भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु के सबसे करिश्माई अवतारों में से एक हैं। वह भगवान विष्णु का 8 वां अवतार थे, एक नटखट मक्खन चोर और महाभारत में अर्जुन के सारथी मार्गदर्शक थे। हमें धर्म के प्रति शिक्षित करने से लेकर हमें जीवन की वास्तविकता के बारे में बताने के लिए, भगवान कृष्ण वास्तव में ज्ञान का स्रोत हैं। न केवल उनकी कहानियाँ आकर्षक और प्रेरक हैं, बल्कि वे मानव जीवन के लिए भी प्रासंगिक हैं। लाखों हिंदू भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा रखते हैं, जो उनके दिव्य आशीर्वाद की तलाश में हैं।
महाभारत और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान कृष्ण के सांसारिक जीवन, उनके महान कार्यों और उनके दिव्य महत्व के बारे में बहुत सारी जानकारी है। हालाँकि, हम उनसे और उनकी कहानियों से अच्छी तरह वाकिफ होने का कितना भी दावा करें, परन्तु भगवान कृष्ण के बारे में कुछ ऐसे दुर्लभ तथ्य है, जो आप में से बहुत कम लोग जानते हैं।
तो आइए भगवान कृष्ण से जुड़ी दिलचस्प बातें पर एक नज़र डालते हैं।
कृष्ण के 108 नाम।
भगवान कृष्ण के लगभग 108 नाम हैं। जिनमे गोपाल, गोविंद, मोहन, देवकीनंदन, माधव, केशव, रणछोड़, द्वारकाधीश, गिरधारी, गोपीनाथ, नंदलाल, मुरलीमनोहर, मधुसूदन, और अन्य 95 नाम हैं।
कृष्ण की त्वचा का रंग गहरा था, नीला नहीं।
कृष्ण के नाम का अर्थ है “सभी आकर्षक” (all attractive), अपने आप मे ही सबसे अच्छे रूप में सुंदरता रखने के लिए जाने जाते थे। भगवान कृष्ण का नाम मूल रूप से एक विशेषण है, जिसका अर्थ है काला ’या’ अंधेरा। यद्यपि, शास्त्रों और प्राचीन चित्रों में उन्हें नीले रंग के रूप में चित्रित किया गया, जबकि भगवान कृष्ण का रंग न तो काला और न ही नीला था, उनका रंग गहरा था, हालांकि उनके रूप के आकर्षण और चुम्बकीय आभा (Magnetic Aura) जो की नीले रंग की थी, के कारण, उन्हें नीले रंग की त्वचा के साथ एक देवता के रूप में चित्रित किया गया हैं।
कृष्ण की 8 पत्नियां।
कृष्णा 16,108 रानियों के पति थे, जिनमें से आठ राजपूत पत्नियां थीं, जिन्हें पटरानी या अष्टभार्या (Ashtabharya) के नाम से जाना जाता था। इन रानियों के नाम थे: रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नागनजति, कालिंदी, मित्रविंदा, भद्रा, और लक्ष्मण। इनमे रुक्मिणी, विदर्भ की राजकुमारी काफी परिचित और प्रसिद्ध थीं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने, स्वयं रुक्मिणी के अनुरोध पर, उसे शिशुपाल से विवाह करने से बचाने के लिए रुक्मिणी का अपहरण कर उनसे विवाह किया था। अन्य 16100 पत्नियाँ वही थीं जिन्हें एक भयंकर असुर नरकासुर से बचाया गया और मुक्त किया गया था।
कृष्ण के 80 बेटे।
भगवान कृष्ण के 80 बेटे थे जो आठ रानियों से पैदा हुए थे, प्रत्येक रानी ने 10 बेटों को जन्म दिया। उनमें से सबसे प्रसिद्ध थे, प्रद्युम्न, जो रुक्मिणी के पुत्र थे। रानी जांबवती का पुत्र सांब था, जो ऋषियों द्वारा शापित हो गया था और यही यदु वंश के नाश कारण बना।

राधा का कोई प्रमाण नहीं।
