भारत में होली के 10 विभिन्न रूप / 10 Different Types of Holi Celebration in India

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होली (Holi) का नाम सुनते ही मन मे जो छवि उभरती है वो है रंग, गुझिया, पकवान, मस्ती और धमाल की। पूरे भारत में, यह त्योहार बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। जो हर साल फरवरी के अंत से लेकर मार्च महीने के बीच मे आता है। हमे पूर्ण विश्वास है कि आप में से अधिकांश लोगों ने होली के उत्सव के लिए अपनी योजना बना ली होगी। लेकिन क्या आप जानते है भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होली उत्सव की अलग-अलग शैलियाँ हैं।

भारत में एक पुरानी कहावत है- “कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी”। यानी कोस-कोस पर पानी बदल जाता है और हर चार कोस पर वाणी (भाषा) बदल जाती है। ऐसे ही है हमारे भारतीय त्यौहार के साथ भी हैं जो भाषा और भाव के साथ बदलते रहते हैं। क्या आप लोग जानते हैं कि होली को पूरे भारत में कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है और विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है??? जी हां, भारत में कुछ ऐसी जगह भी जहां होली का एक अलग रूप और अंदाज देखने को मिलता हैं। इन जगहों पर कई देशी और विदेशी सैलानी भी होली के त्यौहार का आनंद लेने के लिए आते हैं।

आज हम आपको इस आर्टिकल कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां होली का एक अलग ही अंदाज देखने को मिलता है। तो चलिए शुरू करते हैं पर उससे पहले यह जान लेते है की होली क्यों मनाई जाती है।

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image via – https://www.flickr.com/photos/73416633@N00/, Holika Dahan preparations, Jodhpur, Rajasthan, CC BY-SA 2.0

होली (Holi) क्यों मानते है।

होली का त्यौहार मतलब रंगो का त्यौहार, पर होली सिर्फ रंगों का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में उमंग और खुशियाँ लाता है। होली पूरे भारतवर्ष मे हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। यह दो दिन का उत्सव है। मुख्य त्यौहार से एक दिन पहले होलिका दहन  होता है इसमें लोग आग जलाते है और फिर इसकी पूजा की जाती और अलाव के चारों और परिक्रमा करते है।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को उसके बुरे पिता हिरण्यकश्यप और बुआ होलिका से बचाया था। प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, परन्तु उसके पिता को यह स्वीकार नहीं था वह चाहता था की उसका पुत्र विष्णु की पूजा करना बंद कर दे। इसके लिए उसने अनेको प्रयत्न किए पर प्रहलाद नहीं माना। इसलिए हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मरवाना चाहते थे, उन्होंने अपनी बहन होलिका को बुलाया, होलिका को वरदान प्राप्त था की उसको अग्नि से कुछ नहीं होगा, तो वह प्रलाद को लेकर अग्नि मे बैठ गयी, पर प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। प्रभु की कृपा से होलिका जल गई, परन्तु प्रहलद को कुछ नहीं हुआ। तभी से होली से पहले होलिका दहन किया जाता है।

दूसरे दिन रंगो के साथ होली खेली जाती है जिसे धुलंडी (Dhulandi) कहते है। लोग एक-दूसरे के चेहरे पर रंग (गुलाल) लगाकर अपने प्यार और भाईचारे का इजहार करते हैं। इसलिए इसे प्रेम का त्यौहार भी कहा जाता है इसके साथ राधा और भगवान कृष्ण के दिव्य प्रेम की कहानी जुड़ी हुई है।

भारत की होली (Holi) के 10 विभिन्न प्रकार

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image via – gkrishna38, Lath Mar Holi at Braj, CC BY 2.0

1. बरसाना (U.P) – लट्ठमार होली

लठमार होली महोत्सव भारत के राज्य उत्तर प्रदेश मे मनाया जाता है यह होली के सबसे अनोखे और प्रसिद्ध तरीकों में से एक है। बरसाना में होली का त्यौहार सिर्फ रंगों के साथ ही नहीं बल्कि लाठियों के साथ भी मनाया जाता है। जी हां, आपने सही सुना। समारोहों के दौरान, महिलाएं लाठियों के साथ पुरुषों का पीछा करती हैं और पुरुष खुद को ढाल से बचाते हैं।

