है और अक्सर आपके दिमाग में सवाल उठते है की क्यों शिवजी के गले में हमेशा सर्प लिपटा रहता है ? बता दें कि शिव के गले में हर समय लिपटे रहने वाले नाग कोई और नहीं बल्कि नागराज वासुकी हैं। वासुकी नाग ऋषि कश्यप के दूसरे पुत्र है। यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा बड़ा राजा है। कहा जाता है कि नागलोक के राजा वासुकी शिव के परम भक्त थे। इसी कारण उन्हें भगवान शिव के गले मे सुशोभित होने का अवसर मिला है।

इसके अलावा इसका एक अर्थ भी है। सर्प एक ऐसा जीव है जो पूर्णतया संहारक प्रवृत्ति का है। यदि सर्प किसी मनुष्य को काट ले तो मनुष्य का अंत निश्चित है। ऐसे भयानक जीव को भगवान ने अपने कंठ में धारण किया हुआ हैं। इसका अर्थ है कि महादेव ने अज्ञान अथवा अंधकार को अपने नियंत्रण में किया हुआ है और सर्प जैसा हिंसक जीव भी उनके अधीन है।

7. शिव का त्रिशूल

भगवान शिव के दो मुख्य अस्त्र है, एक धनुष और दूसरा त्रिशूल। त्रिशूल के तीन शूल तीन गुणों का प्रतिनित्व करते हैं सत्व गुण, रज गुण और तम गुण। इन तीनो गुणों मे सामंजस्य रहे, इसी कारण इन्हे भगवान शिव ने त्रिशूल में धारण कर रखा है।

8. भगवान शिव का डमरू

शिव नृत्य के दौरान अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रसारित करने के लिए डमरू का उपयोग करते हैं। ऐसे ही ब्रह्माण्ड में संगीत का प्रसार करने के लिए महादेव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाया था। जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था और इस ध्वनि से संगीत के छंद, ताल आदि का जन्म हुआ। भगवान शिव के डमरू से ही, ओम “OM” की आध्यात्मिक ध्वनि पैदा हुई, जो सभी जीवित वस्तुओं में मौजूद है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक स्रोत है।

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9.शिव का तांडव 

महादेव के तांडव के बारे में तो सबने सुना है यह विश्वभर मे प्रसिद्ध है। तांडव शब्द सुनते ही भगवान शिव के रुद्र रूप का दृश्य सामने आ जाता है। परन्तु क्या आप जानते है की शिव के तांडव के दो रूप है। एक रौद्र तांडव जो शिव के प्रलयकारी क्रोध का प्रतिक है दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव है। रौद्र तांडव करने वाले शिव रूद्र कहे जाते हैं और आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज शिव के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसलिए कथक, भरत नाट्यम आदि नृत्य करते वक्त भगवान शिव की नटराज मूर्ति रखी जाती है। शास्त्रों के अनुसार आनंद तांडव से सृष्टि अस्तित्व में आती है और रूद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता हैं।

10. शरीर पर भस्म

भगवान शिव से जुड़ी प्रत्येक बात संपूर्ण मानव जाति के लिए एक ज्ञान का संदेश है। उनके शरीर पर भस्म लगाना के पीछे भी एक गहरा अर्थ है जो हर एक मनुष्य को जानना चाहिए। इसका अर्थ है कि जब मानव जीवन समाप्त हो जाता है और देह नष्ट हो जाती है, तो अंत में केवल राख ही तो रह जाती है। यह भस्म ही जीवन का सत्य है।

सरल शब्दो मे कहे तो यह जीवन, यह संसार, यह मोह माया सब कुछ राख के समान है, सब कुछ एक दिन भस्म हो जाएगा और राख बन जाएगा। यही कारण है कि भगवान शिव ने भस्म से ही खुद का अभिषेक किया। माना जाता है कि भस्म के अभिषेक से वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

11. महाकाल का तीसरा नेत्र

भगवान शिव के ललाट पर उनका तीसरा नेत्र सुसज्जित है। ऐसा माना जाता है कि जब शिवजी बहुत क्रोधित होते हैं तब उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है और इस क्रोध की अग्नि से सारी सृष्टि नष्ट हो सकती है।

परन्तु इसके अलावा इसका एक अर्थ और है। वह यह है की तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना गया है। जब यह नेत्र खुलता है तो संसार में अज्ञानता को समाप्त करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो शिवजी का तीसरा नेत्र भौतिक दृष्टि से परे संसार की ओर देखने का संदेश देता है। महादेव का यह नेत्र बोध कराता है कि व्यक्ति जीवन को वास्तविक दृष्टि से देखें। शिव जी का यह नेत्र पांचों इंद्रियों से परे तीनों गुणों (सत, रज और तम), तीनों कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) और तीनो लोकों (स्वर्ग, पाताल एवं पृथ्वी) का प्रतीक है। इसलिए शिवजी को त्र्यंबक भी कहा जाता है।

वास्तव में, तीसरा नेत्र खोलने का अर्थ है जीवन को अधिक गहराई से समझना और जीवन को एक नई नज़र से देखना। संसार में प्रत्येक व्यक्ति को तीसरी आंख खोलने की अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है जिससे जीवन को सफल तथा सार्थक बनाया जा सके।

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