राधा कृष्ण की प्रेम कथा की लोकप्रियता के बावजूद, राधा के अस्तित्व के कोई निशान नहीं हैं। कृष्ण को राधा से अथा प्रेम था, फिर भी उन्होंने एक-दूसरे से शादी नहीं की। राधा कृष्ण के बहुत करीब थी परन्तु शास्त्रों में कहीं भी राधा का उल्लेख नहीं किया गया है। राधा कृष्ण की प्रेम कथा का जिक्र महाभारत या श्रीमद्भागवतम् में कही नहीं है, यहाँ तक की सबसे पुराने विष्णु पुराण और हरिवंशम (जो भगवान कृष्ण के जीवन के बारे में है) मे भी राधा का कोई उल्लेख नहीं है।
द्रौपदी भगवान कृष्ण की बहन।
यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण और द्रौपदी भाई-बहन थे। द्रौपदी देवी पार्वती का अवतार है और कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं, देवी पार्वती भगवान विष्णु को भाई मानती हैं। द्रौपदी भगवान कृष्ण की मदद करने के लिए ही पैदा हुई थी ताकि पापी अधर्मियों का नाश किया जा सके।
कृष्णा ने गुरु संदीपनी मुनि के बेटे को जीवनदान दिया ।
ऋषि सांदिपनी को भगवान कृष्ण ने जब गुरुदक्षिणा मांगने के लिए कहा, तब गुरु ने कहा कि मेरे पुत्र को एक असुर उठा ले गया है आप उसे आपस ले आए तो बड़ी कृपा होगी। श्रीकृष्ण ने गुरु के पुत्र को कई जगह ढूंढ तो पता चला कि उसकी मृत्यु हो गयी है, और उसे तो यमराज ले गए हैं। तब श्रीकृष्ण ने यमराज से गुरु के पुत्र को हासिल कर और गुरु दक्षिणा पूर्ण की। वह इतने शक्तिशाली है कि उन्होंने अपने गुरु सांदीपनी को गुरुदक्षिणा देने के लिए उनके मृत पुत्र को भी वापस ले आए।
सबसे प्रिय मोर पंख।
सभी देवताओ मे भगवान कृष्ण सबसे ज्यादा श्रृंगार प्रिये है। श्री कृष्ण के हर छवि में उनके मष्तक पर मोर पंख सुशोभित होता है। भगवान श्री कृष्ण को मोर पंख इतना पसंद था की वह उनके श्रृंगार का हिस्सा बन गया, इसलिए कृष्णा को मोर मुकुटधारी भी बुलाया जाता है।
सारे संसार में मोर ही एकमात्र ऐसा प्राणी माना जाता है जो अपने सम्पूर्ण जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है, जो कभी संभोग नहीं करता है। मोर के आँसुओ मे इतनी शक्ति होती है की उससे ही जीव उत्पन होता है। मोरनी मोर के आँसुओ को पीकर गर्भ धारण करती है। अतः मोर को अत्यंत है पवित्र पक्षी मन गया है, इसलिए इस पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर सजने वाले मुकुट पर धारण कर उसकी शोभा बढ़ाते है।
कृष्ण की बांसुरी।
बांसुरी और श्री कृष्ण एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। बांसुरी के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनकी बांसुरी के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया।
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापरयुग मे जब भगवान श्री कृष्ण ने धरती में जन्म लिया तब देवी-देवता वेश बदलकर समय-समय में उनसे मिलने धरती पर आने लगे। भगवान शिव भी अपने प्रिय भगवान से मिलने के लिए धरती पर आने के लिए उत्सुक हुए। महादेव ने सोचा कृष्ण से मिलने जा रहे है तो कुछ उपहार भी ले जाना चाइए। महादेव ने एक सुन्दर मनमोहक बांसुरी का निर्माण किया। जब शिवजी भगवान कृष्ण से मिलने गोकुल पहुचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बांसुरी प्रदान की तथा उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से भगवान कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते है। बांसुरी राधा और कृष्ण के प्रेम का प्रतीक भी है जब भी कृष्ण बांसुरी बजाते थे राधा दौड़ी चली आती थी। प्रचलित कथा के अनुसार राधा की मृत्यु पर कृष्ण ने बांसुरी तोड़ दी थी और फिर कभी बांसुरी नहीं बजाई।
