बसंत पंचमी (Basant Panchami) पर क्यों होती है माँ सरस्वती की पूजा।

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हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल बसंत पंचमी (Basant Panchami) का तयोहार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। यह आम तौर पर जनवरी के अंत या फरवरी में आता है। इस वर्ष (2022) बसंत पंचमी 5 फ़रवरी को है। इस तयोहार को कई स्थानों पर बसंत पंचमी (Basant Panchami), ज्ञान पंचमी, सरस्वती पंचमी या श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन से एक नए मौसम या ऋतु की शुरुआत होती है जिसे वसंत ऋतु कहते है और अंगेजी में स्प्रिंग सीजन (Spring Season) कहा जाता है। वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहते है यह ऋतु माघ के दूसरे पक्ष से आरंभ होती है ओर चैत के प्रथम पक्ष तक रहती है।

इस दिन से ठंड कम होने लग जाती है और हर तरफ हरियाली ही हरियाली नज़र आती है। चारो तरफ रंग बिरंगे फूल खिलते है जिनकी महक से वातावरण मे खुशी सी फ़ैल जाती है, खेत खलिहानों में पीली सरसों लेहलहराने लगती है, इस मौसम की हल्की हवा से वातावरण सुहाना हो जाता है। शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़ पौधों और प्राणियों में नए जीवन का संचार होता है

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बसंत पंचमी (Basant Panchami) पर क्यों होती है माँ सरस्वती की पूजा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ज्ञान और वाणी की देवी, माता सरस्वती माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ही ब्रह्मा जी के आदेश पर प्रकट हुई थीं।

ऋग्वेद में किए गए वर्णन के अनुसार, सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी ने, जब सृष्टी का सृजन किया तो वह अपने सृजन से संतुष्ट नहीं थे। सृष्टि पर चारों तरफ मौन छाया हुआ था। तब उन्होंने सृष्टि को वाणी देने के लिए, अपने कमंडल से जल लेकर चारों दिशाओं में छिड़काव किया, इस जल से हाथ में वीणा धारण किए एक देवी (शक्ति) प्रकट हुई। भगवान ब्रह्माजी के आदेश पर जैसे ही देवी ने वीणा पर मधुर सुर छेड़ा, तीनो लोकों में ऊर्जा का संचार हुआ, संसार को ध्वनि तथा वाणी मिली। ब्रह्मा जी ने देवी का नाम सरस्वती रखा तभी से वह देवी माँ सरस्वती कहलाई, जिसे आप शारदा, वीणावादनी के नाम से भी जानते हैं।

जिस दिन मनुष्य के जीवन में शब्दों की शक्ति आई थी, वह दिन बसंत पंचमी का दिन था इसलिए बसंत पंचमी को सरस्वती देवी का दिन भी माना जाता है। बसंत पंचमी को ही देवी सरस्वती का जन्म हुआ था इसीलिए इस दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। अतः इसी वजह से बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा करने का विधान हैं। भारत सहित दुनिया के कई देशों में लोग माँ सरस्वती का पूजन करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता सरस्वती की पूजा करने से वो जल्दी ही प्रसन्न हो जाती हैं और विद्या तथा ज्ञान का आशीर्वाद देती है।

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माँ सरस्वती का स्वरुप

शारदा, वाग्देवी, वीणावादिनी जैसे नामों से जाने वाली माँ सरस्वती ज्ञान और विद्या का प्रतीक हैं। इसलिए इन्हें साहित्य, कला, संगीत और शिक्षा की देवी माना जाता है। माँ शारदा की चारों भुजाएं है जो चारों दिशाओं का प्रतीक हैं। एक हाथ में वीणा, दूसरे में वेद की पुस्तक, तीसरे में कमंडल तथा चौथे में रूद्राक्ष की माला धारण किए हुए हैं। यह हमारे जीवन में प्रेम, विद्या, ध्यान तथा मानसिक समन्वय के प्रतिक हैं। साथ ही माँ सफेद वस्त्र धारण करती है जो शांति को प्रकट करता है।

सरस्वती पूजा का महत्व

माँ सरस्वती को विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। माँ सरस्वती की पूजा करने का यह सबसे उत्तम दिन है। यह नई शिक्षा प्रारंभ करने, विधा, कला, संगीत आदि सीखने के लिए सर्वोत्तम अवसर होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन सरस्वती पूजा करने से देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्तों को आर्शीवाद देती हैं। इसलिए बसंत पंचमी के दिन, ज्ञान, वाणी, बुद्धि, विवेक, विद्या और सभी कलाओं से परिपूर्ण माँ सरस्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है।

माँ सरस्वती की पूजा विधि 

माता सरस्वती की पूजा पुरे विधि विधान से की जाती है। बसंत पंचमी के दिन प्रातकाल स्नान आदि से निवृत होकर पीले या श्वेत वस्त्र धारण करे। पूजा करने के लिए विशेष कर पीले पुष्प, पीले रंग की मिठाई तथा पीले मीठे चावल बना कर अवश्य अर्पित करें। इसके अलावा उन्हें केसर या पीले चंदन का टीका लगाएं और पीले वस्त्र भेंट करें। उसके पश्चात सरस्वती माता की वंदना करे और प्रसाद के तौर पर पीला भोजन सबको वितरित करे।

विद्यार्थियों, संगीतकार, कलाकारों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है, उन्हें अपनी पुस्तकों, वाद्यों आदि की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

 

माँ सरस्वती मूल मंत्र

ऊँ ऐं सरस्वत्चैं ऐं नमः

सरस्वती स्रोतम

या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता

 या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

 या ब्रह्माच्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा माँ पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥

हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।

वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥

सरस्वती पूजा मंत्र

सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी,

विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।

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