यह परंपरा उस युग से चली आ रही है जब भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ नंदगाव से, राधा और गोपियों के साथ होली खेलने के लिए बरसाना आते थे। कृष्ण को गोपियाँ को चिढ़ाना और रंग लगाना बहुत पसंद था। एक बार कृष्ण ने सबको रंग दिया था, जिसे घबराकर गोपियों ने कृष्ण और उनके दोस्तों को लाठी से पीटा था। परन्तु यह उनको नुक्सान पहुंचने के लिए नहीं, परन्तु इसका एकमात्र उद्देश्य उन्हें अपने गाँव से डरा कर भगाना था।

आज भी बरसाना मे लठमार होली मनाई जाती है। नंदगाँव के पुरुष महिलाओं के साथ लाठियों और फूलों से बने रंगों के साथ होली मनाने के लिए आते हैं, वह भी नेक भावना के साथ। गोप (पुरुष), गोपियों (महिलाओं) को रंग लगते है और गोपियाँ रंगो से बचने के लिए पुरषों को लाठी से पीटती है हर साल बरसाना की लठमार होली देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं।

2. गोवा – शिमगो

भारतीय राज्य गोवा में होली उत्सव शिगमो (Shigmo) नाम से जाना जाता है। यह किसानों के प्रमुख त्योहारों में से एक है क्योंकि वे इसमें वसंत का आनंदपूर्वक स्वागत करते हैं। शिगमो उत्सव प्रत्येक वर्ष 14 दिनों के लिए मनाया जाता है। यह उत्सव पणजी (Panaji) (पंजिम (Panjim), में सड़कों पर बड़े पैमाने पर जुलूस के साथ मनाया जाता है, जो गोवा के अन्य स्थानीय कार्निवालों से बहुत अलग होता है। इनमें अलग अलग डांस ग्रुप द्वारा नृत्य का प्रदर्शन होता है और कई कलाकारों द्वारा पौराणिक कथाओं पर आधारित लघु नाटकों भीं को पेश किए जाते है। गोवा के रंग-बिरंगे उत्सव में ओर आकर्षण जोड़ने के लिए लोग अपनी नौकाओं को पौराणिक विषयों के आधार पर सजाते हैं।

गोवा में पर्यटकों द्वारा भी बहुत उत्साह के साथ होली मनाई जाती है जरा सोचिये होली के समय मे गोवा मे क्या खूबसूरत दृश्य होता होगा।

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3. मणिपुर – योसंग

नार्थ-ईस्ट में होली का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। मणिपुर में होली को योसांग (Yaoshang) उत्सव के नाम से जाता है, जो लमदा महीने की पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है और यह उत्सव पांच दिनों तक चलता है। इस पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत पाखंगबा, देवता को श्रद्धांजलि देने के साथ होती है। सूरज ढलने के बाद लोग बांस की झोपड़ी बनाते (जिसे ‘योसंग कहते है) और गांव के बच्चे घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा करते हैं। होली के दिन के लिए इन पैसों से बैंड-बाजा का इंतेज़ाम किया जाता है। होली के दिन झोपड़ी को जलाने के लिए सब इकट्ठा होते हैं। इसको जलाने के बाद बैंड बजाया जाता है और पारंपरिक मणिपुरी लोक नृत्य, थबल  चोंगबा किया जाता है।

यह एक प्रमुख भारतीय शास्त्रीय नृत्य है और इस त्योहार का मुख्य आकर्षण भी है। इसके बाद पारंपरिक तरीके से रंगों और पानी से होली खेलते हैं।

4. बिहार – फगुनवा

बिहार में होली को स्थानीय भोजपुरी भाषा में फगुनवा के नाम से जाना जाता है। होली को वसंत के आगमन और अच्छी फसल और भूमि की उर्वरता को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। इसके अलावा होली खेलने से पहले बिहार में होलिका जलाना महत्वपूर्ण माना जाता है, यहाँ भक्त प्रह्लाद की होलिका पर जीतने वाली, पौराणिक कथा का बहुत महत्व है। फाल्गुन पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर, गाय के गोबर के उपले, ताजी फसल से अनाज और होलिका के पेड़ की लकड़ी डालकर अलाव जलाए जाते हैं और उनकी पूजा की जाती है।