कृष्ण की द्वारिका।
भगवान कृष्ण ने गुजरात के समुद्री तट पर अपने पूर्वजों की भूमि पर एक भव्य नगर का निर्माण किया था। कुछ विद्वान कहते हैं कि उन्होंने पहले से उजाड़ पड़ी कुशस्थली को फिर से निर्मित करवाया था और कुछ कहते है नया निर्माण था। श्रीकृष्ण की इस नगरी को विश्वकर्मा ने बनाया था। इतिहासकार मानते हैं कि द्वारिका जल में डूबने से पहले नष्ट की गई थी। हालांकि समुद्र के भीतर द्वारिका के अवशेष ढूंढ लिए गए हैं। वहां उस समय के जो बर्तन मिले, हैं वो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के बताए जाते हैं। परन्तु अभी भी कृष्ण की द्वारिका शोध का विषय है। इसके बारे में सम्पूर्ण तथ्य प्राप्त नहीं है।
कृष्ण का विराट रूप।
एक बार, भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को मारने के लिए अपना विराट (सार्वभौमिक) रूप धारण किया। भगवान ने शिशुपाल की माँ को वचन दिया था की उसके 100 पाप क्षमा करेगा। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के अवसर पर, शिशुपाल ने भगवान कृष्ण को अपशब्दों बोल कर अपमानित किया, जिसके लिए उन्होंने उन्हें माफ कर दिया। जैसे ही उसके पापों की संख्या 100 को पार कर गई, फिर कृष्ण ने विराट रूप धारण किया और फिर शिशुपाल को मार डाला। यह माना जाता है कि शिशुपाल और दंतवक्र, विष्णु के द्वारपाल जया और विजया के पुनर्जन्म थे, जो पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए अभिशप्त थे, और केवल विष्णु के हाथों से मुक्त किया जा सकता था। महाभारत युद्ध मे अर्जुन को गीता ज्ञान देते समय, अर्जुन ने भगवान के पूर्ण स्वरुप अर्थात विराट रूप के दर्शन की इच्छा प्रकट की थी तब भगवान कृष्ण ने विराट रूप के दर्शन दिए थे। इसके अलावा जब धृतराष्ट्र को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने कृष्ण से इस रूप को एक बार देखने का अनुरोध किया। परन्तु धृतराष्ट्र अंधे थे तो उन्होंने कृष्ण के इस रूप को देखने के लिए दिव्य दृष्टि प्राप्त की और प्रभु के विराट स्वरुप को देख कर धन्य हो गये।
कालातीत छवि।
कृष्ण वास्तविक देवता थे, जो सभी बंधनों से मुक्त थे। कृष्ण प्रकृति की सीमाओं, मृत्यु या जीवन से संबंधित किसी भी चीज़ से परे हैं। वह कई दशकों के गुजर जाने के बावजूद भी, किसी भी पुराणों के ऐतिहासिक चित्रण में वृद्ध नहीं लगते। महाभारत ने कई बार संकेत दिया कि भगवान कृष्ण किसी सीमा के अधीन नहीं हैं। प्रचलित कथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया तब उनके शरीर पर किसी प्रकार से कोई झुर्रियां नहीं पड़ी थी और ना ही उनके केश श्वेत थे। अर्थात वे 115 वर्ष की उम्र में भी युवा जैसे ही थे।
कृष्ण ईश्वर की अभिव्यक्ति।
यह माना जाता है कि कृष्ण द्वारा पृथ्वी के लोगों में, “ईश्वर के वचनों” को फैलाने के लिए अवतार लिया गया था। इस प्रकार, यह पता चला है कि वह अब्राहम Abraham, मूसा Moses, बुद्ध Buddha, जीसस Jesus, मुहम्मद Muhammad और बाब Bab के साथ एक अतिरंजित छवि (exalted image) साझा करते है। भगवान कृष्ण जैन धर्म का भी हिस्सा हैं। वह त्रिदेव, मे से एक का प्रतिनिधित्व करते है उन्हें वासुदेव (वीर रूप) नाम दिया गया है। बौद्ध जातक कथाओं में भगवान कृष्ण के अनेक उल्लेख है। “वैभव जातक” में, उन्हें भारत का राजकुमार और महान शख्सियत के रूप में वर्णित किया जाता है।
