हिंदू धर्म में हर कदम पर मुहूर्त या शुभ मुहूर्त के सिद्धांत में विश्वास किया जाता हैं। हर काम से पहले शुभ मुहूर्त देखा जाता है चाहे वह एक नया व्यापार शुरू करना हो या कोई महत्वपूर्ण खरीदारी, शादी, बच्चे का नामकरण और चाहे जो कुछ भी हो। हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक ऐसा दिन होता है जिस दिन कोई भी काम करने के लिए किसी मुहूर्त या शुभ समय की आवश्यकता नहीं होती, जो है अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya)। अक्षय तृतीया एक ऐसा महत्वपूर्ण अवसर है, जिसे हिंदू कैलेंडर के सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी कार्य फलदायी ही होता है। इसलिए इस दिन शुभ काम शुरू करने की सलाह दी जाती है, जैसे घर खरीदना, व्यापार शुरू करना या नया जीवन शुरू करना।
परन्तु क्या आप जानते अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) की तिथि क्यों इतनी महत्वपुर्ण है? अक्षय तृतीया का महत्व क्या है? अक्षय तृतीया से जुड़ी ऐसी कौनसी कथाएँ या कहानियाँ है जो इस अक्षय तृतीया को एक उत्तम दिवस बनती है। आज हम आपको इन सभी सवालों के उतर देने वाले है। यह आर्टिकल अंत तक जरूर पढ़िएगा।
अक्षय तृतीया का अर्थ / Meaning of Akshaya Tritiya
अक्षय तृतीया’ में ‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है जिसका कभी भी क्षय नहीं होता (कभी ना समाप्त होने वाला) या अनंत और तृतीया का अर्थ है तीसरा चंद्र दिवस। इसके अर्थ से ही स्पष्ट है कि इस दिन आरंभ किए गए काम में आपको सफलता हासिल होगी। इन तिथि पर किये गए कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य के शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता। इसलिए अक्षय तृतीया पर हम जो कुछ भी करते हैं वह समय के साथ बढ़ता है और कभी नष्ट नहीं हो सकता। इसे आखा तीज (Akha teej) और अक्ति (Akti) के नाम से भी जाना जाता है।
अक्षय तृतीया कब मनाई जाती है? / When is Akshaya Tritiya celebrated?
हर साल, अक्षय तृतीया का उत्सव हिंदू महीने, वैशाख मास (अप्रैल-मई) के शुक्ल पक्ष के (तृतीय) तीसरे दिन मनाया जाता है। कहा जाता है कि उस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही ग्रह अपनी उच्च क्षमता में होते है, इस कारण दोनों का प्रकाश चरम सीमा पर होता है। जो साल में केवल एक बार होता है।
अक्षय तृतीया का महत्व / Significance of Akshaya Tritiya
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के दिन को बहुत शुभ तथा महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान ने इस दुनिया को बनाना चाहा, तो उन्होंने जो पहला शब्द बोला वह था – ‘अक्षय’। इसलिए शास्त्र अक्षय तृतीया के दिन को बड़ी श्रद्धा के साथ संदर्भित करते हैं। माना जाता है कि इस दिन किया गया जप तप, पितृ तर्पण, दान पुण्य आदि अक्षय फलदायक होता है। जिसका अर्थ है इसका फल हमेशा व्यक्ति के साथ रहता है, इसका कभी क्षय नहीं होता।
हिन्दू कैलेंडर में किसी महीने में कोई तिथि घट भी सकती है और बढ़ भी सकती है। जैसे किसी महीने में नवमीं तिथि दो बार आ सकती है या किसी महीने में नवमीं तिथि के बाद अगले दिन ग्यारस तिथि हो सकती है। लेकिन, अक्षय तृतीया एकमात्र ऐसा दिन है जो न कभी बढ़ता है ना ही अनुपस्थित होता है, इसीलिए यह अक्षय है। साथ ही इस दिन शुभ या नया काम करने की भी सलाह दी जाती है जैसे घर या जमीन खरीदना, आभूषण खरीदना, कोई नया निवेश करना आदि।
अक्षय तृतीया से जुड़ी कहानियाँ / Stories related to Akshaya Tritiya
अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) से जुड़ी अनेकों पौराणिक कथाएँ व कहानियाँ प्रचलित है। जो इस प्रकार से है।
1 गंगा नदी का धरती पर आगमन
लोककथाओं के अनुसार, इस दिन पवित्र गंगा नदी का धरती पर आगमन हुआ था। राजा भगीरथ द्वारा की गई कठिन तपस्या के फल स्वरूप देवी गंगा धरती पर उतरी थी। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्त्व माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन जो गंगा स्नान करता है उसके सब पाप नष्ट हो जाते है।
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2 देवी अन्नपूर्णा का जन्म
मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ दिन पर अन्न की देवी – माँ अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था। वह देवी पार्वती के विभिन्न रूपों में से एक है। एक बार, भगवान शिव ने खुद एक याचक का रूप धारण किया और देवी अन्नपूर्णा के पास पहुंच कर भोजन के लिए याचिका की। कहा जाता है कि देवी ने स्वयं भगवान शिव को भोजन कराया था। अतः अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर, भक्त देवी अन्नपुर्णा की पूजा करके, कामना करते है की उनके भंड़ार सदा भरे रहें।
3 महाकाव्य महाभारत