भोजपुरी फगुनवा को बहुत ऊर्जा और उत्साह के साथ लोक गीत, ठंडाई और गुंजिया और परिवार और दोस्तों के साथ मस्ती के साथ मनाई जाती है। ढोल की धुन पर ऊची आवाज (High pitch) मे लोक गीतों के साथ नाचते गाते रंगों और पानी के साथ होली मानते है। इस त्यौहार के दौरान भांग का सेवन करना भी उत्सव का हिस्सा है।

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5. पंजाब – होला मोहल्ला

पंजाब में होली का त्यौहार एक बेहद भी अलग नाम और अंदाज में मनाया जाता है। पंजाब में होली को होला मोहल्ला (Hola Mohalla) के नाम से जाना जाता है। पंजाब के आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला का आयोजन होता है। महान गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) द्वारा होला मोहल्ला मेले की शुरुआत की गई थी। सिखों को सैन्य अभ्यास करना इसका मूल उद्देश्य था। यह हिन्दुओं के रंगों के त्योहार अर्थात होली के ठीक बाद मनाया जाता है यह तीन दिनों तक आयोजित होने वाला एक महत्वपूर्ण वार्षिक मेला है। इस वर्ष, होला मोहल्ला महोत्सव 29 मार्च से 31 मार्च तक मनाया जाएगा।

तीन दिवसीय उत्सव के दौरान मॉक लड़ाई आयोजित की जाती है। सिख समुदाय गुरुद्वारा के निशान साहिब के नेतृत्व में, लोग मार्शल आर्ट परेड में भाग लेने आते है और अपने तीर बाजी, घुड़ सवारी आदि हुनर दिखते है। यह त्योहार मुख्यता निहंग सिखों द्वारा मनाया जाता है इसलिए इसे योद्धा होली भी कहा जाता है, साथ ही गुरुद्वारा में पूरे दिन लंगर (भोजन) की बड़े पैमाने पर व्यवस्था की जाती है।

6. केरल – मंजुल कुली (Manjal Kuli)

यह त्यौहार केवल उत्तरी राज्यों तक सीमित नहीं है, इसे दक्षिणी राज्यों में भी मनाया जाता है, लेकिन एक अलग नाम और परंपरा के साथ। केरल में, होली को मंजुल कुली (एक मधुर उत्सव) के रूप में मनाया जाता है, जिसे उकुली भी कहा जाता है। जो गोसरीपुरम थिरुमाला मंदिर में मनाया जाता है। लोग पहले दिन गोसरीपुरम थिरुमा के कोंकणी मंदिर जाते हैं पूजा अर्चना करते है। अगले दिन पानी व हल्दी से होली खेलते है, रंगो का उपयोग नहीं करते। साथ ही रंगों के इस त्योहार पर पारंपरिक लोक गीत गए जाते है। होली मनाने का यह शांत और सुन्दर तरीका अपने आप मे अनोखा है।

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image via – pradeep kumar chatte…, Elephant festival on eve of holi festival in india. – panoramio, CC BY 3.0

7. जयपुर – शाही होली

वह भूमि जो पहले से ही गुलाबी शहर के रूप में प्रसिद्ध है, उस शहर मे होली के रंगो को देखना एक अनोखा ही नज़ारा होता है। जयपुर के सिटी पैलेस (City Palace) के राजघराने हर साल अपनी उपस्थिति में एक भव्य समारोह का आयोजन करते हैं। जो स्थानीय लोगों और विदेशी पर्यटकों के बीच होली के उत्साह को और बढ़ा देता है। जयपुर मे हर साल, इस त्यौहार के दौरान बड़े पैमाने पर देशी विदेशी लोग आते है क्योंकि यह वह समय होता है जब शाही परिवार के लोग को रंगों से सराबोर कर सकते हैं। जयपुर में होली महोत्सव का शानदार भव्य उत्सव होली के उत्साह हो दोगुना कर देता है।