भगवान कृष्ण की मृत्यु के लिए कई अभिशाप जिम्मेदार।
कुरुक्षेत्र युद्ध मे गांधारी के सभी 100 पुत्रों को मृत्यु प्राप्त हुई जिसने उनको पूरी तरह तोड़ दिया। दुर्योधन की मृत्यु के पश्चात जब कृष्ण अपनी संवेदना देने के लिए गांधारी के पास गए, तो वह गुस्से से उत्तेजित हो गयी, क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि अगर कृष्ण युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं, तो वह ऐसा कर सकते थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। दु: खी मां ने कृष्ण के साथ यदु वंश को भी श्राप शाप दिया कि दोनों 36 वर्षों में नष्ट हो जाएंगे। भगवान ने गांधरी को कुछ नहीं कहा और इस अभिशाप को स्वीकार कर, तथास्तु बोल दिया।
जब दुर्वासा श्री कृष्ण की उपस्थिति में खीर खा रहे थे, तो उन्होंने भगवान कृष्ण को आदेश दिया की बची हुई खीर वे अपने शरीर पर लगाए। कृष्ण इसे अपने शरीर पर लगाने के लिए सहमत हुए, लेकिन उन्होंने सोचा खीर पैरो पर लगाई जाएगी तो यह खीर अपनी पवित्रता खो देगी। इसलिए उन्होंने खीर अपने पैरों पर नहीं लगाई। लेकिन ऋषि दुर्वासा इससे नाराज़ हो गए और श्राप दे दिया की तूने मेरे आदेशों का पालन नहीं किया अब तेरे पैर अभेद्य और अखंड नहीं रहेंगे और तेरी मृत्यु का कारण बनेंगे। किसी तरह यह श्राप कृष्ण का अंत बना। इस प्रकार, कई अभिशापों की परिणति कृष्ण की मृत्यु का कारण हुई।
कृष्ण की मृत्यु।
गांधारी के श्राप के पूर्ण होने का समय आया तो एक दिन सभी कृष्णवंशी एक यदु पर्व पर सोमनाथ के पास प्रभास क्षेत्र में एकत्रित हुए। वहां सभी मदिरा पीकर झूमने लगे और एक-दूसरे को मारने लगे, इस प्रकार यादव वंश के कई लोग मारे गए और जो कृष्णवंशी बच गए उनको भगवान् कृष्ण ने द्वारक छोड़ने के लिए बोल दिया और खुद भी दुखी होकर द्वारक छोड़ कर चले गए।
एक दिन भगवान कृष्ण जंगल मे वृक्ष के नीचे लेटे थे। वहां जरा नाम का एक शिकारी आया। उसने जब दूर से प्रभु के चरणों को देखा तो उसको लगा शायद वह एक हिरण है। हिरण समाज कर उसने तीर चलाया और तीर सीधा प्रभु के चरणों में जा लगा।
जब उसने पास जाकर देखा तो तीर हिरन को नहीं श्री कृष्ण को लगा था। यह देख वह रोने लगा और अपने दुष्कार्य के लिए भगवान से क्षमा मांगने लगा। तब भगवान ने उससे बताया, की मेरे पहले अवतार में, भगवान राम ने बाली को मार डाला था, और तब उन्होंने तारा (बाली की विधवा) को आश्वासन दिया कि बाली उसके अगले जन्म में इसका बदला लेगा। जारा तुम बाली का पुनर्जन्म हो। त्रेतायुग से मुझ पर तीर मरने का आरोप है। आज तुमने तीर मार कर मुझे अपराध से मुक्त कर दिया, यह मेरे कर्म का परिणाम है। यह कहे कर भगवान ने जरा का गले लगाया और उसको क्षमा कर के, भगवान देह सहित अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार एक मामूली से तीर से पृथ्वी पर भगवान कृष्ण का जीवन समाप्त हो गया।
जय श्री कृष्णा। राधे राधे।
Radhe radhe