अक्षय तृतीया की तिथि महाभारत से दो प्रकार से जुड़ी हुई है।
पहला – अक्षय तृतीया के दिन ही, महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश के साथ मिलकर महान महाकाव्य “महाभारत” लिखना शुरू किया था। महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की कथा सुनाई थी और भगवान गणेश ने लिखा था।
दूसरा – महाभारत के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन पर भगवान सूर्य ने, पांडवों में सबसे श्रेष्ठ, युधिष्ठिर को अक्षय पात्र का उपहार दिया था। यह एक ऐसा दिव्य पात्र (बर्तन) था जिसमें भोजन की आपूर्ति कभी नहीं होती थी, मतलब इसमें भोजन कभी खत्म नहीं होता था। यह दिव्य पात्र, पृथ्वी के समस्त प्राणियों को असीमित भोजन खिला सकता था। यह पात्र तब तक खली नहीं होता, जब तक द्रौपदी, पांडवों में भोजन करने वाली अंतिम व्यक्ति खाना न खा ले।
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4 भगवान परशुराम का जन्म
अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम के दिन के रूप में मान्यता प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। यह दिन परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
5 भगवान कृष्ण और सुदामा का मिलन
अक्षय तृतीया भगवान कृष्ण और उनके बचपन के सखा सुदामा की मुलाकात का भी प्रतीक है। इस शुभ दिन पर कई वर्षों की अवधि के बाद सुदामा अपने बचपन के दोस्त भगवान श्री कृष्ण से मिलने गए थे। कथा के अनुसार, सुदामा ने कृष्ण से कुछ आर्थिक मदद के लिए अनुरोध करने जाने का निश्च्य किया। परन्तु उन्होंने सोचा इतने सालों बाद अपने मित्र से मिलने जा रहा हूँ, तो ऐसे खाली हाथ जाना अच्छा नहीं होगा कोई उपहार तो लेकर जाना चाहिए। तब उसने अपनी पत्नी से कुछ देने के लिए कहा जो वह उसे उपहार के रूप में दे सके। परन्तु सुदामा बहुत गरीब थे, उनके घर में कुछ भी नहीं होने के कारण, उनकी पत्नी ने कुछ चावल लिए और उसे कपड़े के एक छोटे से टुकड़े में बाँध कर दे दिया।
जब सुदामा भगवान कृष्ण के महल पहुंचे तो इतना बड़ा महल देख कर वे आश्चर्यचकित हों गए। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र को देखते ही उसे गले से लगा लिया और उनका भव्य स्वागत सत्कार किया। सुदामा अपना ऐसा आतिथ्य देख कर अभिभूत हो गए और शर्म के कारण कृष्ण से किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं मांग सके और खाली हाथ घर आ गया।
संकोच के कारण सुदामा तो अपनी पीड़ा भगवान कृष्ण से न कह पाए, परन्तु भगवान कृष्ण ने अपने मित्र के मन की बात जान ली और जब सुदामा अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा उनकी छोटी सी टूटी फूटी कुटिया की जगह एक शानदार भवन बन गया हैं, परिवार के सभी लोगों ने अच्छे वस्त्र पहने थे, घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी। उस दिन सुदामा की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बदल गई। उस दिन सुदामा के बिना कुछ बोले भगवान कृष्ण ने सब कुछ सुन्न लिए और अपने मित्र सुदामा को धन धान्य से परिपूर्ण करके दोस्ती का फर्ज निभाया था।
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6 धन के देवता कुबेर की नियुक्ति
कहा जाता है कि धन-धान्य प्राप्त करने के लिए कुबेर ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। कुबेर की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अक्षय तृतीया के दिन कुबेर की इच्छा पूरी की तथा उनको धन के देवता का आशीर्वाद दिया था। इसी दिन से कुबेर धन के देवता बन गए।
7 जैन धर्म
जैन धर्म में, अक्षय तृतीया के दिन पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को श्रद्धांजलि देते है, जिन्होंने इस दिन गन्ने का रस पीकर अपनी एक साल की तपस्या समाप्त की थी। जैन धर्म में अक्षय तृतीया के पर्व को ‘वर्षी तप’ भी कहा जाता है। जैन धर्म का पालन करने वाले लोग इस दिन सिर्फ गन्ने का रस पीकर व्रत करते है।
इस दिन क्या खास होता है।
इस शुभ दिन पर वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में, भक्तों को श्री बाँके बिहारी जी के चरण कमल के दर्शन होते हैं। यह साल में केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है।
भारतीय राज्य उड़ीसा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की रथ यात्रा के लिए, रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन की जाती है।
उत्तराखंड में की जाने वाली चार धाम की यात्रा के लिए, बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के दिन से खोले जाते है।
आखा तीज का दिन किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक होता है। इस दिन किसान अच्छी फसल पाने की उम्मीद में बीज बोते हैं।
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