8. कुमाऊँ क्षेत्र, उत्तराखंड – बैठकी या खड़ी होली

उत्तराखंड में, होली के अलग-अलग संगीत संस्करण हैं, जैसे बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली। मुख्यता होली बैठकी या खड़ी होली के रूप में मनाई जाती है। पुरुष समुदाय अपने पारंपरिक परिधान में इकट्ठा होते हैं जिसमे पारंपरिक सफेद नोकदार टोपी, चूड़ीदार पायजामा और कुर्ता पहनते है।  डोल, जोड़ा और हुरका जैसे पराम्परिक संगीत वाद्ययंत्रों (Ethnic musical instruments) की धुन पर समूह में पारंपरिक गीत गाते हैं और नृत्य किया जाता है। बैठकी होली के लिए बैठक, स्थानीय सामुदायिक केंद्रों और यहां तक ​​कि स्थानीय घरों में आयोजित की जाती है। फिर समूह के सब लोग होली गीत गाते है।

खड़ी होली आमतौर पर बैठाकी होली से थोड़ी देर बाद शुरू होती है। उत्सव के दौरान स्थानीय लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं और टोली बना कर शहर में घूमते हैं। खड़ी गीत गाते है, नृत्य करते हैं और एक-दूसरे के चेहरे पर रंग लगाकर शुभकामनाएं देते हैं। होली उत्तराखंड में रंगों और उल्लास का त्योहार है।

9. पश्चिम बंगाल – डोल जात्रा या बसंत उत्सव

पश्चिम बंगाल में भी इस अभूतपूर्व त्योहार को मनाने का एक बहुत ही प्यारा तरीका है। होली को यहां बसंत उत्सव या डोल जात्रा के नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में लोग खुले हाथों से बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं। यहां की महिलाएं बसंत उत्सव के दौरान पीले रंग की पोशाक पहनती हैं, ये रंग शुद्धता का प्रतीक है। रंगों और संगीत के साथ समृद्ध बंगाली संस्कृति का जश्न मनाता है। इसके अलावा, पारंपरिक गीतों और नृत्य के साथ रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का भी पाठ किया जाता है।

डोल जात्रा (Dol Jatra) या डोल पूर्णिमा पर, राधा और कृष्ण की पालकियाँ सजाई जाती है और फिर सड़कों पर जुलूस (बारात) निकला जाता है। इस यात्रा के साथ महिलाएँ नृत्य करती हुई घुमती और उत्सव के उत्साह को और अधिक बढ़ाने के लिए, लोग इस जुलूस के साथ अबिरा (रंग) के साथ खेलते हैं। यह दृश्य आनंद से भरा होता है। डोलजात्रा का पश्चिम बंगाल के लिए एक अतिरिक्त महत्व भी है, यह चैतन्य महाप्रभु (Chaitanya Mahaprabhu) के जन्म का प्रतीक है, जो 16 वीं शताब्दी के एक महान वैष्णव संत और कवि थे, जिन्हें कुछ लोग कृष्ण का अवतार मानते हैं।

भारत के अन्य राज्यों के होली के उत्सव के विपरीत, यहाँ शांत और संयमित के साथ उत्सव मनाया जाता है यदि आप भी शांति पूर्ण वातावरण पसंद करते है तो एक बार पश्चिम बंगाल की होली अवश्य देखे।

10. महाराष्ट्र – रंग पंचमी

रंग पंचमी का त्यौहार होली के रंगीन त्योहार के पांच दिन बाद मनाया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के ‘फाल्गुन ’महीने के दौरान कृष्ण पक्ष की पंचमी (5 वें दिन) पर मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंगा पंचमी ‘राज-तम’ पर विजय का प्रतीक है। यह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे ‘शिमगो’ या ‘शिमगा’ के रूप में भी मनाया जाता है। रंग पंचमी भी रंगो और पानी के साथ मनाई जाती है। वृंदावन और मथुरा के मंदिरों में, रंग पंचमी का उत्सव होली के उत्सव का समापन होता है।

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